गन्ने की पत्तियां खेत में पीली दिखाई दे तो कैसे करें इसका प्रबंधन      Publish Date : 14/09/2024

गन्ने की पत्तियां खेत में पीली दिखाई दे तो कैसे करें इसका प्रबंधन

                                                                                                                                          प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

1 उ.प्र. गन्ना शोध परिषद, शाहजहाँपुर, गन्ने की पत्तियों में पीलापन के सम्बन्ध में आवश्यक दिशा निर्देश -

गन्ने की पत्तियों में पीलापन का कारण एवं उसके लक्षण

                                                      

गन्ने की विभिन्न स्वीकृत गन्ना किस्मों व अस्वीकृत गन्ना किस्मों (को. 11015, को. 15027, को. वी. एस. आई. 3102, को. वी. एस. आई. 0434) की पत्तियों में रहा है और अब 8005, को. वी. एस. आई. में भी पीलापन देखा जा रहा है।

गन्ना किस्मों में उकठा रोग के प्रारम्भिक (प्री-विल्टिंग) व स्पष्ट लक्षण तथा जड़ बेधक कीट का आपतन अलग-अलग तथा दोनों का संयुक्त रूप से भी देखाई दे रहा है।

जड़ बेधक का प्रकोप उकठा रोग से प्रभावित गन्नों के साथ हरे गन्नों में भी देखा जा रहा है। उकठा दोनों का एक साथ पाया जाना एक घटना है।

रोग के साथ जड़ बेधक संयोग मात्र आकस्मिक घटना है।

उकठा एक मृदा-जनित रोग है जो फ्यूजेरियम सैकेरी फफूँद के कारण पनपता है। सामान्यतः उकठा व जड़ बेधक के कारण जड़ व तना की कोशिकाओं के नष्ट होने से पोषक तत्वों का मुक्त प्रवाह अवरूद्ध हो जाता है, जिससे पोधों की पत्तियाँ पीली होने के साथ मुरझाने लगती है।

प्रतिकूल असामान्य मौसम की स्थिति

उकठा रोग के प्रारम्भिक लक्षण (प्री-विल्टिंग)।

सामान्य से कम वर्षा, कम आर्द्रता (लगभग 50 से 60 प्रतिशत), मृदा में नमी का अभाव, दिन में उच्च तापमान (30 से 35 डिग्री सेल्सियस) व सूखे जैसे प्रतिकूल स्थिति तथा उच्च तापमान की लम्बी अवधि (Long span) व कुछ-कुछ अंतराल पर कम बारिश का होना भी उकठा रोग व जड़ बेधक कीट के आपतन के लिए अनुकूल होता है।

उकठा रोग के प्रारम्भिक (प्री-विल्टिंग) स्पष्ट वाह्य लक्षण ।

2 उकठा रोग (विल्ट) की पहचान के लक्षण

गन्ने की फसलों में उकठा रोग के लक्षण निम्न प्रकार से दिखाई देता है।

1. इस रोग के लक्षण लगभग 5 माह (Grand growth phase) की फसल में दिखती है।

2. संकमित गन्ने की फसल समूह या पैच में पत्तियों का रंग पीला और बदरंग होने के बाद अत्यधिक पीलापन वाले पौधे सूखने लगते हैं।

3. लक्षण सर्वप्रथम पत्तियों की अग्र भाग में दिखता है व धीरे-धीरे ऊपर से मुरझाना शूरू कर देती है तथा बाद में काली/भूरी पड़ जाती हैं।

4. अत्यधिक पीलापन वाले गन्ने के तने को फाड़ने पर नीचे से जड़ व तने वाले हिस्से में हल्के गुलाबी या लाल रंग (Reddish) की धारियाँ व जड़ के आन्तरिक भाग में लाल धब्बे भी दिखाई देते हैं। तने के अन्दर का हिस्सा पूर्णतः लाल होने के साथ लाल रंग की धारियाँ कई पोरियों से गुजरती हुई ऊपर तक चली जाती है। बाद में पिथ में नाव के आकार की कैविटी बनने लगती है।

5. प्रभावित गन्ने से कोई गंध महसूस नही होती है, तथा तनों में सिकुड़न दिखने लगता है।

6. संकमित पत्तियों की मध्य शिराएँ भी पीली हो जाती हैं।

उकठा रोग व जड़ बेधक कीट के प्रबन्धन हेतु सुझाव

खड़ी फसल में-

                                                             

