धान की फसल में तना छेदक कीट का नियंत्रण      Publish Date : 03/09/2024

                    धान की फसल में तना छेदक कीट का नियंत्रण

                                                                                                                                        प्रोफेसर आर. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी

तना छेदक कीट की इल्ली अवस्था में धान की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाती है। इल्ली का रंग हल्के पीले रंग का होता है। अनेक कृषि वैज्ञानिकों ने तना छेदक कीट के नियंत्रण के लिए विभिन्न उपाय बताये हैं, जिसमें जैविक और रासायनिक दोनों प्रकार के नियंत्रण उपाय शामिल हैं।

                                                      

देश में इस समय धान के खेतों में कई स्थानों पर तना छेदक कीट का प्रकोप देखने को मिल रहा है। यह कीट अपनी इल्ली अवस्था में धान की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाती है। इस कीट की चार अवस्थाएं होती है, जिसमें अण्डा, इल्ली, शंखी व तितली आदि शामिल होते है। मादा तितली पत्तियों की नोंक के पास समूह में अण्डे देती है। अण्डे से इल्ली निकलती है जो हल्के पीले रंग की होती है। अंड़े से बाहर निकलने के बाद इल्ली पहले पत्तियों को खाते हुए धीरे-धीरे पौधे की गोभ के अंदर प्रवेश करती है, जिससे पौधे की बढ़वार रूक जाती है।

यह कीट पौधे के गोभ के तने को नीचे से काट देता है, जिससे धान के पौधे का बीच वाला हिस्सा सूख जाता है। सूखे हुए हिस्से को मृत गोभ (डेड हार्ट) कहते है। इस कीट का प्रकोप बालियां निकलने के समय होता है जिससे फसल को भारी नुकसान पहुँचता है। बालियों में दानों का भराव नहीं हो पाता है और बालियां सूख कर सफेद रंग की हो जाती हैं, जिसे सफेद बालियां (व्हाइट हेड) रोग कहते हैं। प्रभावित बालियों को खींचने पर यह आसानी से बाहर निकल जाता है। कई बालियों में इल्ली अंदर भी दिखाई देती है।

तना छेदक कीट का नियंत्रण के उपाय

                                                       

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं कृषि वैज्ञानिक आर. एस. सेंगर ने इस कीट के नियंत्रण के लिए विभिन्न प्रभावी उपायों के बारे में विस्तार पूर्वक बताया है। जिसमें रोपाई करते समय पौधे के ऊपरी भाग को थोड़ा सा काटकर रोपाई करना होता है, खेतों एवं उनकी मेड़ों को खरपतवार मुक्त रखना, संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का उपयोग करना, खेत की समय-समय पर निगरानी करना तथा इस कीट के अण्डे दिखाई देने पर उन्हें नष्ट कर देना आदि शामिल है।

इसके अतिरिक्त किसान भाई अपने खेतों मे चिड़ियो के बैठने के लिए टी आकार की पक्षी मीनार को भी लगा सकतें हैं। नर तितली को आकर्षित करने के लिए फेरोमोन ट्रैप का उपयोग करें। रात्रि चर कीट को पकड़ने के लिए प्रकाश प्रंपच या लाइट खेतों में लगायें। अण्ड परजीवी ट्राइकोग्रामा जॉपोनिकम के 50 हजार अण्डे प्रति हेक्टेयर की दर से दो से तीन बार खेत में छोड़ना चाहिए और उस समय में रासायनिक कीटनाशक की स्प्रै आदि नही करनी चाहिए। नीम अजेडीरेक्टीन 1500 पीपीएम का 2.5 लीटर प्रति हेक्टयर की दर से प्रयोग करें।

तना छेदक कीट का रासायनिक नियंत्रण कैसे करें

                                                             

कृषि वैज्ञानिक डॉ0 सेंगर के अनुसार दानेदार कीटनाशकों का छिड़काव गभोट वाली अवस्था से पहले ही करना चाहिए। बारिश रूकने व मौसम खुला होने पर ही नीचे दिए गए कीटनाशकों में से किसी एक कीटनाशक का प्रयोग कर सकतें है।

  • क्लोरेटानिलिप्रोएल 0.4 प्रतिशत जीआर 10 किलो प्रति हेक्टेयर या
  • क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. 1250 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या
  • कर्टाफ हाइड्रोक्लोराइड 50 प्रतिशत एस.पी. 1000 ग्राम प्रति हेक्टेयर या
  • क्लोरेटानिलिप्रोएल 18.5 प्रतिशत एस.सी. 150 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या
  • फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस.सी. 1000-1500 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या
  • फ्लूबेंडामाइड 20 प्रतिशत डब्ल्यू. जी. 125 ग्राम प्रति हेक्टेयर का उपयोग कर आप इस कीट का प्रभावी नियंत्रण कर सकते हैं।

ठीक न होने पर 15 दिन बाद दूसरे कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए। अधिक जानकारी के लिए किसान भाई अपने नजदीक कृषि विज्ञान केन्द्र अथवा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के अधिकारियों से संपर्क करें और उनकी सलाह लेने के बाद ही रासायनिक दवाइयों का छिड़काव करें।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।