अरहर की खेती      Publish Date : 21/11/2024

                                  अरहर की खेती

                                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

भारत में सबसे ज्यादा अरहर दाल का सेवन किया जाता है। यह कई पोषक तत्वों से भरपूर होती है और स्वादिष्ट भी होती है। अरहर दाल में कैल्शियम और आयरन सहित कई पोषक तत्व पाए जाते हैं, जिसकी खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। यदि आप भी कर रहे हैं अरहर दाल की खेती करना चाहते हैं तो हमारे कृषि विशेषज्ञ, सरदार वल्लभाभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर बता रहे हैं कि अरहर की खेती करने का सही तरीका क्या है।

                                                             

वर्तमान समय में किसान अपने खेतों को सालभर तक फंसा कर नहीं रखना चाहते हैं, शायद यही कारण है कि अधिकतर किसान दाल की खेती से बचना चाहते हैं, क्योंकि अधिकतर दाल की खेती में लगभग सालभर का समय लग ही जाता है और सालभर लगने के कारण किसान इस खेत में दूसरी फसल नहीं ले पाते हैं और इस चलते किसानों को अधिक मुनाफा नहीं हो पाता है।

इसके सम्बन्ध में डॉ0 सेंगर ने बताया कि अरहर की जो पहले की प्रजातियां थी, उनको तैयार होने में लगभग 260 से 250 दिन का समय लग जाता था, लेकिन आज हम जिस अरहर की प्रजाति बुआई की बात कर रहे है, इस प्रजाति का नाम पन्त अरहर-291 है।

अरहर की यह प्रजाति 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, यानी कि केवल 6 महीने में फसल पूरी तरीके से पककर तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को सालभर इंतजार भी नहीं करना पड़ता है और जैसे ही अरहर दाल की फसल के बाद किसान का खेत खाली होता है, वैसे ही गेहूं की बुआई की जा सकती है।

                                                         

शीघ्र पकने वाली ऐसी प्रजातियों की बुआई जून के प्रथम पखवाड़े तथा मध्यम देर से पकने वाली प्रजातियों की बुआई जून के द्वितीय पखवाड़े में करनी चाहिए। अरहर की बुआई सीड ड्रिल या हल के पीछे चोंगा बॉंधकर पंक्तियों में करनी चाहिए और साथ ही उचित भूमि का चुनाव करना भी अति आवश्यक होता है। इसके लिए अच्छे जल निकासी और उच्च उर्वरता वाली दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है। खेत में पानी का ठहराव फसल को भारी हानि पहुंचाता है. इसलिए ऊंचे खेत या फिर मेड़ बनाकर बुवाई करनी चाहिए।

अरहर की खेती के लिए दोमट या फिर अधिक स्फुर वाली भूमि बेहतर मानी जाती है। आपकी जानकारी के लिए आपको बता दें कि अरहर की फसल ज्यादा पानी को सहन नहीं कर सकती है। ऐसे में खेत में जल निकासी की व्यवस्था होना बहुत जरूरी होता है। फसल उगाने से पहले 2 से 3 बार खेत में हल या बखर के माध्यम से बुआई करनी होती है और जमीन को समतल करना होता है। इसके अलावा बेहतरीन उच्च गुणवत्ता वाली फसल के लिए अरहर की फसल खरपतवार मुक्त होनी चाहिए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।