चने का भरपूर उत्पादन प्राप्त करने का प्रभावी तरीका      Publish Date : 09/12/2024

           चने का भरपूर उत्पादन प्राप्त करने का प्रभावी तरीका

                                                                                                                                               प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

भारत में चने की खेती को एक महत्वपूर्ण एवं लाभकारी कृषि व्यवसाय माना जाता है। चने को Gram के नाम से भी जाना जाता है, चना प्रोटीन से भरपूर होता है इसीके चलते इसका उपयोग विभिन्न खाद्य पदार्थों में बखूबी किया जाता है। हालांकि यह बात भी सत्य है कि वर्ष 2023 की अपेक्षा इस वर्ष चने का अच्छा भाव किसानों को मिल रहा है, जो किसानों के लिए चने की खेती को अधिक ाभकारी बना रहा है। अतः जिन किसान भार्ठयों ने इस बार चना अपने खेतों में लगाया हुआ है, उनके लिए यह जानाना बहुत ही आवश्यक है कि वह चने का उत्पादन किस तरीके से बढ़ाएं जिससे कि वह चेने के उत्पादन कैसे चने का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के साथ ही इसका अच्छा भाव भी प्राप्त कर सकें।

                                                                  

वर्तमान समय में हम सभी जानते हैं कि आजकल किसान भाई अपनी के अच्छे उत्पादन को लेकर विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहे है, जैसे कि- मौसम की अनिश्चितता, कीटों और रोगों के माध्यम से हाने वाला नुकसान और सबसे महत्वपूण फसलों के उत्पादन की उचिततकनीकी ज्ञान की कमी अदि। ऐसे में अगर किसान भाई चने की फसल के उत्पादन के दौरान कुछ चीजों का विशेष ध्यान रखते हैं तो किसान बहुत ही आसानी के साथ 30 से 35 मन तक का अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। आज की अपनी इस ब्लॉग पोस्ट में हम किसान भाईयों को चने की खेती के सम्बन्ध में कुछ बहुत अच्छी और असरकारी तरीकें बताने जा रहें है, जिनको अपनाकर किसान भाई चने के उत्पादन को बढ़ा सकते हैं।

चने की बुवाई करने का उचित समय

किसान भाईयों, चने की फसल का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए सबसे अधिक महत्वपूण और जरूरी काम चने की बुवाई उचित समय पर करना होता है। हालांकि अब वह समय है जबकि चने की बुवाई करने का काम लगभग समाप्त हो चुका है। इसके उपरांत भी हम आपको यह बताना चाहते हैं कि यदि आप चने की बुवाई का काम बसंत के मौसम में करते हैं तो आपको चने का अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है। क्योंकि बसंत का मौसम चने की बुवाई करने के लिए आदर्श समय माना जाता है क्योंकि इस समय मृदा में उपलब्ध नमी और तापमान चने के लिए बहुत ही अनुकूल होता है। चने की बुवाई करने का समय सही नही होता है तो इससे चने के पौधों की वृद्वि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है जिससे चने का उत्पादन भी प्रभावित हो सकता है।

आमतौर पर चने की बुवाई करने का काम अक्टूबर और नवंबर के महीने में ही पूरा कर लेना चाहिए। परन्तु यदि आप धान की फसल को काटने के बाद चने की बवाई करने जा रहे हैं तो फिर आप 15 दिसंबर तक भी चने की बुवाई कर सकते हैं। हालांकि, इस समय चने की बुवाई करन पर चने के उत्पादन में मामूली गिरावट भी आ सकती है। इसके लिए किसान भाईयों का सलाह दी जाती है कि इस समय चने की बुवाई करने के लिए वह चने की देर से बुवाई की जाने वाली प्रजातियों का ही चयन करें।

चने की उचित किस्म का चयन करना

                                                      

