धान-गेहूं नहीं हल्दी की करें खेती, किसान होंगे समृद्व Publish Date : 02/09/2024
धान-गेहूं नहीं हल्दी की करें खेती, किसान होंगे समृद्व
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
हल्दी की खेती, जो कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल है और अब यह किसानों के बीच लोकप्रिय भी हो रही है। हल्दी की खेती के लिए गर्म और नम जलवायु आदर्श मानी जाती है। इसकी खेती के लिए आदर्श तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस और 225-250 सेंटीमीटर बारिश की आवश्यकता होती है। हल्दी के लिए लाल, चिकनी दोमट या मटियार दोमट मिट्टी उत्तम होती है, जिसमें जल निकासी की क्षमता बेहतर हो। मानसून की पहली बारिश के बाद खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए, जिसमें चार से पांच बार गहरी जुताई करना शामिल है, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।
तराई क्षेत्र का बहराइच जिला कृषि बाहुल्य क्षेत्र है, जहां किसान पारंपरिक रूप से नकदी फसल के रूप में गन्ने की बुआई करते आए हैं। हालांकि, अब वे अन्य फसलों की खेती की ओर भी ध्यान दे रहे हैं, जिसमें हल्दी की खेती प्रमुख है। हल्दी की खेती में इस क्षेत्र के किसानों का रुझान तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि हल्दी की फसल कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है और स्थानीय मंडी में इसकी कीमत भी बेहतर मिल जाती है। मसालों और दवाओं के रूप में उपयोग की जाने वाली हल्दी की फसल अब तैयार हो चुकी है, जिससे बहराइच के किसान इस फसल की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं।
किसान अपने घर पर ही रख सकते हैं हल्दी का स्टॉक
स्रदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर. एस.च सेंगर ने बताया कि हल्दी की खेती करना किसानों के लिए एक अच्छा निर्णय साबित होता है। उन्होंने कहा कि हल्दी को घर पर ही सुरक्षित रखा जा सकता है और उचित भाव आने पर इसे बाजार में बेचा जा सकता है, जबकि आलू को कोल्ड स्टोरेज में रखना पड़ता है। हल्दी को स्टोर करने के लिए घर पर ही पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध होती हैं, जिससे किसानों को अतिरिक्त खर्च से बचने का अवसर मिलता है।
हल्दी की खेती से होंगे किसान समृद्व
हल्दी की खेती में लागत कम और मुनाफा बेहतर होने के कारण यह फसल किसानों के लिए नगदी फसल एक लाभदायक विकल्प बन चुकी है। इसके उपयोग और बिक्री की संभावनाओं को देखते हुए, बहराइच के किसान इस फसल की ओर तेजी से रुख कर रहे हैं। अपने नजदीकी कृयिा विश्वविद्यालय अथवा कृषि विज्ञान केंद्र की सलाह से किसान इस खेती को और भी प्रभावी ढंग से कर सकते हैं, जिससे उन्हें बेहतर उत्पादन और मुनाफा प्राप्त हो सके।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।