कम पानी में क्विनोआ का वैज्ञानिक विधि से खेती Publish Date : 28/09/2024
कम पानी में क्विनोआ का वैज्ञानिक विधि से खेती
प्रोफसर आर. एस. सेंगर
जल की कमी आज पूरे विश्व में एक व्यापक समस्या बन चुकी है। शुष्क एवं अर्द्धशुष्क जलवायु वाले क्षेत्र, जहां वर्षा कम होती है यह समस्या और भी गंभीर रूप धारण कर लेती है। इसके साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से हो रही वर्षा की कमी एवं अनियमितताओं के कारण सूखे की समस्या में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत में लगभग 60 प्रतिशत खेती बारानी अथवा अर्द्धशुष्क कृषि के अंतर्गत आती है, जिस पर देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या और 60 प्रतिशत पशुधन निर्भर है। 20वीं शताब्दी के अंत तक अगर भारत को अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त भोजन उपलब्ध करवाना है, तो हमें इन बारानी क्षेत्रों से कम से कम 60 प्रतिशत की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। अतः ऐसी फसलें जो विषम परिस्थितियों में उत्तम उत्पादन देकर हमारी बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें, उन्हें बढ़ावा देने की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन ने क्विनोआ को एक ऐसी ही महत्वपूर्ण फसल के रूप में चयनित किया है। इसकी 20वीं शताब्दी के अंत तक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
क्विनोआ चेनोपोडिएसी वानस्पतिक परिवार का सदस्य है. जिसका वैज्ञानिक अथवा वानस्पतिक नाम चेनोपोडियम क्विनोआ है। क्विनोआ की उत्पत्ति मूलतः दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतमाला में हुई है। क्विनोआ की विशाल आनुवंशिक विविधता के कारण यह विभिन्न प्रकार की जलवायु की परिस्थितियों में आसानी से सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इसी विशेषता के कारण आनुवंशिकी की विभिन्न तकनीकों का प्रयोग कर किसी विशेष क्षेत्र के लिए क्विनोआ की नई प्रजाति को सरलतापूर्वक विकसित किया जा सकता है। क्विनोआ का प्राकृतिक स्वाद
क्विनोआ के छिलकों में मौजूद सैपोनिन नामक पदार्थ के कारण इसका प्राकृतिक स्वाद हल्का कड़वा होता है। बाजार में इसे बेचने से पहले इसके छिलकों को खाद्य प्रसंस्करण द्वारा हटा दिया जाता है। इन छिलकों के कारण विवनोआ की खेती के दौरान फसल को पक्षियों द्वारा नुकसान नहीं पहुंचाया जाता और यह किसानों के लिए लाभप्रद होता है।
उपज एवं बाजार क्षमता
वर्तमान में क्विनोआ का बाजार बहुत सीमित है। लोगों को क्विनोआ के बारे में कम जानकारी होने के कारण इसका प्रयोग भी काफी कम द्वारा किया जाता है। लोगों को इसे विभिन्न खाद्य सामग्रियों के रूप में उपयोग के लिए जानकारी देने की आवश्यकता है, ताकि लोग इस गुणकारी फसल का अधिक से अधिक लाभ ले सकें। कुछ क्षेत्रों में किसानों ने इसकी खेती शुरू कर दी है, परंतु बाजार में मांग कम होने के कारण उन्हें आशा के अनुरूप लाभ नहीं मिल पा रहा है। क्विनोआ की उत्पादन क्षमता काफी अधिक है। इसका उत्त्पादन सही वैज्ञानिक विधि द्वारा किया जाए एवं इसका बेहतर प्रसंस्करण किया जाए, तो किसानों को इससे काफी अच्छी आमदनी हो सकती है। इसके लिए सबसे आवश्यक है कि इसके प्रसंस्करण की समुचित व्यवस्था पंचायत के स्तर पर हो, ताकि किसान अपने उत्पाद की अच्छी कीमत प्राप्त कर सकें। जैसे-जैसे क्विनोआ के बारे में किसानों के बीच जानकारी बढ़ेगी वैसे ही उत्पादन लागत में कमी और उपज में वृद्धि होगी।
क्विनोआ की वैज्ञानिक खेती खेत की तैयारी