चने की अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए चने की उचित किस्म का चयन करना अपने आपमें एक महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि यह चने की वृद्वि और उसके उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। आज बाजार में चने की विभिन्न किस्में उपलब्ध है, लेकिन इनमें से कुछ किस्में चने बेहतर उत्पादन में सहायता प्रदान करती हैं। इनमें से कुछ किस्मों जैसे विजेता, विजेता 92/18 और दफ्तरी-21 आदि को अपनाया जा सकता है। इन किस्मों को अपनाने से न केवल किसानों को चने का अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है बल्कि यह किस्में कीट एवं रोगों से भी कम ही प्रभावित होती हैं। चने की उपरोक्त किस्में अपनी रोग एवं कीट प्रतिरोधक क्षमता के चलते बेहतर उत्पादन प्रदान करने में सक्षम होती हैं, परन्तु अपने क्षेत्र की जलवायु और मृदा की किस्म के अनुसार ही चने की प्रजाति का चयन करना उचित रहता है।

चने में बीजोपचार का महत्व

चने का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए चने की फसल का कीट एवं रोगों से बचाव करना बहुत आवश्यक होता है। चने में विभिन्न प्रकार के रोग जैसे कि विल्ट चने की फसल को व्यापक हानि पहुँचा सकती है। इसलिए चने की फसल को रोग आदि से बचाव के लिए बीज उपचार के अच्छा एवं प्रभावी उपाय है। चने का बीज उपचार करने के लिए फँफूदनाशक का उपयोग करना भी बहुत आवश्यक होता है। बीजोपचार करने से चने की फसल तेजी से बढ़ती है और स्वस्थ रहती है। चने की फस्ल को उकठा और जड़ गलन आदि रोगों से बचाने के लिए चने के बीज का 2.5 ग्राम थायरम और 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम अथवा 1.5 से 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या मैन्कोजेब या थायरम से प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीज का उपचार करें। इसके साथ ही अन्य प्रकार के रोगों से चने की फसल का बचाव करने के लिए चने के बीज का उपचार राजोबिमय कल्चर से उपचार अवश्य करें। यदि आपके खेत में दीमक का प्रकोप है तो 100 कि.ग्रा. बीज को 800 मिली क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. को मिलाकर बीज को उपचारित करें।

चने की फसल में खाद एवं उर्वरक

आमतौर पर चने की फसल में खाद एवं उर्वरकों की अधिक आवश्यकता नही होती है, परन्तु चने का उत्पादन बढ़ाने के लिए चने की देशी किस्मों के लिए सिंचित और असिंचित क्षेत्रों में यूरिया 13 कि.ग्रा. और सुपर फॉस्फेट 50 कि.ग्रा. प्रति एकड की दर से चने की बुवाई करते समय खेत में डालना चाहिए। चने की काबूली किस्मों के लिए 13 कि.ग्रा. यूरिया और 100 कि.ग्रा. सुपर फॉस्फेट प्रति एकड की दर सें डालना चाहिए। यदि किसी कारण से बेसल डोज के रूप में डीएपी और यूरिया उपलब्ध नही है तो इसके लिए आप एनपीके 12-32-16, 60 किग्रा. प्रति एकड की दर से बुवाई करते समय डालें, क्योंकि एनपीके में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम का अच्छा संतुलन रहता है। इसके साथ 3 किग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश (केसीआई) औश्र 12 किग्रा. बेंटोनाइट सल्फर या 80 किग्रा. जिप्सम का उपयोग भी करना चाहिए। ऐसा करने से फसल के अच्छे अंकुरण के साथ ही फलियों की संख्या बढ़ती है जिससे अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है।

चने के लिए खरपतवारनाशक दवा

                                                               

