एरोपोनिक तकनीक से आलू की खेती करने का तरीका      Publish Date : 28/11/2024

              एरोपोनिक तकनीक से आलू की खेती करने का तरीका

                                                                                                                                             प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

एरोपोनिक तकनीक से आलू उगाने के दौरान मृदा का उपयोग नहीं किया जाता है, हवा में ही आलू की खेती की जाती है, जिससे कम लागत में आलू की अधिक उपज प्राप्त होती है. साथ ही आलू की गुणवत्ता भी मिट्टी में पैदा होने वाले आलू की अपेक्षा अच्छी होती है। एरोपोनिक तकनीक में बड़े-बड़े बक्सों में आलू के पौधे लगाकर इन बक्सों को लटकाया जाता हैं।

                                                                      

इस तकनीक से प्राप्त आलू बीज की बीमारी से रहित होते हैं। बक्से में लटके हुए आलू की जड़ों को तमाम पोषक तत्व पानी और हवा के माध्यम से ही प्राप्त होते हैं।

एरोपोनिक तकनीक का लाभ यह है कि इस तकनीक से अधिक आलू उगाए जा सकते हैं। तकनीक के तहत टिश्यू कल्चर और बायोटेक्नोलॉजी की सहायता से आलू के पौधे तैयार किए जाते हैं। इस तकनीक से खेती करने के लिए सबसे पहले टिश्यू कल्चर विधि से तैयार किए गए आलू के पौधों को 20 दिन तक कोकोपिट में रखा जाता है। इसके बाद कोकोपिट से पौधों को निकालकर एरोपोनिक माध्यम में लगा दिया जाता है।

                                                                 

एरोपोनिक में पौधों को आवश्यकता के अनुसार ही अलग-अलग पोषक तत्व उपलब्ध कराए जाते है। बॉक्स में हर दिन आलू की क्वालिटी और अच्छे साइज के लिए पौधों का पीएच मान चेक किया जाता रहता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, किसानों को इस तकनीक को अपनाने से काफी लाभ होता है। इसके अतिरिक्त बहुत ही कम लागत में ालू की अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

इस तकनीक के अंतर्गत आलू के पौधों की लटकती हुई जड़ों को पौधों की आवश्यकता के अनुसार ही पोषक तत्व प्रदान किए जाते हैं। एरोपोनिक तकनीक के माध्यम से साल में प्रत्येक 3 महीने में आलू की उपज प्राप्त की जा सकती है। मिट्टी से संपर्क नहीं रहने के कारण आलू का पौधा पूरी तरह से स्वस्थ और रोग रहित रहता है। साथ ही इस तकनीक से आलू की उपज में मृदा जनित रोगों पर होने वाले व्यय में कोई भी लागत नही लगने के कारण लागत में भी काफी कमी होकर किसान का लाभांश बढ़ता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।