
बीज रहित नींबू की खेती कब और कैसे करें Publish Date : 11/08/2024
बीज रहित नींबू की खेती कब और कैसे करें
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
गर्मियों में नींबू की शिकंजी की मांग खूब बढ़ जाती है। नींबू एक ऐसा फल है जो काफी खट्टा होता है लेकिन सेहत के हिसाब से यह काफी लाभकारी होता है। अभी तक आप बाजार में जो नींबू खरीदते हैं उनमें बीज जरूर रहते हैं। आज हम आपको अपनी इस पोस्ट के माध्यम से ऐसे नींबू के बारे में बताने जा रहे हैं जो नींबू बीज रहित होते हैं और इसकी मांग भी लगातार बढ़ रही है।
नींबू का वानस्पतिक नाम सिट्रस लेंटिकोफोलिया है, जो कि रोशन परिवार से संबंध रखता है। बीज रहित नींबू संकर मूल का होता है। इस जाति के पौधे मध्यम आकार के होते हैं जिनमें कांटे भी नाममात्र के ही रहते हैं। इसका पौधा काफी फैला हुआ होता है और इसकी शाखाएं झालरदार होती है, जिसके कारण यह एकदम घना दिखता है।
Thrithi Nimbu के पौधे ज्यादा बड़े नहीं होते हैं और उनके फूल हल्के बैंगनी रंग के साथ सफेद रंग लिए होते हैं। इसके फल अंडाकार या आयताकार होते हैं जो 1.5 से 2.5 इंच चौड़े और 2 से 3 इंच लंबे होते हैं। आमतौर पर इस किस्म के फलों में बहुत कम बीज होता है या बिल्कुल भी नहीं रहता इसलिए इसे बीज रहित नींबू के नाम से भी जाना जाता है।
आमतौर पर इस किस्म के नींबू को तोड़कर तब ही बाजार भेजा जाता है, जब हरा रहता है लेकिन जब इसके फल पूरी तरह से पक जाते हैं तब यह पीलापन लिए हुए हरे या फिर बिल्कुल पीले रंग के हो जाते हैं। इसके फल का गूदा रसदार होने के साथ ही साथ मनभावन खुशबू लिए रहता है। इसके फलों की खुशबू और इसका जायखा तीखा होता है और यही वजह है कि इस किस्म का नींबू लोगों को काफी पसंद आता है।
इस नींबू की सबसे बड़ी खूबी तो यह है कि किसानों को इसकी खेती से दूसरे किस्म के नींबू की खेती से ज्यादा लाभ प्राप्त होता है, क्योंकि दूसरे नींबू की तुलना में इसके कई तरह के फायदे होते हैं जैसे बड़ा आकार, कम बीज या बीज रहित, प्रतिकूल वातावरण में रहने की क्षमता, झाड़ियां पर कांटों का न होना और लंबे समय तक फलों को स्टोर करना कुल मिलाकर यह सारी खूबसूरती बीज रहित नींबू के पौधे को खेती करने के लिए किसानों को अपनी तरफ आकर्षित करती है।
बीज रहित नींबू को पहली बार दक्षिणी इराक और ईरान में कारोबार करने के लिए उगाया गया था। इराक और ईरान से बीज रहित नींबू का सफर शुरू होकर कई मुल्कों में अपना सिक्का जमा चुका है। इसकी पैदावार मास्को में काफी होती है यहां से अमेरिका बाजार, यूरोपीय बाजार और एशियाई बाजारों में बीज रहित नींबू भेजा जाता है। इस पकार से मैक्सिको इसका प्राथमिक उत्पादक और निर्यातक देश बना हुआ है।
सेहत के हिसाब से यह नींबू है महत्वपूर्ण
यह रूसी का इलाज करने के लिए काफी अच्छी तरह से जाना जाता है, जो विटामिन सी की कमी के चलते अकसर लोगों में हो जाती है। इसके अलावा यह रूखी त्वचा की सफाई करके उसे चमकदार बनाता है और संक्रमण से बचाता है। इसके अंदर मौजूद अम्ल त्वचा की मृत कोशिकाओं को साफ करते हैं रूसी, चकत्ते एवं घाव का इलाज भी करते हैं।
