प्याज़ की खेती Publish Date : 07/09/2024
प्याज़ की खेती
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
एक्सपर्ट किसान एग्रो इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड प्याज के बीज
बसवंत-780, प्याज की यह किस्म भारत के सभी क्षैत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसके शल्क कन्द गोलाकार, 4-8 सेमी. आकार वाले, परिपक्वता अवधि 95-110 दिन, औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। यह किस्म खरीफ प्याज (वर्षात की प्याज) उगाने के लिए अनुसंशित की गई है।
बसवंत-780 के बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत के लिए नर्सरी तैयार करने में 4 से 5 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है।
बसवंत-780 का बीज उपचार कैसे करें?
प्याज के बीज को रोगो से मुक्त रखने के लिए रासायनिक फफूंदनाशक थीरम 2 ग्राम $ बेनोमाइल 50 डब्लयू पी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ प्रति किलो बीजों का उपचार करना चाहिए। रासायनिक उपचार के बाद बायो-एजेंट ट्राईकोडरमा विराइड 2 ग्राम के साथ प्रति किलोग्राम बीजों का उपचार करने की सिफारिश की जाती है।
ऐसा करने से नए पौधे मिट्टी से पैदा होने वाली के साथ ही अन्य बीमारीयों से भी बच जाते हैं।
बसवंत-780 बुवाई करने की विधि
उपचारित बीजों को 5-10 सेमी. के अंतर पर बनाई गई कतारों 1 सेमी. की गहराई पर बोएं।
बसवंत-780 की नर्सरी में पौध तैयार करना
रबी प्याज की उन्नत किस्म के बीज को 3 मीटर लम्बी, 1 मीटर चौड़ी व 20-25 से.मी. ऊंची उठी हुई क्यारियां बनाकर बुआई करें। 500 मीटर वर्गक्षेत्र में तैयार की गई नर्सरी की पौध एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पर्याप्त होती है। प्रत्येक क्यारी में 40 ग्राम डी.ए.पी., 25 ग्राम यूरिया, 30 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश व 10-15 ग्राम फ्यूराडान डालकर अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें।
सितम्बर अक्टूबर माह में क्यारीयों को तैयार कर क्लोरोपाईरीफॉस (2 मिली./लीटर पानी) कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम/लीटर पानी) को धोलकर क्यारी की मिट्टी को तर कर 250 गेज मोटी सफेद पॉलिथिन बिछाकर 25-30 दिनों तक मिटटी का उपचार करें।
इस विधि से मिटटी को उपचारित करने को मृर्दा शौर्यीकरण कहतें है। ऐसा करने पर मिटटी का तापमान बढऩे से भूमि जनित कीटाणु एंव रोगाणु नष्ट हो जाते है।
बसवंत-780 अंकुरण के पश्चात
अंकुरण के पश्चात पौध को जड ग़लन बीमारी से बचाने के लिए 2 ग्राम थायरम, 1 ग्राम बाविस्टीन दवा को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। बुआई के लगभग 7-8 सप्ताह बाद पौध खेत में रोपण के लिए तैयार हो जाती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।