गेहूं में जिंक डालने का उचित समय और तरीका Publish Date : 30/12/2024
गेहूं में जिंक डालने का उचित समय और तरीका
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
खेती में उपयोग किए जाने वाले पोषक तत्वों में जिंक एक काफी महत्वपूर्ण तत्व होता है, जो फसलों के विकास को बेहतर बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फसल की वृद्वि के लिए आमतौर पर सभी पोषक तत्व आवश्यक होते हैं, परन्तु जिंक पोषक तत्व की कमी होने से फसल की वृद्वि मंद हो सकती है और इसके साथ ही यह फसल के उत्पान और उसकी गुणवत्ता को भी प्रभावित कर सकता है।
जिंक का प्रयोग फसलों में किस प्रकार से किया जाए, यह अपने आप में कफी महत्वपूर्ण होता है, विशेषरूप से कम तापमान के दौरान, जैसे कि सर्दी के मौसम में होता है। जिंक का उचित समय और तरीके से प्रयोग करना फसल की उचित वृद्वि एवं फसल के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अतः सर्दियों के मौसम में जिंक के अवशोषण की दर कम होने से यह आवश्यक है कि हम जिंक को अपनी फसलों तक उचित तरीके और समय पर उसे प्रदान करें।
इसके लिए छिड़काव और सिंचाई के माध्यम से जिंक प्रदान करने के विकल्पों को समझकर, किसान भाई इस महत्वपूर्ण पोषक तत्व का उचित उपयोग करे इसका अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकते हैं और अपनी फसल के उत्पादन में अपेक्षित सुधार ला सकते हैं। अपनी इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से हमारा यह प्रयास है कि किसान भाईयों को जिंक तत्व के उपयोग करने के बारे में उचित जानकारी प्रदान कर सकें जिससे कि वह इस तत्व का उपयोग सही समय और सही तरीके से करके इसका अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकें।
सर्दियों के मौसम में होती है जिंक की उपलब्धता में कमी
किसान भाईयों, सर्दियों के मौसम में तापमान जब गिरता है तो यह फसलों के लिए पोषक तत्वों की उपलब्ध्ता दर में कमी लाता है। विशेषरूप से गेहूं औश्र सरसों के जैसी फसलों में सर्दी का प्रभाव अधिकता के साथ होता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि तापमान के गिरने से पौधों की जड़ों की सक्रियता कुछ कम हो जाती है। जब तापमान कम होता है तो पौधों की जड़ें धीरे-धीरे काम करती हैं जिससे पानी का अवशोषण कम हो जाता है। इसके साथ ही पोषक तत्वों का अवशोषण भी कम हो जाता है।
ऐसे में पौधों के लिए जिंक जैसे माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की उपलब्धता भी काफी कम हो जाती है। इसके साथ ही जिंक का अवशोषण मिट्टी से जड़ों तक डिफ्यूजन के माध्यम से होता है और यह प्रक्रिया तापमान में आने बदलावों के साथ ही बदलती रहती है। सर्दी के मौसम में जब तापमान काफी कम होता है तो इससे अणुओं की ऊर्जा में भी कमी आ जाती है, फलतः डिफ्यूजन की गति भी मंद पड़ जाती है। कहने का अर्थ है कि जिंक पोषक तत्व मृदा में स्थिर हो सकता है जिससे पौधों के लिए इसकी उपलब्धता कम हो जाती है और यह आसानी से पौधों तक नही पहुँच पाता है।
किसान भाईयों, जिंक पोषक तत्व के पौधों की जड़ों तक पहुँचने के मुख्य रूप से तीन तरीके होते हैं-
मास फ्लो (Mass Flow):
इस प्रक्रिया के अंतर्गत, पोषक तत्व सिंचाई के पानी के साथ बहते हुए पौधों की जड़ों तक पहुँते हैं। यह प्रक्रिया उस समय सम्पन्न होती है जब सिंचाई का पानी मिट्टी के साथ बहता हुआ अपने साथ पोषक तत्वों को भी लेकर आता है।
डिफ्यूजन (Diffussion):
यह प्रक्रिया उस समय सम्पन्न होती है जब एक स्थान पर पोषक तत्वों का कंसंट्रेशन अधिक होता है तो वह कम कंसंट्रेशन (Concentration) वाले स्थानों की ओर बढ़ते हैं। डिफ्यूजन की प्रक्रिया बहुत मंद गति से होती है और इसके साथ ही इसकी दूरी भी बहुत ही कम यानी दूरी मिलीमीटर अथवा सेंटीमीटर्स में होती है। जब वतावरण का तापमान कम होता है तो यह प्रक्रिया और भी मंद हो जाती है जिससे पोषक तत्वों का अवशोषण भी कम ही हो पाता है।
दूरी पर निर्भर करती है जड़ों की सक्रियता
पोषक तत्वों का सीधे मिट्टी से पौधों की जड़ों के द्वारा अवशोषित करने का भी एक तरीका होता है, हालांकि, यह प्रक्रिया कम प्रभावी होती है। जब जिंक का अवशोषण डिफ्यूजन की प्रक्रिया के माध्यम से होता है और सर्द मौसम में यह प्रक्रिया और मंद हो जाती है तो जिंक का अवशोषण रेट भी कम हो जाता है।
छिड़काव करने का उचित तरीका
सर्दियों के मौसम में जिंक देने का सबसे अच्छा तरीका छिड़काव विधि को ही माना जाता है। छिड़काव करने के लिए किसान, 5 ग्राम जिंक सल्फेट का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि आप नेपक ;ज्ञदंचेंबा ैचतंलमतद्ध का उपयोग कर रहे हैं तो 15 लीटर पानी में 75 ग्राम जिंक सल्फेट मिलाकर इसका छिड़काव करें। 200 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से पानी की आवश्यकता होती है, विशेषरूप से जब फसल छोटी हो और पौधों की जड़े ऊपर की ओर हों। यदि आपकी फसल बड़ी हो चुकी है और पौधों की जड़ें नीचे चली गई हैं तो आपको यह छिड़काव दो बार करना पड़ सकता है जिससे कि जिंक की पहुँच पूरी तरह से हो सके।
यदि पिछली फसल में भी जिंक का प्रयोग किया है
किसान भाईयों, जिंक तत्व की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि यदि आपने अपनी पिछली फसल में जिंक सल्फेट डाल दिया है तो अब इस फसल में आपको जिंक पोषक तत्व के डालने की आसवश्यकता नही पड़ेगी। जिंक सल्फेट की एक अच्छी डोज (10 कि.ग्रा. प्रति एकड़) लगाने से यह पोषक तत्व मृदा में स्थिर हो जाता है और इसका लाभ आगामी फसलों को प्राप्त होता है। इस प्रकार से यदि आपने अपनी पिछली फसल में जिंक का प्रयोग किया था तो फिर आपको अगले दो से तीन साल तके जिंक तत्व का प्रयोग करने की आवश्यकता नही होगी। ऐसा होने से न केवल आपका खर्च बचता है अपितु आपकी फसलों की उर्वरता भी बनी रहती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।