वैज्ञानिक विधि से करें सौंफ की खेती Publish Date : 10/12/2024
वैज्ञानिक विधि से करें सौंफ की खेती
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
सौंफ की खेती के लिए भूमि की तैयारी
सौंफ की खेती बलुई मृदा को छोड़कर प्रायः अन्य समस्त प्रकार की मृदाओं में, जिनमें जीवांश पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है, आसानी के साथ की जा सकती है। हालांकि, सौंफ की उत्तम पैदावार को प्राप्त करने के लिए उत्तम जल निकास की व्यवस्था वाली, चूना वाली, दोमट एवं काली मृदा सौंफ की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती है। भारी एवं चिकनी मृदा की अपेक्षा दोमट मृदा को ही सबसे अच्छा माना जाता है।
खेत की अच्छी तरह से जुताई करने के बाद 15 से 20 से.मी. की गहराई तक की मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बना लेना चाहिए। यदि खेत की तैयारी करने के दौरान खेत में पर्याप्त नमी उपलब्ध न हो तो पहले एक पलेवा देने के बाद ही खेत को तैयार करें। जुताई करने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बनाकर सिंचाई की सुविधा के अनुसार ही क्यारियां बना लेनी चाहिए।
खाद तथा उर्वरक
सौंफ की फसल की अच्छी बढ़वार पाने के लिए खेत की भूमि में जीवांश पर्याप्त मात्र में उपलब्ध होना आवश्यक है। यदि भूमि में जीवांश पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नही है तो 10 से 15 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी करने से पूर्व खेत में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।
इसके अतिरिक्त 60 कि.ग्रा. नाईट्रोजन एवं 30 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालना चाहिए। 20 कि.ग्रा. नाईट्रोजन एवं फॉस्फोरस की सम्पूर्ण मात्रा को खेत की अन्तिम जुताई के साथ ही खेत में मिला देना चाहिए। बची हुई नाईट्रोजन की मात्रा को दो बराबर भागों में बांटकर 20 किलोग्राम बुवाई के 50 दिन बाद एवं 20 कि.ग्रा. नाठट्रोजन को फसल पर फूल आने के समय इसकी सिंचाई करते समय देनी चाहिए।
बीज की मात्रा एवं बुवाई करने की विधि
सौंफ की खेती करने के लिए इसके बीज की मात्रा 8 से 10 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त रहता है। सौंफ की बुवाई आमतौर पर छिंटकवां विधि से ही की जाती है और निर्धारित बीज की मात्रा को एक समान छिड़काव के द्वारा करने के बाद हल्की दवाली चलाकर या हाथों से मिट्टी में मिला दिया जाता है। हालांकि सौंफ की बुवाई रोपण विधि फिर सीधे कतारों में भी की जा सकती है। साधी बुवाई करने के लिए 8 से 10 कि.ग्रा. बीज की आवश्यकता होती है।
सौंफ की बुवाई मध्य सितम्बर से अक्टूबर माह के दौरान की जाती है। सौंफ की बुवाई 40 से 60 से.मी. के अंतराल पर कतारों में हल के पीछे कूड में लगभग 2 से 3 से.मी. गहराई पर करना उचित रहता है।
सौंफ की उन्नत किस्में-
आर. एफ. 101:-
सौंफ की यह किस्म वर्ष 1999 में खेती करने के लिए अनुमोदित की गई थी और यह किस्म 185 से 190 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म रोग प्रतिरोधी होती है और इसमें वाष्प्शील तेल का प्रतिशत भी अधिक होता है। इसके साथ ही सौंफ की इस किस्म की औसत उपज 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर्ज की गई है।
आर. एफ. 125:-
सौंफ की इस किस्म को वर्ष 1997 में विकसित किया गया था। सौंफ की यह किस्म 190 से 198 दिन में पककर तैयार हो जाती है। सौंफ की इस किस्म में रोगप्रतिरोधकता भी अधिक पाई जाती है और इस प्रजाति की औसत उपज 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक की दर्ज की गई है।
बीजोपचार
बीज का उपचार करने के लिए बुवाई से पूर्व सौंफ के बीज को कारबेन्डाजिम (50 डब्लयू पी) 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. की दर से बीज का उपचार करें।
बुवाई करने का समय
सौंफ की बुवाई का उपयुक्त समय अक्टूबर का प्रथम पखवाड़ा होता है।
सौंफ में सिंचाई