क्विनोआ फसल को मुख्यतः बलुआ एवं दोमट मृदा में उगाया जाता है। दक्षिण अमेरिकी देशों में किसानों द्वारा इसे न्यूनतम दर्जे के खेतों में उगाया जा रहा है। यह जलवायु एवं मृदा की विषम परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता रखता है। यह जलभराव, सूखा, अम्लीय एवं क्षारीय परिस्थितियों में भी अच्छा उत्पादन देने की क्षमता रखता है। क्विनोआ की खेती के लिए खेत की अच्छी तरह जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए तथा मेड़ों का निर्माण कर इन पर बीजों की बुआई करनी चाहिए, ताकि जलजमाव की स्थिति में आसानी से पानी को बाहर निकाला जा सके। फसल को होने वाले नुकसान से भी बचाया जा सके। क्विनोआ को मुर्रम मृदा में भी उत्पादन के लिए उपयुक्त पाया गया है। मुर्रम मृदा से बड़े कंकड़ एवं पत्थरों को निकालकर इसमें गोबर खाद का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि शुरुआत के 8-10 दिनों में खेत में नमी बरकरार रहे।
जलवायु
क्विनोआ की खेती के लिए छोटे दिन और ठंडी जलवायु उपयुक्त होती है। यह कम उपज वाले खेतों एवं सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी अच्छा उत्पादन देता है। क्विनोआ की अच्छी उपज के लिए तापमान 18 से 20 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। यह-8 से लेकर 36 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को भी सहन कर सकता है। यदि तापमान 36 डिग्री से ज्यादा हो जाता है, तो इसके कारण पौधों में बीज बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है एवं उत्पादन में कमी आ जाती है। इसलिए भारत में इस फसल को मुख्यतः रबी मौसम में ही उगाया जाता है।
पोषण प्रबंधन
क्विनोआ की अधिक उपज के लिए बुआई से पहले मृदा की जांच करवा लेनी चाहिए। बुआई से 10 से 15 दिनों पहले भलीभांति तैयार गोबर की खाद 15 से 20 टन प्रति हैक्टर की दर से खेत में मिला देनी चाहिए। क्विनोआ की फसल में अच्छी पैदावार के लिए 100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस एवं 50 कि.ग्रा. पोटाश का प्रयोग किया जाना चाहिए। क्विनोआ की फसल में 60 से 80 कि.ग्रा. प्रति एकड़ से अधिक नाइट्रोजन का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। इससे फसल में लॉजिंग की समस्या बढ़ जाती है एवं फसल की विकास दर भी धीमी हो जाती है, जिससे उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
बीज बुआई क्विनोआ के बीज को खेत में 2 से 5 सें.मी. की गहराई में बोना चाहिए। बुआई के दो-तीन दिन पहले सिंचाई कर देनी चाहिए, ताकि अंकुरण आसानी से हो सके। क्विनोआ के बीज बहुत छोटे होते हैं अतः इसे बहुत ज्यादा गहराई या सतह पर इसकी बुआई करने से इनके अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सामान्यतः 500 से 750 ग्राम बीज प्रति एकड़ की दर, एक अच्छी फसल के लिए निर्धारित की गई है। अगर भूमि एवं जलवायु की दशाएं फसल के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं. तो बीज दर को दोगुना कर देना चाहिए। बीजों के अंकुरण के लिए बीज को बालू के साथ 1%3 के अनुपात में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। इसके बाद बुआई करनी चाहिए। बुआई पंक्तियों में करना उचित है। जब पौधे 10 से 15 सें.मी. के हो जाएं, तो उनके बीच की दूरी भी 10 से 15 सें.मी. की बना लेनी चाहिए। अतिरिक्त पौधों को हटा देना चाहिए, ताकि पौधों का समुचित विकास हो सके।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