इसकी अनूठी सुगंध, जो खाना पचाने में सहायक होती है और इसमें घुलनशील फाइबर होने की वजह से यह खाना पचाने में भी मददगार होता है। इससे शुगर कंट्रोल करने में भी मदद मिलती है तथा यह दिल के मरीजों के लिए भी अच्छा साबित होता है।
जलवायु की जानकारी
इसकी फसल के लिए गहरी और उचित जल निकास वाली बालू दोमट मिट्टी अच्छी मानी जा रही है। इस नींबू की खेती तीनों ही मौसम में आसानी से की जा सकती है और इसकी खेती के लिए अधिकतम तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस होना बेहतर रहता है, अगर मौसम का तापमान 13 डिग्री सेल्सियस के नीचे या 38 डिग्री सेल्सियस से ऊपर है तब पौधों की बढ़वार रुक जाती है जिससे इसके उत्पादन भी पर नकारात्मक असर पड़ता है।
बीज रहित नींबू की कैसे करें खेत में रोपाई
पेड़ों को 16 इंच यानी लगभग 40.5 सेंटीमीटर गहरे गड्ढे की खुदाई कर ले, इसके बाद मिट्टी के ढेर पर थोड़ी ऊंचाई पर नींबू के पेड़ लगा दे। पेड़ लगाते समय नमी वाली जगह से बचे और बाढ़ या पानी जहां जमा होता है उसे जगह से बचें क्योंकि पेड़ जड़ सड़न रोग से ग्रस्त हो जाते हैं। पेड़ों के बीच का अंतराल 20 फुट यानी 6 मीटर की अलग-अलग पंक्तियों में 10 या 15 यानी लगभग 3 फुट 4.5 मीटर के लगभग हो सकती है, जिससे प्रति एकड़ में 150 से 200 पेड़ आसानी से लगाया जा सकते हैं। पेड़ों के बीच ज्यादा दूरी भी ठीक नहीं रहती है, क्योंकि इससे उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है।
कटाई छटाई का प्रबंधन
जब पेट ज्यादा बड़े हो जाते हैं तो उन्हें मशीन या आरी की मदद से बड़ी शाखों को काटना जरूरी हो जाता है अगर ऐसा नहीं किया गया तो पौधे ज्यादा बड़े हो जाते हैं और इस वजह से उनमें लगने वाले रोगों की देखभाल करने में किसानों को परेशानी उठानी पड़ती है। इसके लिए किसानों को चाहिए कि वह दो से तीन साल के अंतराल पर इसके पेड़ों की कटाई और छंटाईं करते रहें। पेड़ों को 20 फुट यानी 6 मीटर की दूरी पर लगाने से अधिक पैदावार मिल सकती है।
कम सिंचाई की होती है आवश्यकता
रोपाईं के समय नए पेड़ों में पानी देना चाहिए और पहले हफ्ते में हर दूसरे तीसरे दिन और फिर पहले कुछ महीनो बाद सप्ताह में एक या दो बार सिंचाई करनी चाहिए। शुरुआत में सिंचाई का खास ध्यान रखना चाहिए नही तो पौधों की बढ़वार रुक जाती है। नए लगाए गए पेड़ों में पहले 3 साल तक हफ्ते में एक बार अच्छी तरह से सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। भागों में जमीन के ऊपर छिड़काव करके सिंचाई की जा सकती है। इस विधि से सिंचाई करने से ज्यादा खर्च नहीं आता और बैग में नबी बनी रहती है और पानी का भी संरक्षण हो सकता है।
कितने उर्वरक का करें इस्तेमाल