खड़ी गन्ने की फसल में जड़ के पास सिस्टेमिक फफूँदनाशी थायोफेनेट मिथाईल 70 डब्लू.पी. का 1.3 ग्राम प्रति लीटर पानी (520 ग्राम + 400 लीटर पानी प्रति एकड़) अथवा कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू.पी. का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी (800 ग्राम + 400 लीटर पानी प्रति एकड़) की दर से घोल बनाकर 15 से 20 दिनों के अन्तराल पर दो बार ड्रेचिंग करें और प्रयोग के बाद हल्की सिचाई कर दें।

जड़ों के पास मृदा के वातावरण में उपलब्ध लाभदायक सुक्ष्म जीवों की कियाशीलता सुनिश्चित करने हेतु ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोग न करें।

  • गन्ने की फसल में अत्यधिक पीलापन।
  • पत्तियों का ऊपर से धीरे-धीरे मुरझाना।
  • उकठा रोग (विल्ट) के पहचान के आन्तरिक लक्षण।
  • गन्ने में जड़ बेधक के लक्षण।
  • जड़ बेधक + उकठा रोग के लक्षण।

जड़ बेधक के नियन्त्रण हेतु पर्याप्त नमी की अवस्था में फिप्रोनिल 0.3 जी 10-12 किलोग्राम अथवा क्लोरपाइरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. 2 लीटर अथवा क्लोरपाइरीफॉस 50 प्रतिशत ई.सी. 1 लीटर अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 200 मिली. अथवा बाइफेन्थ्रिन 10 ई.सी. का 400 मिली प्रति एकड़ की दर से को 750 लीटर पानी के साथ मिलाकर ड्रेन्चिंग करें।

आगामी फसल में रोग से बचाव के उपाय-

                                                                 

  • स्वस्थ बीज का अनिवार्य रूप से बुआई करके रोग के प्राथमिक संक्रमण से बचा जा सकता है।
  • रोग से प्रभावित खेतों में फसल चक्र के अन्तर्गत अन्य फसलों की अनिवार्य रूप से बुआई करें।
  • उत्तर प्रदेश के लिए स्वीकृत रोग-रोधी गन्ना किस्मों की ही बुआई करें।
  • गन्ने के बीज के टुकड़ों को 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू.पी. अथवा थायोफेनेट मिथाईल 70 डब्लू.पी. तथा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. (0.5 मिली + 1 लीटर पानी) कीटनाशक के साथ पारम्परिक विधि द्वारा 10-30 मिनट तक शोधन या भिगोकर अवश्य बुआई करें।
  • एक या दो आँख के टुकड़ों 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू.पी. अथवा थायोफेनेट मिथाईल 70 डब्लू.पी. के साथ सेट ट्रीटमेन्ट डिवाइस में 30 मिनट तक से उपचारित अवश्य करें।
  • उकठा रोग से बचाव हेतु मृदा में बोरेक्स (बोरिक एसिड) की 6 किलोग्राम तथा जिंक सल्फेट की 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग अवश्य करें।
  • मृदा के जैविक उपचार हेतु बुआई के समय जैव - नियन्त्रक ट्राइकोडर्मा हारजिएनम को 4 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से 40-80 किलोग्राम कम्पोस्ट खाद के साथ मिलाकर खेत की तैयारी अथवा गन्ना बुआई के समय नालियों में तथा व्यांत व ग्रोथ अवस्था में अवश्य प्रयोग करें।
  • ट्राइकोडमा किसी अधिकृत स्रोत से ही प्राप्त करें और इसके वैद्यता तिथि का भी ध्यान रखें।

जड़ बेधक तथा अन्य कीट के नियन्त्रण हेतु बुआई के समय गन्ने के टुकड़ों पर प्रति एकड़ की दर से फिप्रोनिल 0.3 जी 8 किलोग्राम अथवा क्लोरपाइरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. 2 लीटर अथवा क्लोरपाइरीफॉस 50 प्रतिशत ई.सी. 1 लीटर अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. 200 मिली. अथवा बाइन्थ्रिन 10 ई.सी. का 400 मिली को 750 लीटर पानी के साथ मिलाकर ड्रेन्चिंग करें।

एक निश्चित समय अन्तराल पर खेतों में आवश्यकतानुसार सिचाई करते रहें।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।