क्विनोआ पानी की कम उपलब्धता भी अच्छा विकास कर लेती है। वैज्ञानिकों में ने क्विनोआ में 50 प्रतिशत कम पानी की उपलब्धता पर भी इसके उत्पादन में केवल 18 से 20 प्रतिशत की कमी दर्ज की है। अत्यधिक सिंचाई भी पौधों के लिए हानिकारक होती है। इससे केवल पौधों की लंबाई बढ़ती है, परंतु उसकी उत्पादकता पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। अधिक सिंचाई के कारण पौधों में कई तरह के कीट एवं रोगों जैसे-डैपिंग ऑफ का खतरा भी बढ़ जाता है। सामान्यतः बुआई के तुरंत बाद ही सिंचाई कर देनी चाहिए। उसके उपरांत केवल दो-तीन बार ही इसे सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पौधे जब बहुत छोटे होते हैं, तब खरपतवार इन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। अतः निराई-गुड़ाई करके खरपतवार निकाल देने चाहिए। पौधों के समुचित विकास के उपरांत खरपतवार क्विनोआ की फसल को कोई विशेष नुकसान नहीं पहुंचाते।
रोग एवं कीट प्रबंधन
क्विनोआ में रोगों एवं कीटों से लड़ने की अच्छी क्षमता है। यह पाले एवं सूखे की मार को भी सहन कर लेता है। मगर हाल के कुछ वर्षों में पालक एवं चुकंदर में पाए जाने वाले वायरस को क्विनोआ के खेतों में भी पाया गया है, मगर अभी तक वैज्ञानिकों द्वारा इसका पूर्ण सत्यापन नहीं हो पाया है। कीट वैज्ञानिकों के अनुसार किसी भी कीट की क्विनोआ में आर्थिक हानि पहुंचाने की कोई भी रिपोर्ट अभी तक दर्ज नहीं की गई है। अतः किसानों को क्विनोआ में लगने वाले रोग एवं कीट के प्रबंधन के विषय में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
फसल की कटाई
क्विनोआ की फसल सामान्यतः 100 दिनों में तैयार हो जाती है। पूर्ण विकसित फसल की ऊंचाई 4-5 फीट तक होती है। इसके बीज ज्वार के बीजों के समान होते हैं। फसल पकने पर उसका रंग पीला या लाल हो जाता है एवं पत्तियां झड़ जाती हैं। बालियों को हाथ से मसलने पर इनके बीज आसानी से अलग हो जाते हैं। फसल की कटाई के समय वर्षा एक भारी समस्या हो सकती है। पके हुए बीज वर्षा से मात्र 24 घंटे के अंदर ही अंकुरित हो जाते हैं। अतः फसल के पक जाने के बाद तुरंत कटाई कर लेनी चाहिए। भाकृअनुप-राअस्ट्रैप्रसं में हुए एक शोध के अनुसार यह पाया गया है कि यदि क्विनोआ की बुआई दिसंबर मध्य में की जाए, तो इसका उत्पादन नवंबर मध्य में की गई बुआई के मुकाबले ज्यादा अच्छा होता है।
दाने को भूसे से अलग करना एवं भंडारण
कटी हुई बालियों को पीटकर एवं फैनिंग मिल की सहायता से बीजों को आसानी से अलग किया जा सकता है। गांव में इस प्रक्रिया को सामान्यतः ओसाना कहते हैं। इसमें टूटी हुई बालियों को बर्तन में रखकर हवा के माध्यम से दाने एवं भूसे को अलग किया जाता है। इस प्रक्रिया को और अच्छी तरीके से करने के लिए पहले बालियों को छोटे ट्रैक्टर के नीचे कुचला जाता है, उसके बाद फैनिंग मशीन का प्रयोग किया जाता है। भंडारण से पहले बीजों को अच्छे तरीके से सुखाकर रखना चाहिए एवं खाद्य प्रसंस्करण से पहले इन बीजों के ऊपरी आवरण को भी हटा देना चाहिए। बाहरी आवरण में स्पॉनिन की मात्रा अधिक पाई जाती है। स्पोनिन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसे हटाने के लिए राइस पॉलिशिंग मशीन का प्रयोग किया जा सकता है। बाजार में कई मशीनें उपलब्ध हैं और ये खासतौर पर क्विनोआ के विभिन्न उत्पाद बनाने के लिए प्रयोग में लाई जा रही हैं।
कम लागत में अधिक मुनाफा