पहले साल के दौरान हर 2 से 3 महीना के अंतराल पर नए पेड़ों में उर्वरक का इस्तेमाल करना चाहिए 114 ग्राम उर्वरक के साथ शुरुआत करके प्रति पौधा 455 ग्राम तक बढ़ाया जाना चाहिए। इसके बाद पौधों के बढ़ते आकार के अनुपात में हर साल दो या चार बार पूर्वक के इस्तेमाल करने की संस्तुति की जाती है। इससे पौधों की वृद्धि ठीक रहती है, लेकिन हर साल प्रति पौधा उर्वरक 4.5 किलोग्राम से ज्यादा नहीं देना चाहिए। उर्वरक मिश्रण में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्र चार से 10 प्रतिशत और मैग्नीशियम की 4 से 6 प्रतिशत रहने से युवा पेड़ों में अच्छे नतीजे मिलते हैं। जिन पेड़ों में फल लगे हो उनके लिए पोटाश को 9 से 15 फिजी तक या जाना चाहिए और फास्फोरस को दो से चार फिजी तक कम किया जाना चाहिए।
घासपात न दे बढ़ने
यह प्रक्रिया मिट्टी के नमी को बरकरार रखने में मदद करती है तथा खरपतवार कम होने के कारण वृद्धि भी अच्छी होती है। इसके अलावा मिट्टी की नमी को बरकरार रखने के लिए घास-पात से जगह को ढका जा सकता है। पेड़ के नीचे जंगली घास बचाने और सात के पास मिट्टी में सुधार में मदद करता है। चल या लकड़ी के टुकड़े की दो से 6 इंच यानी 5 से 15 सेंटीमीटर पर के साथ पेड़ों की सतह को ढका जा सकता है। इस आवरण को पेड़ के ताने से 8 से 8 से 12 इंच यानी 20 से 30 सेंटीमीटर दूर प्रयोग किया जाना चाहिए वरना पेड़ों का तना सड सकता है।
फलों का उत्पादन
इसके पेड़ में फूल फरवरी से अप्रैल माह तक बहुत गर्म इलाकों में कभी-कभी साल भर में 5 से 10 फूलों के समूह में मिलते हैं और फल उत्पादन 90 से 120 दिन की अवधि में आ जाता है। फल लगते समय जीवनी के छिड़काव से फलों के जाकर अच्छे होते हैं और गुदेदार भी रहते हैं। नए पौधों जो पहले साल के होते हैं उनमें रोकने के बाद पहले साल 3.6 से 4.5 किलोग्राम और दूसरे साल 5.4 से 9.01 किलोग्राम का फल उत्पादन कर सकते हैं। अच्छी तरह से देखभाल किया गया पेड़ सालाना 9.1 से 13.6 किलोग्राम तक फल 3 साल में दे सकता है, जो कि 4 साल में 27.02 से 40.8 किलोग्राम और 5 साल में 49 से 81.6 किलोग्राम और 6 साल में 90.6 से 113.4 किलोग्राम दे सकता है।
कब करें नींबू की तुडाई
फल पकने पर इकाई फल को हाथ से तोड़ा जाता है लेकिन एक टमटम भी इस्तेमाल किया जा सकता है। सालाना लगभग 8 से 12 बार फल की तौड़ाई होती है। इसका सटीक समय जुलाई से सितंबर माह तक है। 70 प्रतिशत फैसले में में तैयार होती हैं और लगभग 40 प्रतिशत फसलों का इस्तेमाल केवल रस के गूदा बनाने के लिए किया जाता है। कच्चे फल रस को नहीं बनाते हैं इसलिए इसे उसे समय नहीं तोड़ा जाना चाहिए, बेहतर प्रणाम के लिए तभी तोड़े जब फल एकदम पककर तैयार हो जाए।
फलों की पैदावार पौधों में साल भर फूल और फल लगते हैं पर गर्मियों के अंत की ओर एक विशिष्ट फैलने का उच्चतम स्तर दिखाई देता है 41 किलोग्राम फलों की पैदावार दो मीटर लंबे पेड़ों से हासिल की जा सकती है जबकि साइप्रस जमुरी का कलम बांधने के बराबर आकार के पेड़ों में 21 किलोग्राम की पैदावार तक देखी गई है।
फल का भंडारण फलों में किसी उपचार की जरूरत नहीं होती है। ताजा फल 6 से 8 हफ्ते के लिए अच्छी स्थिति में रहते हैं, इसलिए इनके रखरखाव में ज्यादा खर्च नहीं आता है लेकिन इससे ज्यादा दिनों तक स्टोर करने के लिए कोल्ड स्टोरेज की जरूरत पड़ती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।