रागी की खेती और उसकी उन्नत किस्में      Publish Date : 19/10/2024

                  रागी की खेती और उसकी उन्नत किस्में

                                                                                                                                                             प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

मोटे अनाज के तौर पर की जाने वाली रागी की खेती, जिसे देश के अनेक क्षेत्रों में महुआ की खेती के नाम से भी जाना जाता है। रागी के दानों में खनिज पदार्थों की मात्रा अन्य अनाज फसलों की अपेक्षा अधिक उपलब्ध होती है।

                                                               

रागी का सेवन रोटी, डोसा एवं खिचड़ी के रूप में किया जाता है, जबकि इसे आटे में मिश्रित कर रोटी बनाने में उपयोग एक बड़े पैमाने पर किया जाता रहा है। रागी में मेथियोनाइन नामक अमीनो अम्ल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध पाया जाता है। रागी के पत्ते, रेशे के साथ ही साथ अन्य खनिज, जिनमें प्रमुख रूप से कैल्शियम, आयरन और मैग्नीशियम आदि भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध पाए जाते हैं। रागी विशेष रूप से गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।

वास्विकता तो यह है कि अधिकांश अनाजों में कैल्शियम की मात्रा 100 मिलीग्राम तक उपलब्ध होती है जबकि रागी में यह 344 मिलीग्राम पाया जाता है। इसलिए रागी का सेवन करने से इसमें उपलब्ध कैल्शियम की उच्च मात्रा के चलते बच्चों एवं वृद्व लोगों की हड्डियों को सुदृढ़ता प्राप्त होती है।

रागी का सेवन करने से ऑस्टियोपोरोसिस रोग के कारण होने वाले अस्थि भंग की प्रक्रिया को कम करने में भी सहायता प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त रागी में पाए जाने वाले पाचनशील कार्बोहाइड्रेट एव्र फिनोलेक्स मधुमेह (डायबिटीज) के खतरे को कम के साथ ही यह आंखों के स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी सिद्व होता है।

                                                              

नवजात शिशुओं विशेष रूप से 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों को रागी की लस्सी बनाकर हमारे देश में प्राचीन काल से ही पिलाई जाती रही है। हालांकि रागी मधुमेह के लिए एक सम्पूर्ण आहार माना जाता है। वहीं रागी में उपलब्ध एंटीऑक्सीडेंट्स अनिंद्रा और अवसाद की समस्या को दूर करने में भी मददगार साबित होते हैं।

कैसे करें खेत की तैयारी

रागी की खेती करने के लिए आरम्भ में खेत की तैयारी के दौरान खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेष को नष्ट कर खेत को मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर देने के बाद खेत को कुछ समय के लिए खुला ही छोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से धूप के प्रभाव से मिट्टी में मौजूद सभी हानिकारक कीट नष्ट हो जाते हैं। रागी की रोपाई के लिए खेत की भुरभुरी मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि भुरभुरी मिट्टी में रागी के बीजों का अंकुरण अच्छा होता है।

इसके बाद खेत में जैविक खाद के रूप में पुरानी गोबर की खाद को अच्छभ् तरह से मिट्टी में मिला देना चाहिए, तथा इसके बाद कल्टीवेटर से 2-3 तिरछी जुताई कर देनी चाहिए। खाद को पूरी तरह से मिट्टी में मिला देने के बाद खेत में पानी चलाकर उसकी पलेवा कर देनी चाहिए।

पलेवा करने के 3-4 दिन के बाद जब खेत की जमीन ऊपर से सूखी हुई दिखाई देने लगे तो एक जुताई फिर से करने के बाद खेत में रोटावेटर चलाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। इसके बाद खेत में पाटा लगाकर उसे समतल बना लेना चाहिए, जिससे कि जल भराव के जैसी समस्या का सामना नही करना पड़ें।

कितनी हो खाद एवं उर्वरक की मात्रा

अपने खेत की मृदा की जांच के आधार पर ही उर्वरकों का प्रयोग करना उचित रहता है। वैसे सामान्य स्थितियों में गोबर की खाद 10 टन, नाइट्रोजन 60 किलोग्राम, फॉस्फोरस 40 किलोग्राम तथा पोटाश 30 किलोग्राम की दर से प्रयोग करना उचित रहता है।

