सरसों की वैज्ञानिक खेती      Publish Date : 07/11/2024

                                सरसों की वैज्ञानिक खेती

                                                                                                                                         प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं गरिमा शर्मा

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मोदीपुरम, मेरठ के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर ने बताया कि जो किसान भाई सरसों की अगेती खेती करना चाहते हैं, तो उनके लिएं अक्टूबर-नवंबर का महीना बहुत अधिक उपयुक्त होता है। सरसों की कई किस्में ऐसी हैं, जिनकी अगेती बुवाई कर अच्छा उत्पादन और अधिक मात्रा में तेल प्राप्त किया जा सकता है।

                                                          

सरसों की आरएलसी-1 किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आरसीएआर) के द्वारा विकसित किया गया है। इस किस्म से 25 से 30 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। सरसों की यह किस्म 120 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है और इसमें तेल की मात्रा भी 42 से 45 प्रतिशत होती है साथा ही यह किस्म रोग प्रतिरोधी किस्म है।

सरसों की पीएल 501 किस्म अधिक उत्पादन के साथ ही रोग प्रतिरोधी किस्म है। इस किस्म को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से विकसित किया गया हैं सरसों की यह किस्म 120 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 25 से 30 क्विंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस किस्म में भी तेल की मात्रा 42 से 45 प्रतिशत पाई जाती है।

सरसों की पूसा अग्रणी किस्म की पैदावार अच्छी होने के साथ ही यह रोग प्रतिरोधक भी है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के पूसा संस्थान ने विकसित किया है। इसकी बुवाई अक्टूबर से नवंबर माह तक की जा सकती है। सरसों की यह किस्म 120 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 22 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार प्राप्त की जा सकती है और इस किस्म में तेल की मात्रा 40 से 42 प्रतिशत तक होती है।

                                                                 

सरसों की पूसा बोल्ड किस्म जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के पूसा संस्थान द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म 20 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार देती है। इस किस्म की खास बात यह है कि यह किस्म कम लागत में तैयार हो जाती है। इस किस्म में 40 से 42 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है। सरसों की यह किस्म भी जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील है। सरसों की यह किस्म 120 से 130 दिन में पककर तैयार हो जाती है।

                                                             

सरसों की किस्म पूसा ज्वालामुखी, एक अधिक पैदावार देने वाली किस्म है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के पूसा संस्थान की ओर से विकसित किया गया है। यह एक रोग प्रतिरोधी किस्म है जो लगभग 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 40 से 45 प्रतिशत तक पाई जाती है। सरसों की ज्वालामुखी किस्म से प्रति एकड़ 25 से 30 क्विंटल तक उत्पादन देती है। इस किस्म की बुवाई किसान अक्टूबर से नवंबर माह में कर सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।