सौंफ की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसकी पहली सिंचाई बुवाई के 20 दिनों के बाद करनी चाहिए जिससे की सौंफ के पौधों का अंकुरण अच्छी प्रकार से हो सके। सौंफ की दूसरी सिंचाई बुवाई करने के 50 से 60 दिन के बाद करनी चाहिए। इसके बाद सौंफ की तीसरी सिंचाई 100 दिन के बाद, चौथी सिंचाई 140 दिन के बाद, पांचवी सिंचाई 160 दिन के बाद और छठीं सिंचाई 178 दिन के बाद करना उपयुक्त रहता है।
निराई एवं गुड़ाई
सौंफ के पौधे जब 8 से 10 से.मी. के हो जाए तब गुडाई करके खरपतवारों को खेत से निकाल देना चाहिए। साथ ही गुड़ाई करते समय जिस स्थान पर पौधें अधिक हो वहां से कमजोर पौधों को निकालकर पौधे से पौधे की दूरी 20 से.मी. कर देनी चाहिए। इसके बाद भी समय समय पर आवश्यकता के अनुसार खरपतवार को निकालते रहना चाहिए।
इसके अलावा सौंफ में खरपतवार के नियंत्रण के लिए एक कि.ग्रा. पेन्डिमिथेलिन सक्रिय तत्व (3.33 लीटर स्टाम्प एफ-34) प्रति हेक्टेयर (4.5 मिली. प्रति लीटर पानी) की दर से 750 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 1-2 दिन के बाद छिड़काव करने से भी खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है।
सौंफ के प्रमुख कीट एवं व्याधियां
मोयला, पर्णजीवी (थ्रिप्स) एवं माइट (बरूथी)
मोयला सौंफ के पौधों के कोमल भाग से रस को चूसकर फसल को बहुत अधिक हानि पहुँचाता है। थ्रिप्स बहुत छोटे आकार का जीव होता है तथा कोमल एवं नई पत्तियों से हरे पदार्थ को खुरचकर खा जाता है, जिससे सौंफ की पत्तियों पर धब्बे से दिखाई देने लगते हैं और इससे पत्ते पीले होकर सूख जाते हैं।
माइट भी एक छोटे आकार का ही कीट होता है, जो सौंफ की पत्तियों पर घूमता रहता है और पौधा पीला होकर सूख जाता है।
कीटों के नियंत्रण के लिए डाईमिथोएट (30 ई.सी.) अथवा मेलिथियॉन (50 ई.सी.) एक मिली. प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए। आवश्यता होन पर इसी छिड़काव को 15 से 20 दिनों के बाद दोहराया जा सकता है।
पाउडरी मिल्ड्यू (छाछया)
सौंफ में इस रोग के लगने पर शुरू में सौंफ की पत्तियों एवं इसकी टहनियों पर सफेद रंग का चूर्ण सा दिखाई देता है जो बाद में पूरे पौधे पर ही फैल जाता है।
इस रोग के नियंत्रण हेतु 20 से 25 कि.ग्रा. गंधक के चूर्ण का भुरकाव या डायनोकेप (48 ई.सी.) 1 मिली. प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से करने से लाभ होता है।
जड़ एवं तना गलन रोग
इस रोग के प्रकोप के चलते सौंफ के पौधों के तना नीचे से मुलायम हो जाता है और पौधें की जड़ गलने लगती है। प्रभावित जड़ों पर छोटे-बड़े काले रंग के स्केलेरोशिया दिखाई देने लगते हैं।
इस रोग का नियंत्रण करने के लिए कार्बेन्डाजिम (50 डब्ल्यू पी) 2 गाम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करने के बाद ही बुवाई करनी चाहिए अन्यथा केप्टॉन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से भूमि का उपचार करें।
कटाई
सौंफ के दानें गुच्छों में आते हैं और खेत में मौजूद सभी पौधों के गुच्छे एक साथ ही नही पकते हैं। इसलिए इनकी कटाई भी एक साथ नही की जा सकती है। सौंफ की कटाई के लिए जैसे ही इसके दानों का रंग हरे से पीला होने लगे तो गुच्छों को तोड़ लेना चाहिए।
सौंफ की उत्तम पैदावार प्राप्त करने के लिए इसकी फसल को अधिक पकाकर पीला नही होने देना चाहिए। सौंफ के पौधों को सुखाते समय बार-बार पलटते रहना जरूरी होता है नही तो इसमें फफूँद लगने की सम्भावना रहती है।
उत्तम किस्म की चबाने (खाने) के काम आने वाली सौंफ को पैदा करने के लिए जिस समय दानों का आकार पूर्ण रूप से विकसित दानों के आकार की तुलना में आधा होता है तब ही इन छत्रकों की कटाई करने के उपरोत किसी स्वच्छ स्थान पर छाया में फैलाकर सुखा लेना चाहिए। बुवाई के काम आने वाले बीज की प्राप्ति हेतु मुख्य छत्रकों में दानों का आकार जब पूर्णतया पककर पीले पड़ने लगे तो इन्हें काट लेना चाहिए।
सौंफ की उपज
यदि सौंफ की खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो 22 से 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पूर्ण विकसित एवं हरे दाने वाली सौंफ की उपज प्राप्त कर पाना सम्भव है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।