ग्वार की अधिक पैदावर लेने की तकनीक      Publish Date : 27/09/2024

                       ग्वार की अधिक पैदावर लेने की तकनीक

                                                                                                                                                                   प्रोफेसर आर एस. सेंगर  
“ग्वार को गूर, गोवारी, ग्वार एवं गुआर भी कहा जाता है। औद्योगिक गोंद तथा पशुओं के चारे एवं बढ़ती हुई जनसख्या की प्रोटीन की आवश्यकताओं को पूरा करने के कारण ग्वार को एक व्यावसायिक नकदी फसल के रूप में जाना जाता है। भारत सम्पूर्ण विश्व में ग्वार का शीर्ष उत्पादक देश है, यहां ग्वार का उत्पादन उत्तरी-पश्चिमी राज्यों जैसे राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में प्रमुख रूप  से किया जाता है।”

                                                            
ग्वार के उत्पादन पर वर्षा की मात्रा एवं उसके वितरण का अधिक प्रभाव पड़ता है। अच्छे उत्पादन के लिए वृद्धिकाल के दौरान लगभग 300 से 400 मि.मी. वर्षा का होना आवश्यक है। अपर्याप्त वर्षा के कारण पौधे की पत्तियां जल्दी सूख जाती है परिणामस्वरूप  ग्वार का उत्पादन तुलनात्मक रूप से कम रह जाता है। 
भूमि 
    यद्यपि  ग्वार की खेती किसी भी प्रकार की मृदा में की जा सकती है। फिर भी अच्छे उत्पादन के लिए इसे अच्छी उपजाऊ मृदा में उगाया जाता है ग्वार की फसल लवणता के प्रति संवेदनशील होती है यह ठहरे हुए पानी में भी अच्छा उत्पादन देने में असमर्थ होती है। उपरोक्त वर्णित परिस्थितियों से फसल का बचाव अत्यन्त आवश्यक है। 
खेत की तैयारी 
    गर्मी के दिनों में एक या दो जुताई एवं मानसून की प्रथम वर्षा के बाद केवल एक जुताई करके खेत में पाटा लगा कर खेत को बुआई के लिए तैयार कर लेना चाहिए। बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए तथा खेत खतपतवार से मुक्त होना चाहिए। 
बुआई का समय 
जुलाई का प्रथम पखवाड़ा,ग्वार की बुआई के लिए सर्वाधिक होता है। अगर देर से वर्षा हो, तो 30 जुलाई तक बुआई कर देना अच्छा रहता है। देरी से मानसून शुरू होने पर अगस्त मध्य तक भी इसकी बुआई की जा सकती है। 
बुआई की विधि 
  बिना शाखा वाली व जल्दी पकने वाली किस्मों को 30 से.मी. पंक्ति से पंक्ति की दूरी पर बोना चाहिए, जबकि शाखित मध्यम अवधि वाली किस्मों को 45 से.मी. पंक्तिवार दूरी पर बोया जाना चाहिए। पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10 से.मी.  होनी चाहिए। 
बीज दर 
     ग्वार की एकल फसल एवं बीज उत्पादन के लिए 15 से 20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर तथा चारा एवं हरी खाद के उत्पादन के लिए उपयुक्त बीज दर 30 से 40 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर रखनी चाहिए । सब्जी उत्पादन के लिए इसकी लगभग 15 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर बीज दर का प्रयोग सर्वाधिक उपयुक्त होता है। 
अतः फसल पद्धति  
          ग्वार को बाजरा, मूंग एवं मोठ के साथ भिन्न-भिन्न अनुपात में मिलाकर बोया जाता है। इसे शुद्ध फसल के रूप में पंक्तियों में व्यापक रूप से बोये जाने से तुलनात्मक रूप से अधिक उपज प्राप्त होती है।
 उर्वरक प्रबंधन 
     दलहनी फसल होने के कारण ग्वार को नाइट्रोजन की ज्यादा आवश्यकता नही होती है। अधिक उपज के लिए 20 कि.ग्रा. नाट्रोजन एवं 40 कि.ग्रा. फाॅस्फोरस प्रति हैक्टर की दर से बुआई के समय खेत में देने से अच्छा उत्पादन प्र्राप्त होता है। ग्वार की फसल में 20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर पोटाश एवं 2.5 टन प्रति हैक्टर वर्मीकम्पोस्ट बुआई के समय पर देने से उपज ज्यादा मिलती है।
 
सिंचाई प्रबंधन 
      ग्वार बुआई के तीन सप्ताह के बाद यदि अच्छी वर्षा न हो एवं सिंचाई उपलब्ध हो, तो सिंचाई कर देनी चाहिए। यदि एक सिंचाई देने की ही सुविधा हो, तो 50 प्रतिशत फूल आने की (बुआई के 40 से 45 दिनों के बाद) उपयुक्त अवस्था है। यदि दो बार पानी की सुविधा हो, तो पहली सिंचाई 50 प्रतिशत फूल आने की अवस्था पर करें। 
 बीजोपचार 
अंगमारी रोग की रोकथाम के लिए प्रति कि.ग्रा. बीज को 250 पी. पी. एम. (250 मि.ग्रा./लीटर पानी) स्ट्रोप्टोसाइक्लिन के घोल में डेढ़ घंटे भिगोकर छाया में सुखायें। बीज को राइजोबियम एवं पी.एस.बी कल्चर से उपचारित कर बोने से अधिक पैदावार प्राप्त होती है। 
कटाई एवं मड़ाई 
   जब ग्वार के पौधों की पत्तियां गिराने लगें एवं फलियां एकदम सूखकर भूरी हो जाती है। तो यह समझा जाता है कि फसल पककर तैयार हो जाती है। ऐसेे में फसल की कटाई कर देनी चाहिए। मध्यम अवधि वाली किस्में 110 से 125 दिनों में तथा जल्दी पकने वाली किस्में 85 से 95 दिनों पककर तैयार हो जाती है। कटाई के बाद फसल को धूप में सुखाकर श्रमिकांे या थ्रेशर मशीनों द्वारा उसकी मड़ाई करवा लेनी चाहिए।
पैदावर (उपज) 

                                                                   
उन्नत विधियों से खेती करने पर ग्वार की उपज 10-15 क्विंटल प्रति हैक्टर ली जा सकती है। इसके साथ ही समान मात्रा में चारा उत्पादित किया जाता सकता हैै।  
रोग एवं नियंत्रण 
   ग्वार में लगने वाले प्रमुख रोग-पर्ण अंगमारी, झुलसा तथा जड़गलन (रूट राॅट काॅम्पलेक्स) हैं। इसके नियत्रण के लिए बीजों को स्ट्रोप्टोसाइक्लिन तथा कार्बोन्डाजिम फफूंदनाशी से बीजोपचार करें। खड़ी फसल में स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 150 पीपीएम या 0-2 प्रतिशत काॅपर आॅक्सीक्लोरइड का घोल बनाकर फसल पर छिडकाव करें और 15 दिनों बाद छिड़काव दोहराएं। 
कीट एवं नियत्रण 
     ग्वार में लगने वाले प्रमुख कीट चेंपा, लीफ हाॅपर, सफेद मक्खी तथा फलीछेदक है इनके नियत्रण के लिए डाइमिथोएट 30 ई.सी. का एक लीटर प्रति हैक्टर की दर से छिड़ाकव को दोहराएं। फसल को कीटों से बचाने के लिए क्वीनोल्फाॅस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 ई. सी. एक लिटर प्रति हैक्टर का छिड़काव करें।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।