भारत में क्विनोआ की खेती एक लाभप्रद विकल्प है, जिसका भविष्य में महत्व और भी अधिक बढ़ने वाला है। क्विनोआ में चावल के मुकाबले अधिक प्रोटीन एवं कम कार्बोहाइड्रेट है। यह अमीनो अम्ल एवं अन्य पोषक तत्वों का बेहतरीन एवं संतुलित स्रोत है। क्विनोआ में कीट एवं रोगों का कोई भी विशेष प्रभाव नहीं होता, जो इसे जैविक खेती के लिए एक महत्वपूर्ण एवं सरल विकल्प बनाता है। खराब मौसम एवं मृदा में अच्छा उत्पादन देने की क्षमता, क्विनोआ को कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल के रूप में स्थापित करती है। क्विनोआ अपनी इन विशेषताओं के कारण भारत के सभी वर्ग के किसानों एवं शुष्क क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण फसल के विकल्प में सामने आया है। क्विनोआ को वैकल्पिक फसल के रूप में प्रयोग कर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। यह भारत के किसानों की आय दोगुनी करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
महत्व
अजैविक स्ट्रैस को सहन करने की विशेषता के साथ ही साथ क्विनोआ के अंदर मौजूद पोषक तत्व इसकी अतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही मांग एवं प्रसिद्धि का महत्वपूर्ण कारण है। यह प्रोटीन, लिपिड, फाइबर एवं मिनरल से भरपूर है। इसके साथ ही साथ इसमें मनुष्य के लिए आवश्यक सभी 9 अमीनो अम्ल का बेहतरीन संतुलन है (सारणी-1)। ग्लूटेन मुक्त होने के कारण क्विनोआ का सीलीयक रोगियों के उपचार में भी इस्तेमाल किया जाता है। क्विनोआ भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व के सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प है। कम पानी में अधिक पैदावार और पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा ने इसे वर्तमान परिस्थितियों में एक महत्वपूर्ण फसल के रूप में स्थापित किया है।
उपयोग
- क्वनोआ के साबुत दाने, पत्तियों एवं आटे को विभिन्न प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है।
- क्विनोआ से चटनी सलाद, अचार सूप पेस्ट्री मिठाई ब्रेड बिस्कुट केक एवं कई तरह के पेय पदार्थ बनाए जा सकते हैं।
- क्विनोआ के अंकुरण में मात्र 2-4 घंटे का समय लगता है। अंततः इसे अंकुरित अन्न के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
- क्विनोआ के पौधों को पशुओं के हरे चारे के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी पत्तियों, तनों और दानों में औषधीय गुण होते हैं। इनका इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के रोग जैसे-दांतों के दर्द के उपचार के लिए किया जाता है।
- क्विनोआ में पाए जाने वाले सैपोनिन नामक पदार्थ के कारण इसका इस्तेमाल साबुन, शैंपू, पॉलिश डर्मिटाइटिस कीटनाशक इत्यादि बनाने के लिए किया जाता है।
क्विनोआ की बढ़ती मांग
वर्तमान समय में क्विनोआ का मुख्यतः शहरी जनता द्वारा उपयोग किया जा रहा है। शहरों की तेज रफ्तार और भाग-दौड़ भरी जिंदगी के लिए क्विनोआ एक उपयुक्त आहार है, जिसमें महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा उपलब्ध है। वर्ष 2017 में लगभग 0-42 मिलियन डॉलर मूल्य का क्विनोआ इक्वाडोर संयुक्त राज्य अमेरिका एवं ब्रिटेन से आयातित किया गया था। वर्तमान बाजार में क्विनोआ की कीमत 300-1000 रुपये प्रति कि.ग्रा. तक है। भारत विश्व में डायबिटीज के मरीजों की संख्या में दूसरे स्थान पर है और निकट भविष्य में इसके और अधिक बढ़ने के आसार हैं। अतः स्वस्थ जीवनशैली के लिए आज के दौर में लोग ऐसे खाद्य विकल्पों की तलाश कर रहे हैं, जो उन्हें पोषण देकर रोगों से दूर रखें। क्विनोआ में उच्च पोषक तत्वों की मात्रा और इसका उत्तम स्वाद इसे बाजार में एक अच्छे एवं महत्वपूर्ण उत्पाद के रूप में स्थापित करने की क्षमता रखता है।