धान के खेत में कंडुआ रोग और उसका उपचार      Publish Date : 23/09/2024

                    धान के खेत में कंडुआ रोग और उसका उपचार

                                                                                                                         प्रोफेसर डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

हमारे देश में खरीफ के मौसम की सबसे महत्वपूर्ण फसल धान की खेती है और धान की खेती करने वाले किसानों के लिए यह जानकारी बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। इस समय धान की फसल में कल्ले निकलने शुरू हो गए हैं, और अब इसमें कंडुआ रोग लगने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती है। कंडुआ रोग फसल को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए इससे बचाव के उपायों को जानना किसानों के लिए बहुत ही जरूरी होता है।

                                                                   

कंडुआ रोग धान की फसल के उत्पादन पर गहरा असर डालता है। इस रोग के चलते धान का वजन कम हो जाता है और इसके साथ ही इसके अंकुरण में भी समस्याएं आती हैं। कंडुआ रोग ऐसे स्थानों पर तेजी से फैलता है, जहां उच्च आर्द्रता और 25-35 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान होता है। यह हवा के माध्यम से एक खेत से दूसरे खेत में फैलने वाला रोग है। हालांकि, तापमान में उतार-चढ़ाव और हवा इस रोग के फैलने में अधिक बढ़ावा देते हैं।

कंडुआ रोग का सबसे अधिक प्रभाव धान की हाइब्रिड किस्मों पर होता है, जबकि देसी किस्मों पर इसका प्रभाव कुछ कम देखा गया है। इस रोग के फैलने के पीछे विभिन्न कारण होते हैं, जिनमें खेत की नमी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, यदि आपके खेत में नमी की मात्रा अधिक है, तो कंडुआ रोग के फैलने की संभावनाएं भी उसी के अनुसार बढ़ जाती है।

                                                        

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय, मोदीपुरम मेरठ के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर जी ने  बताया कि कंडुआ रोग को नियंत्रित करने के लिए पहले इसके लक्षणों की पहचान करना बहुत जरूरी होता है। कंडुआ रोग पीले पाउडर की तरह दिखाई देता है और यह हवा के साथ फैलता है। इसलिए आपको अपनी धान की फसल में कहीं भी कंडुआ रोग के लक्षण दिखाई दें, तो आपको तुरंत ही संक्रमित पौधे को तुरंत उखाड़कर मिट्टी में दबा देना चाहिए, जिससे कि यह संक्रमण और आगे नही बढ़ सकें।

डॉ0 सेंगर ने बताया कि इस रोग का फैलाव खेत में नाइट्रोजन तत्व की अधिकता से भी बढ़ता है, इसलिए संक्रमण के दौरान खेत में यूरिया का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कंडुआ रोग एक फफूंदजनित रोग है, जिसे नियंत्रित करने के लिए प्रोपिकोनाजोल 25ः की 100-200 मिली मात्रा को 200-300 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करने से रोग का प्रभावी नियंत्रण होता है।

                                                                  

अतः कंडुआ रोग के लक्षणों की पहचान कर और समय रहते नियंत्रण के प्रभावी उपायों को अपनाकर किसान अपनी धान की फसल को इस रो के कारण होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं और उत्पादन में आने वाली गिरावट से बच सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।