गुणवक्ता युक्त मखाना उत्पादन की वैज्ञानिक विधि Publish Date : 28/09/2024
गुणवक्ता युक्त मखाना उत्पादन की वैज्ञानिक विधि
प्रोफसर आर. एस. सेंगर
भारत में उत्पादित की जाने वाली मखाना (यूरेल फेरॉक्स सैलिस्ब) एक महत्वपूर्ण जलीय फसल है, जो कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं पोषक तत्वों का समृद्ध स्रोत है। मखाना को आयुर्वेदिक एवं चीनी चिकित्सा प्रणाली में विशेष स्थान प्राप्त है। इसे अंग्रेजी में फॉक्स नट एवं गोर्गन नट आदि नामों से भी जाना जाता है। देश में मखाना का उपयोग खाद्य व्यंजनों, स्नैक्स, धार्मिक अनुष्ठानों एवं औषधीय रूप में किया जाता है। मखाना की खेती वर्षभर जलमग्न रहने वाले तालाबों, गड्ढों, कीचड़ एवं गोखुर झीलों आदि में सफलतापूर्वक की जा सकती है। देश में मखाना का विस्तार पश्चिम बंगाल, बिहार, मणिपुर, त्रिपुरा, असोम, जम्मू एवं कश्मीर, पूर्वी ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश तक हुआ है, जबकि इसकी व्यावसायिक खेती उत्तरी बिहार, मणिपुर, पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों तक ही सीमित है।
देश में मखाना की बढ़ती मांग एवं महत्व को देखते हुए पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लिए भाकृअनुप के अनुसंधान परिसर, पटना के दरभंगा स्थिति मखाना अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने उच्च उत्पादन क्षमता एवं पोषक तत्वों से भरपूर श्स्वर्ण वैदेहीश् नाम की एक नई किस्म विकसित की है। मखाना अनुसंधान केन्द्र द्वारा विकसित यह भारत की प्रथम किस्म है, जो पारंपरिक बीजों की तुलना में लगभग 1.5 गुना अधिक उत्पादन देती है। यह किस्म उच्च गुणवत्ता के बीजों के साथ-साथ मखाना के रोग एवं कीटों के लिए प्रतिरोधी भी है। मखाना को इस किस्म का उपयोग अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पादों जैसे-खीर, हलवा, दूध आधारित मिठाइयां, स्नैक्स, दाल मखनी, सब्जियों में स्वाद व गाढ़ा करने के लिए तथा औषधि आदि बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त सौन्दर्य उत्पादों के निर्माण में भी उपयोग कर सकते हैं।
गुणवत्ता
मखाना की श्स्वर्ण वैदेहीश् किस्म उच्च पैदावार के साथ-साथ पोषक तत्वों के मामले में भी पारंपरिक किस्मों की अपेक्षा बेहतर है। इसके लावे (पॉप्ड बीज) में कार्बोहाइड्रेट (79.8 प्रतिशत) प्रोटीन (8.7 प्रतिशत), वसा (0.5 प्रतिशत) एवं कैलोरी (358 किलो कैलोरी./100 ग्राम) की मात्रा पारंपरिक बीज की तुलना में अधिक पाई गई। पारंपरिक लावा में काबर्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा एवं कैलोरी क्रमशः 79.4 प्रतिशत, 8.6 प्रतिशत, 0.2 प्रतिशत एवं 354 किलो कैलोरी 100 ग्राम देखी गई। श्स्वर्ण वैदेहीश् किस्म के 100 ग्राम लावा में पोषक तत्व जैसे-कैल्शियम (18.5 मि.ग्रा.), मैग्नीशियम (13.9 मि.ग्रा.), सोडियम (71.0 मि.ग्रा.), कॉपर (0.5 मि.ग्रा.) एवं जस्ता (1.1 मि.ग्रा.) की मात्रा पारंपरिक बीज की तुलना में अधिक पाई गई। दूसरी ओर पारंपरिक 100 ग्राम लावा में कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम, कॉपर एवं जस्ता की मात्रा क्रमशः 13.5. 11.9, 65.2, 0.4 एवं 0.7 मि.ग्रा. प्राप्त हुई। इस किस्म का जांचक बीजों के साथ तुलनात्मक विवरण आगे दिया गया है।
उपज परीक्षण
पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लिए भाकृअनुप का अनुसंधान परिसर, मखाना अनुसंधान केन्द्र, दरभंगा में किए गए परीक्षणों के आंकड़ों के अनुसार मखाना की श्स्वर्ण वैदेहीश् किस्म पारंपरिक बीजों की तुलना में श्रेष्ठ है। इस किस्म के बीजों की औसत उपज 28-30 क्विंटल प्रति हैक्टर देखी गई, जबकि पारंपरिक बीजों की औसत उपज 20-21 क्विंटल प्रति हैक्टर थी। श्स्वर्ण वैदेहीश् किस्म की औसत उपज पारंपरिक किस्मों के बीजों की तुलना में लगभग 45 प्रतिशत अधिक प्राप्त की गई।
सस्य क्रियाओं से संबंधित महत्वपूर्ण सिफारिशें
वैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर श्स्वर्ण वैदेहीश् किस्म का अधिकतम उत्पादन एवं दानों की उच्च गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए सस्य क्रियाओं में निम्नलिखित सिफारिशों को समायोजित किया गया हैरू
क्षेत्र, भूमि एवं बिजाई का समय
यह किस्म मखाना का उत्पादन करने वाले सभी क्षेत्रों के लिए समय से विजाई करने लिए उपयुक्त है। इसकी खेती के लिए चिकनी एवं चिकनी दोमट मृदा, जिसमें जल संग्रह क्षमता अच्छी हो, सर्वोत्तम मानी जाती है। अच्छा उत्पादन लेने के लिए नर्सरी की बिजाई दिसंबर में कर देनी चाहिए। पौध रोपाई का कार्य फरवरी के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के द्वितीय सप्ताह तक अवश्य ही पूर्ण कर लेना चाहिए।
बिजाई विधियां, बीज दर, पंक्ति से पंक्ति एवं पौधे से पौधे की दूरी
मखाना की खेती के लिए पारंपरिक तालाब विधि एवं आधुनिक खेत प्रणाली विधि जैसी दो विधियां ही प्रचलन में हैं। तालाब विधि में बिजाई करने के लिए लगभग 70 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर की दर से डालने की सिफारिश की गई है, जबकि खेत प्रणाली विधि के लिए 20 कि.ग्रा. बीज से तैयार की गई 500 वर्गमीटर की नर्सरी के पौधे एक हैक्टर खेत की रोपाई के लिए पर्याप्त होते हैं। रोपाई के लिए पौधे से पौधे की दूरी 1.25 मीटर तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1.25 मीटर रखनी चाहिए। अच्छा उत्पादन लेने के लिए पौध रोपाई का कार्य फरवरी के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के द्वितीय सप्ताह तक अवश्य ही पूर्ण कर लेना चाहिए।
स्वर्ण वैदेही किस्म की विशेषताएं
मखाना की खेती के लिए उपयुक्त सभी क्षेत्रों में इस किस्म की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। यह किस्म उच्च गुणवत्ता के बीजों के साथ-साथ मखाना के रोगों एवं कीटों के लिए उच्च प्रतिरोधी है। इसकी 110 सें.मी. व्यास की गोलाकार पत्तियां पानी के ऊपर क्षैतिज तैरती हैं। इस प्रजाति का 50 प्रतिशत पुष्पण लगभग 120-125 दिनों में हो जाता है। मखाना के बीजों का व्यास 9.5-10.2 मि.मी. तथा 100 दानों का भार 92-98 ग्राम होता है। लावे (पॉप्ड बीज) का व्यास 2.0-2.5 सें.मी. तथा रंग बिल्कुल सफेद होता है। मखाना की इस किस्म में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाने के कारण बाजार में इसकी काफी मांग है।
मखाना प्रसंस्करण
बीजों का प्रसंस्करण करने के लिए उनको विभिन्न आकार वाली 10-12 छननियों द्वारा ग्रेडिंग करते हैं। इसके बाद विभिन्न श्रेणी के बीजों को पहले लोहे की कड़ाही में 5-7 मिनट तक तेज आग पर (25-32 डिग्री सेल्शियस तापमान पर) भूनकर ठंडा (टैम्परिंग) होने के लिए 2-3 दिनों के लिए रख देते हैं। इसके उपरान्त थोड़ी-थोड़ी मात्रा में (15-20 दाने) बीजों को लोहे की कड़ाही में तेज आग पर 2-3 मिनट के लिए गर्म करने पर चिड़चिड़ की आवाज आने पर तुरन्त कड़ाही से बाहर निकालकर लकड़ी के फर्श पर डालकर लकड़ी के हथौड़े से प्रहार करते हैं। ऐसा करने पर मखाना का लावा बीज से बाहर आ जाता है। यह बहुत कठिन कार्य है, जो बहुत ही अनुभवी एवं दक्ष कारीगरों द्वारा किया जाता है।