किसी भी फसल के लिए वृद्वि और अच्छे उत्पादन की दिशा में खरपतवार एक बहुत बड़ी समस्या होती है, जो कि फसलीय पौधों को मृदा के माध्यम से प्राप्त होने वाले पोषक तत्वों को नष्ट कर देती है। इस समस्या के समाधान के लिए किसान भाई अपनी चने की फसल में होने वाले खरपतवार के प्रकोप को रोकने के लिए पैन्डिमेथालिन नामक दवा का उपयोग कर सकते हैं। इस दवा का उपयोग करने के लिए, 500 लीटर पानी में 2.50 लीटर पैन्डिमेथालिन दवा का घोल बनाकर चने की फसल पर छिड़काव कर सकते हैं। यह दवा चने की फसल से खरपतवारों को नष्ट करने के लिए बेहद प्रभावी मानी जाती है। हालांकि खरपतवारों को नष्ट करने के लिए परस्यूट नामक दवाई का उपयोग भी कर सकते हैं। इस दवा का प्रयोग करने से घास और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों नाश हो जाता है। ऐसे खरपतवारों में इस दवा का प्रयोग 1 से 2 पत्तियां आने के तुरंत बाद ही करना अधिक असरकारी रहता है।

चने की फसल में रोग नियंत्रण और कीटों से बचाव कैसे करे

                                             

चने की फसल पर विभिन्न प्रकार के कीट और रोगों का आक्रमण हो सकता है, जो चने की फसली की वृद्वि को प्रभावित करते हैं और इससे कुल मिलाकर चने की फसल का उत्पादन और गुणवत्त की दशा गिड़ सकती है। चने के सर्वाधिक प्रमुख कीटों में टिड!ढ़ी, स्लग और हाई फंगस आदि को शामिल किया जा सकता है। इन कीटों का नियंत्रण करने के लिए चने की फसल में समय-समय पर उचित कीटनाशकों का प्रयोग करना आवश्यक होता है। अतः जब भी आपको चने की फसल पर कीट नजर आएं तो कीटों के नियंत्रण हेतु डीवार्मर एवं अंडा किलर जैसे कीटनाशकों का उपयोग करना चाहिए। इस प्रयोग से फसल में कीटों की संख्या कम हो जाती है और फसल की वृद्वि निर्बाध रूप से जारी रहती है। इसके अतिरिक्त, पौधों पर फल आने की अवस्था में फली छेदक नामक रोग चने की फसल को अत्याधिक हानि पहुँचा सकता है। चने की फसल में फल छेदक रोग के लने पर इसके नियंत्रण हेतु चने पर लगभग 50 प्रतिशत फूल के आने पर एनपीवी एलई 1 मिली. दवाई प्रतिलीटर पानी की दर से घोल बनाकर इसका छिड़काव फसल पर करने से प्रभावी रोग नियंत्रण होता है।

सिंचाई करने का उचित समय

                                                                

 चने की फसल के उचित विकास और अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए चने की फसल की सही समय पर सिंचाई करना भी बहुत आवश्यक है। हालांकि चने की फसल को अधिक सिंचाई करने की आवश्यकता नही होती है, अपितु सीमित मात्रा में पानी की सहायता से भी चने का अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। चूँकि चने की फसल में सिंचाई का उद्देश्य मृदा में उचित नमी का स्तर बनाए रखना होता है। चने की फसल से उत्तम उत्पादन प्राप्त करने के लिए सिंचाई करने के समय का भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए यदि आप चने की फसल में सही और उचित तरीके से सिंचाई करते हैं तो इससे फसल की बढ़वार उचित तरीके से होती है। इसके लिए आपको चने की पहली सिंचाई आवश्यकता के अनुसार इसकी बुवाई करने के 45 से 60 दिनों के बाद अर्थात फसल में फूल आने से पूर्व तथा चने की फसल की दूसरी सिंचाई इसकी फलियों में दाना बनते समय की जानी चाहिए। यदि सर्दियों में वर्षा हो जाती है तो इसके बाद सिंचाई करने की आवश्यकता नही होती है। असिंचित क्षेत्र और देरी से बुवाई करने की दशा में दो प्रतिशत यूरिया के घोल का छिडकाव फसल में फूल के आने के समय करना बहुत लाभकारी पाया गया है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।