
गेंहूँ की बुवाई करने का उचित समय Publish Date : 23/10/2024
गेंहूँ की बुवाई करने का उचित समय
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
गेंहूँ की खेती करने के दौरान इसकी बुवाई करने के के समय का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसलिए गेंहूँ की खेती करने के लिए सही समय और तकनीकों को अपनाना बहुत आवश्यक होता है इस प्रकार यदि किसान भाई गेंहूँद की खेती के दौरान सही तरीके अपनाते हैं तो वह गेंहूँ का बहुत अच्छा उत्पान प्रात कर सकते हैं और गेंहूँ से हो वाले अपने मुनाफे में ंभी उचित वृद्वि कर सकते हैं।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, गेंहूँ की बुवाई करने का सबसे उचित समय 15 अक्टूबर से 15 नंबर के बीच का समय होत है। इस समय गेंहूँ की बुवाई करने से गेंहूँ की फसल में अंकुरण और उसका उत्पादन बहुत अच्छा होता है।
इस अवधि के दौरान, उच्च गुण्वत्ता से युक्त गेंहूँ की प्रजातियों की बुवाई ही करनी चाहिए। इसके साथ ही उर्वरकों के सही उपयोग से गेंहूँ के उत्पादन को दोगुना भी किया जा सकता है।
इस अवधि के पश्चात् 15 दिसम्बर से 20-25 जनवरी के बीच मध्यम और देरी से बुवाई की जाने वाली गेंहूँ की प्रजातियों की बुवाई की जाती है। गेंहूँ की फसल की सही समय पर बुवाई करने से फसल की वृद्वि और उत्पादन में महत्वपूर्ण सुधार होता हैं, अतः किसानों को गेंहूँ की फसल की बुवाई के दौरान समय का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
खेत की तैयारी एवं बीज की मात्रा
गेंहूँ की फसल के लिए खेत को अच्छे से तैयार करन बहुत आवश्यक होता है। गेंहूँ की बुवाई करने से पूर्व खेत को अच्छे तरीके से तैयार करना महत्वपूर्ण काफी होता है। खेत की जुताई करते समय खेत में नमी को बनाए रखना चाहिए, जिससे कि बीज का अंकुरण सही प्रकार से हो सके। खेत की उचित तैयारी के लिए सबसे पहले दो से तीन ट्रॉली गोबर की खाद (अच्छी तरह से सड़ी हुई) खेत में मिलाकर खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए। जुताई करने के बाद रोटावेटर की सहायता से खेत को समतल करके मिट्टी को भुर-भुरा बना लेना चाहिए, जिससे कि बीज का अच्छा अंकुरण हो सके।
एक बीघा भूमि के लिए, 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच बुवाई करते समय 25 किलोग्राम और गेंहूँ की देरी से बुवाई करने की दशा में गेंहूँ के बीज की मात्रा को बढ़ाकर 35 किलोग्राम प्रति बीघा कर लेनी चाहिए। इस प्रकार से बीज की सही मात्रा फसल के स्वास्थ्य और उसकी उपज को भी प्रभावित करता है।
उर्वरक प्रबन्धन
गेंहूँ की खेती में उर्वरकों का सही तरीके से उपयोग करना और सही मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करना भी बहुत जरूरी होता है। यदि खेत में गोबर की खाद एवं कम्पापेस्ट आदि की कम मात्रा यूज की गई है तो यूरिया, डीएपी, फॉस्फोरस और पोटाश का उपयोग करना चाहिए। बुआई के समय 5 किग्रा. सल्फर और 3 किग्रा. जिंक सल्फेट का प्रयोग करना भी लाभकार सिद्व होता है।
उर्वरक की मात्रा प्रति बीघा की दर से
- यूरिया 30-35 किलोग्राम तक।
- डीएपी और पोटाश 25 से 30 किलोग्राम तक।
- सल्फर 5 किलोग्राम
गेंहूँ की फसल में खरपतवार के नियंत्रण के लिए बुवाई करने के 24 घंटे के अंदर ही खेत में खरपतवार नाशक का छिड़काव कर देना उचित रहता है। यदि खेत में बुवाई करने के बाद भी खरपतवार बढ़ते हैं तो 25 से 30 दिन की फसल पर खरपतवार का प्रयोग करना ठीक रहता है।
गेंहूँ की बुवाई करने की विधिः
गेंहूँ की बुवाई करने के लिए शीड ड्रिल विधि को अपनाना अधिक लाभप्रद हो सकता है। इस विधि के अंतर्गत बीज एवं उर्वरक एक साथ ही प्रयोग किए जा सकते हैं, जिससे गेंहूँ के पौधों को जमाव के लिए आवश्यक पोषक तत्व समय से मिलने लगते हैं। इससे पौधों की वृद्वि में तेजी के साथ ही उन्हें स्वास्थ्य बनाए रखने में सहायता प्राप्त होती है।
गेंहूँ की बुवाई के दौरान इसके पौधों के बीच की दूरी 4 से 5 सेमी. और पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी 7 से 8 इंच रखनी चाहिए। गेंहूँ के सही अंकुरण के लिए बीज की गहराई 4 से 5 सेमी. रखनी चाहिए।
गेंहूँ में सिंचाई प्रबन्धन
गेंहूँ की फसल में सिंचाई का समय भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। गेंहूँ में पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद ही कर देनी चाहिए। गेंहूँ की दूसरी सिंचाई बुवाई के 20 से 25 दिनों के बाद अवश्य ही करनी चाहिए। इस सिंचाई के साथ ही यूरिया का प्रयोग करना भी आवश्यक होता है। इस प्रकार सिंचाई एवं उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करना फसल की वृद्वि एवं उत्पादन में वृद्वि के लिए बहुत आवश्यक होता है।
गेंहूँ की किस्मों का चयन
विभिन्न क्षेत्र एवं मृदा की प्रकृति के अनुसार गेंहूँ की उन्नत प्रजातियों का चयन एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अतः किसान भाई अपने क्षेत्र और मृदा के प्रकार के अनुसार संतुत प्रजातियों का चयन कर गेंहूँ की बुवाई करेंगे तो निश्चित् ही उनको अच्छा उत्पादन प्राप्त होगा और इससे उनकी आय भी बढ़ेंगी।
इस प्रकार से गेंहूँ की फसल में बुवाई का समय, उर्वरकों का संतुलित प्रयोग, सिंचाई का उचित प्रबन्धन और अपने क्षेत्र और मृदा के अनुसार प्रजाति का चयन करके किसान भाई अपनी गेंहूँ की फसल का उत्पादन और अपनी आय दोनों ही बढ़ा सकते हैं और इससे अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।