सौंफ की खेती की वैज्ञानिक विधि      Publish Date : 19/11/2024

सौंफ की खेती की वैज्ञानिक विधि

प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

सौंफ की खेती के लिए आवश्यक तथ्य-

भूमि एवं खेती की तैयारी

सौंफ की खेती बलुई मृदा को छोड़कर बाकी समस्त प्रकार की मृदाओं जिनमें पर्याप्त मात्रा में जीवाँश उपलब्ध हो, में आसानी के साथ की जा सकती है। सौंफ का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए उचित जल निकास की सुविधा से युक्त चूने वाल, दोमट एवं काली मृदा को उपयुक्त माना जाता है। जबकि भारी एवं चिकनी मृदा की अपेक्षा दोमट मृदा को सौंफ की खेती के लिए अच्छा माना जाता है।

खेत की अच्छे प्रकार से जुताई करने के बाद 15 से 20 से.मी. की लगभग गहराई तक खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। यदि खेत मेें पर्याप्त मात्रा में नमी उपलब्ध न हो तो खेत को पलेवा करने के बाद ही तैयार करना चाहिए। खेत की जुताई करने के बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करने के बाद सिंचाई की सुविधा के अनुसार खेत में क्यारियाँ बना लेनी चाहिए।

सौंफ की उन्नत किस्में-

आर. एफ.-101:

सौंफ की यह किस्म वर्ष 1999 में जारी की गई थी। सौंफ की यह किस्म  185 से 190 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसत उपज 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। सौंफ की यह किस्म रोग प्रतिरोधी होने के साथ ही इसमें वाष्प्शील तेल का प्रतिशत भी अधिक होता है।

आर. एफ.-125: सौंफ इस प्रजाति को वर्ष 1997 में विकसित किया गया था। लगभग 190 से 198 दिनों में पककर तैयार होने वाली इस प्रजाति की अधिकतम पैदावार 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती है। इसके साथ ही सौंफ की इस प्रजाति में रोगप्रतिराधकता भी अधिक होती है।

बीज की मात्रा एवं बुवाई करने की विधि

सौंफ की बुवाई करने के लिए 8 से लेकर 10 किलोग्राम ्रपति हेक्टैयर की दर से पर्याप्त रहता है। सौंफ बुवाई छिटकवाँ विधि से की जाती है और निर्धारित बीज की मात्रा को एक समान तरीके से छिड़ककर हल्की दवाली चलाकर या फिर हाथ से बीज को मिट्टी में मिला दिया जाता है। सौंफ की सीधी बुवाई करने के लिए 8 से 10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

सौंफ की बुवाई का उचित समयः

सौंफ की बुवाई करने के लिए अक्टूबर माह का प्रथम पखवाड़ा माना जाता है वैसे मध्य सितम्बर से अक्टूबर माह के अंत तक का समय सबसे अधिक उपयुक्त माना जाता है। इसकी बुवाई 40 से 50 से.मी. की दूरी पर कतारों में हल के पीछे कूड़ों में 2 से 3 से.मी की गहराई पर करनी चाहिए।

बीजोपचार कैसे करें

सौंफ के बीज की बुवाई करने से पूर्व इसके बीज को कॉरबेन्डाजिम (50 डब्ल्यू. पी.) 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीज को उपचारित करना चाहिए।

सिंचाईः

सौंफ के पौधों को सिंचाई की आवश्यता अधिक होती है। सौंफ की प्रथम सिंचाई इसकी बुवाई करने के 20 बाद करनी चाहिए ऐसा करने से बीज का जमाव अच्छी तरह से होता है। दूसरी सिंचाई बुवाई के 50 दिन बाद, तीसरी सिंचाई 100 दिन, चौथी सिंचाई 140 दिन, पाँचवीं सिंचाई 160 दिन और छठी सिंचाई 170 दिनों के बाद करनी चाहिए।

सौंफ की निराई एवं गुड़ाईः

सौंफ के पौधे जब खेत में 80 से 10 से.मी. के हो जाएं तो खेत की गुड़ाई कर खेत को खरपतवार रहित बनाए। गुड़ाई करते समय पौधों की अधिक संख्या और कमजोर पौधों को निकालकर पौधे से पौधे के बीच की दूरी को 20 से.मी करना सुनिश्चित करें। ऐसा करने से पौधों का विकास अच्छा होता है और इसके बाद भी आवश्यकता के अनुसार खेत से खरपतवारों को निकालते रहना चाहिए।