कैसे करे बीजोपचार

                                                   

रागी के बीज खेत में बोने से पूर्व उनका उपचार करना बहुत जरूरी होता है। रागी के बीज को उपचारित करने के लिए थीरम, बाविस्टीन अथवा कैप्टॉन नामक दवाओं का उपयोग करना चाहिए।

रागी की उन्नत किस्में

बीएल-382, बीएल-380, बीएल-389, बीएल-352, बीएल-347, बीएल-315, बीएल-324, बीएम-9-1, जीपीयू-26, जीपीयू-45, जीपीयू-48, जीपीयू-67, टीएनयू-946, वीआर-726 आदि रोगी की उन्नत किस्में हैं।

कितनी हो बीज की मात्रा

रागी की बुआई पंक्तियों में करने के लिए 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और छिटकवां विधि से बुआई करने हेतु 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई करनी चाहिए।

सिंचाई की व्यवस्था

रागी की फसल को अन्य मोटे अनाजों की तरह ही अधिक पानी की आवश्यकता नही होती है। रागी के पौधों मेें अधिक समय तक सूखे को सहन करने की क्षमता होती है। इस हिसाब से रागी की प्रथम सिंचाई बुआई के एक महीने के बाद करनी चाहिए। दूसरी सिंचाई की आवश्यकता फूल बनने और दानों के विकास के समय करनी चाहिए।

कैसे करें खरपतवार नियंत्रण

                                                         

रागी अथवा महुआ की फसल में होने वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए समय समय पर इसकी निराई-गुड़ाई करते रहना बहुत आवश्यक है। रोगी में पहली निराई बुआई के 21 से 25 दिनों के बाद करने की आवश्यकता होती है। प्रति इकाई क्षेत्र में पौधों की अधिक संख्या होने की स्थिति में अतिरिक्त पौधों की छटनी कर उन्हें बाहर निकाल देना चाहिए। छंटाई का यह काम प्रत्येक 15 से 20 दिन के अंतराल पर करते रहना चाहिए।

विभिन्न रसानों के प्रयोग करने से भी खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए एक लीटर आइसोप्रोट्यूरान नामक दवा का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करने से खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है।

रोगों पर नियंत्रण कैसे करें 

आमतौर पर रागी की फसल में रोग एवं कीट कम ही लगते हैं, हालांकि, इसकी बालियों में दाना बनते समय गंधी कीट का आक्रमण रागी की फसल पर हो सकता है। इसलिए धान एवं रागी दोनों ही फसलों की खेती में स्थिरता होने पर इसकी रोकथाम के लिए 1.5 प्रतिात इकोलक्स लिडेन धूल का 20 से 25 किलोग्राम पानी प्रति हेैक्टेयर की दर से खड़ी फसल पर छिड़काव करने से इस कीट की प्रभावी रोकथाम होती है।

रागी की फसल में झुलसा नामक रोग लगता है और इस रोग की रोकथाम करने के लिए 1 लीटर हिनसिन नामक दवा को 100 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर छिड़काव करने से रोग का नियंत्रण हो जाता है।

कटाई और गहाई कैसे करें

रागी के पौधे रोपाई करने के लगभग 110 से 120 दिन में कटाई करने के योग्य हो जाते हैं। अतः 110 से 120 दिनों के बाद रागी के पौधों के सिरों को इनसे अलग कर देना चाहिए। इसके सिरों की कटाई करने के बाद उन्हें खेत में ण्कत्र कर कुछ दिनों के लिए सूखने के लिए छोड़ देना चाहिए। जब रागी के दाने अच्छे तरीके से सूख जाए तो मशीन की सहायता से इसके दानों को अलग कर बोरों में भरकर रखना चाहिए।

क्या होती है उत्पादन की दर

रागी या मडुवा की उत्पादन की दर 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है। इसकी खेती करके किसान अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।