गेहू बीज का उत्पादन कब और कैसे करें      Publish Date : 25/09/2024

गेहू बीज का उत्पादन कब और कैसे करें

डा. आरस सेंगर, गरिमा शर्मा, एवं अकाक्षा सिंह 

 

गेहू का  बीज उत्पादन का तकनीकी ज्ञान जैसे  पृथक्करण दूरी, खेत के मानक, अवांछनीय पौधे निकालना, बीज की बुआई से लेकर बीज मानक, बीज भंडारण, बीज वितरण एवं नवीन प्रजातियों की जानकारीयां भी प्रशिक्षण एवं लेखों द्वारा किसानों तक पहुचाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की कोशीश है जिससे किसानो की आय बढ़ सके।   

गेहूं के बीज उत्पादन के लिए पी - एच मान 7 - 7.5 वाली बलुई दोमट या दोमट मृदा के साथ तथा जलधारण क्षमता अच्छी होनी चाहिए

उत्तर - पश्चिमी मैदानी  क्षेत्र     

पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तरी राजस्थान, दिल्ली आदि

उत्तर - पूर्वी मैदानी  क्षेत्र

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखड़, ओडिशा, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, असोम एवं पूर्वोत्तर राज्यों के मैदानी क्षेत्र।

मध्य, क्षेत्र

गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान का कोटा।

पेनीसुलर क्षेत्र

महाराष्ट्र और कर्नाटक।

बुआई का समय 

बीज उत्पादन के लिए बोई जाने वाली सभी प्रजातियों को 15 - 30 नवंबर तक बोना चाहिए।

बीज की मात्रा एवं उपचार

गेहूं की बुआई के लिए बीज की मात्रा 100 कि. ग्रा. से 120 कि. ग्रा. बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त रहती है। बोने से पूर्व थीरम 2.5 ग्राम प्रति कि. ग्रा. की बीज दर से उपचारित करना चाहिए।

बीज की बुआई 

बीजोत्पादन के लिए बुआई हमेशा पंक्तियों में सीडड्रिल अथवा हल द्वारा 20 - 22.5 सें. मी. की दूरी पर करनी चाहिए तथा बीज को 7 - 8 सें. मी. की गहराई पर बोना चाहिए।

उर्वरक

बीज फसल की अच्छी बढ़वार तथा उपज के लिए उर्वरकों के रूप  में प्रति हैक्टर 120 कि. ग्रा. नाइट्रोजनए 60 कि. ग्रा. फॉस्फोरस तथा 50 कि. ग्रा. पोटाश तथा 20 - 25 कि. ग्रा. जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए। इस के लिए 210 कि. ग्रा. यूरिया, 130 कि. ग्रा. डी. ए. पी. तथा 80 कि. ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा 20 - 25 कि. ग्रा. जिंक सल्फेट पर्याप्त रहता है।

गेहूं के बीजोत्पादन के लिए 4 - 5 सिंचाइयां आवश्यक होती हैं। इसमें सिचाई की प्रथम ताज जड़ अवस्था (बुआई के 20 - 25 दिनों बाद) तथा दधिया अवस्था (बुआई के 100 - 105 दिनों बाद) पर सिंचाई करना अत्यंत आवश्यक है।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के तुरन्त बाद पैंडीमेथीलीन 35 ई. सी. 2.5 - 3 लीटर 500 - 600 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए। गेहू की फसल में मुख्यत गुल्ली डंडा या गेहूं का मामा (फैलेरिस माइनर) जंगली जई, बथुआ, जंगली पालक, कृष्णनील तथा हिरनखुरी खरपतारों कर प्रकोप अधिक रहता है।  खड़ी फसल में खरपतवारों को रसायनों द्वारा बुआई के 30 - 35 दिनों बाद क्लोडीनाफोप प्रोपागिल   मेट सल्फयूरॉन मिथाइल का मिश्रण अथवा सल्फोसल्फरॉन  मेटासल्फयूरॉन मिथाइल का एक पैकेट एक एकड़ के लिए पर्याप्त होता है। इसका 200 - 250 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चहिए।

कंडुवा रोग

यह फफूंदी वाला रोग है। इसके उपचार के लिए बीटावेक्स या वेनलेट 2-2.5 ग्राम प्रति कि.ग्राम की दर से उपचार करके बुआई करनी चाहिए।

रतुआ

इस रोग के नियंत्रण के लिए समय पर बुआई करें तथा 2 ग्राम डाइथेन एम.-45 प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

करनाल बंट

इसके  नियत्रण  के लिए बाविस्टिन दो ग्राम दवा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

झुलसा रोग

इस रोग में प्रायरू पत्तियों पर पीले भूरे और काले रंग  के चकत्ते पैदा हो जाते है। इसका नियत्रण भी डाइथेन-45 के छिड़काव से किया जा सकता है।

कीट एवं नियत्रण

माहू

यह हल्के हरे रंग का मुलायम कीट है, जो पौधों के विभिन्न भागों का रस चूसकर हानि पहुंचता है। इसके नियत्रण के लिए कोनफीडोर 125 मि.ली. 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।

दीमक

खडी फसल में दीमक के नियत्रण के लिए क्लोरोपराइरोफॉस (20 ई.सी.) 2.5-3 लीटर प्रति हैक्टर सिंचाई के साथ फसल में देना उपयोगी होता है।

बीज फसल निरिक्षण

गेहुं की बीज फसल में कम से कम दो निरीक्षणों की आवश्यकता होती है। प्रथम निरिक्षण, बीज फसल में जब फसल में जब 5 प्रतिशत से अधिक फूल आ जाते है, तब किया जाता है। द्वितीय निरिक्षण फसल की कटाई से पहले किया जाता है।

कटाई एवं थ्रेसिंग

फसल की कटाई, जब दोनों में 16 प्रतिशत से कम नमी हो। तब करनी चाहिए। बीज को थ्रेसिंग के बाद धूप में सुखाकर नई बोरियों में रखना चाहिए।

अंवाछनीय पौधे निकालना

    • फसल में लंबे या बौने पौधे निकाल देने चाहिए।
    • पत्तियों के रंग और आकार के आधार पर भिन्न दिखाई देने वाले पौधों को निकाल देना चाहिए।
    • बालियों की बनावट, रंग, आकार, लंबाई आदि के अधार पर भिन्न प्रजाति के पौधों कां निकाल देना चाहिए।
    • बालियां सूखने पर बालियों के रंग तथा उनकी पकने की भिन्नता के आधार पर अवाछनीय पौधो को निकाल देना चाहिए।
    • तूड़ की लंबाई रंग के आधार पर भी भिन्न प्रकार के पौधो को निकाल देना चाहिए।
    • कंडुवा रोग से ग्रसित पौधे दिखाई देने पर ऐसे पौधों को कागज के लिफाफे में काले पाउडर वाले भाग को ढककर निकालें तथा जमीन में दबा दें।