सौंफ के खेत में खरपतवार के रासायनिक नियंत्रण के लिए 1 कि.ग्रा. पेन्डिमिथेलिन सक्रिय तत्व (3.33 लीटर स्टाम्प एफ-34) प्रति हेक्टेयर (4.5 मिली प्रति लीटर पानी) 750 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई करने के एक से दो दिन के बाद छिड़काव करने से खपतवार का प्रभावी नियंत्रण होता है।

सौंफ के प्रमुख रोग एवं कीट

मोयला, पर्णजीवी थ्रिप्स एवं बरूथी (माइट)

                                                        

मोयला सौंफ के पौधे के कोमल भाग से रस को चूसकर फसल को अत्याधिक हानि पहुँचाता है।

थ्रिप्स नामक कीट का आकार बहुत छोटा होता है यह कीट पौधे के कोमल भागों एवं नई पत्तियों के ऊपर से हरिमा युक्त पदार्थ को खुरचकर खाता है, जिससे पौधों की पत्तयों पर धब्बे दिखाई देने लगते हैं और पौधों के पत्ते पीले होकर पूर्ण रूप से सूख जाते हैं।

इसी प्रकार से माइट भी एक छोटे आकार का ही कीट होता है जो पौधों की पत्तियों पर घूमता रहता है और उनका रस चूसता रहता है, जिसके कारण पूरा पौधा ही पीला पड़ जाता है।

उपरोक्त कीटों के नियंत्रण हेतु डाईमिथोएट (30 ई.सी.) अथवा मैलीथियॉन (50 ई.सी.), मात्रा एक मिली प्रति लीटर पानी की दर से खड़ी फसल पर छिड़काव करें। यदि आवश्यक हो तो यही छिड़काव 15 से 20 दिन के बाद फिर से करें।

छाछया (पाउडरी मिल्ड्यू)

                                                                 

जब फसल में यह रोग लगता है तो इसके प्रारम्भ में पौधों की पत्तियों और टहनियों पर सफेद रंग का चूर्ण सा दिखाई देने लगता है जो कि बाद में पूरे पौधे पर ही फैल जाता है।

इस रोग के नियंत्रण हेतु 20 से 25 किग्रा. गंधक के पाउडर का भुरकाव प्रति हेक्टेयर की दर से करें अथवा डायनोकेप (48 ई.सी.) एक मिली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर उसका छिड़काव करें और आवश्यकता होने पर 15 दिन के बाद इस छिड़काव को फिर से दोहराया जा सकता है।

जड़ एवं तना गलन

इस रोग के प्रकोप के चलते पौधे का तना नीचे से मुलायम हो जाता है और प्रभावित पौधों की जड़े गल जाती हैं और जड़ों पर काले रंग के स्केलेरोशिया दिखाई देने लगते हैं।

इस रोग का नियंत्रण करने के लिए बुवाई करने से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम (50 डब्ल्यू. पी.) 2 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करने के बाद ही बीज की बुवाई करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त केप्टॉन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से भूमि को भी उपचारित कर लेना चाहिए।

सौंफ की कटाई कब करें

                                                              

सौंफ के दाने गुच्छो में आते हैं तथा एक ही पौधे पर आने वाले सभी गुच्छे एक साथ ही नही पकते हैं। इसलिए सभी गुच्छों की कटाई एक साथ रिना सम्भव नही हो पाता है। इसलिए जब दानों का रंग पीला होने लगे, तो गुच्छों को पौधों पर से तोड़ लेना चाहिए। बाजार में सौंफ के अच्छे दाम प्राप्त करने के लिए सौंफ की फसल को अधिक पककर पीला नही पड़ने देना चाहिए।

कटी फसल को सुखाते समय उसको बार-बार पलटते रहना चाहिए क्योंकि ऐसा नही करने से फसल में फँफूद लगने की सम्भावना रहती है। उत्तम किस्म की सौंफ (चबाने/खाने) वाली सौंफ को पैदा करने के लिए जब इसके दानों का आकार पूर्ण रूप से विकसित दानों के आकार का लगभग आधा होता है, तभी इन छत्रकों की कटाई कर स्वच्छ स्थान पर छाया में फैलाकर सुखा लेना चाहिए। जबकि बुवाई करने के लिए बीज प्राप्त करने के लिए मुख्य छत्रकों के दाने जब पूर्ण रूप से पककर पीले पड़ने लगें तो ही उन्हें काटना चाहिए।

सौंफ की उपज

यदि सौंफ की खेती वैज्ञानिक विधि से की जाए तो 22 से 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पूर्ण विकसित और हरे रंग के दानों वाली सौंफ की उपज को प्राप्त किया जा सकता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।