गन्ने की फसल को रोगों से कैसे बचाएं      Publish Date : 03/08/2024

                              गन्ने की फसल को रोगों से कैसे बचाएं

                                                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृषाणु

गन्ना एक लम्बी अवधि फसल है, जिसके चलते इसमें रोग लगने की सम्भावानाएं सदैव ही बनी रहती है। गन्ने की फसल में लगने वाले यह रोग अपने अपने क्षेत्रों के अनुसार अलग-अलग भी हो सकते हैं। इस प्रकार गन्ने की फसल में लगने वाले रोगों का समय के रहते ही निदान करना भी आवश्यक होता है, रोग निदान करने के बाद ही किसान भाईं गन्ने की अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं।

                                                                        

गन्ने की फसल में लगने वाले रोगों के लगने और इनके निदान के बारें में सम्पूर्णं जानकारी प्रदान कर रहें हैं हमारे विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर राकेश सिंह सेंगर-

लाल सड़न रोग और उसके लक्षण

                                                                            

  • लाल सड़न रोग एक फफंूद जनित रोग है। इस रोग के लक्षण अप्रैल माह से जून के महीने तक पत्तियों के निचले भाग (लीफ शीथ के समीप), के ऊपर की ओर मध्य सिरे पर लाल रग के धब्बे मोतियों की माला के रूप मे दिखाईं देने लगते हैं।
  • जुलाईं-अगस्त के महीने में रोग से ग्रसित गन्ने के अगोले की तीसरी से चौथी पत्ती उसके एक किनारे अथवा दोनों किनारों से सूखना शरू हो जाती है और जिसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे गन्ने का पूरा अगोला ही सूख जाता है।
  • इस रोग में गन्ने के तने का रंग अन्दर से लाल होने के साथ ही उस सफेद रंग के धब्बे भी दिखाईं देनें लगते हैं। गन्ने के तने को सूँघने पर उसमें से सिरके अथवा अल्कोहल के जैसी गंध आने लगती है।

रोग प्रबन्धन के उपाय

                                                                      

  • इस रोग से बचने के लिए किसान भाईं, गन्ने की रोगरोधी प्रजातियों की ही बुआईं करें।
  • लाल सड़न रोग से अधिक प्रभावित क्षेत्रों में किसान गन्ने की प्रजाति को0-0238 की विशेष रूप से बुआईं न करें। गन्ने की इस प्रजाति के स्थान पर गन्ने की अन्य स्वीकृत किस्मों की रोग रहित प्रजातियों की नर्संरी तैयार कर उनकी बुआइ करें।
  • गन्ने की खेत में बुआईं करने से पहले कटे हुए गन्ने के टुकड़ों को कार्बेंन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी या थियोफनेट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी के साथ उसका रासायनिक शोधन आवश्यक रूप से करें।
  • खेत की मृदा का जैविक शोधन मख्य रूप से ट्राइकोडर्मां अथवा स्यूडोमोनास कल्चर से 10 किग्रा0 प्रति हैक्टेयर की दर से 100-200 किलोग्राम कम्पोस्ट खाद में 20-25 प्रतिशत नमी के साथ मिलाकर जरूर करें।
  • गन्ने की बुआईं करने से पहले गन्ने के कटे हए टुकड़ों को सेट ट्रीटमेंट डिवाइस (0.1 प्रतिशत कार्बेंनडजिम 50 डब्ल्यूपी या थियोफनेट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी, 200 एचजीएमएम पर 15 मिनट) या हॉट वाटर ट्रीटमेंट (52 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान पर दो घंटे) या एमएचएटी (54 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान, 95-99 प्रतिशत आर्द्रंता पर 2.5 घंटे) के साथ उपचारित अवश्य करें।
  • अप्रैल से जून माह तक अपने खेतों की लगातार निगरानी करते रहें तथा पत्तियों के मध्य सिरों के नीचे रूद्राक्ष/मोती की माला के जैसे धब्बों वाले गन्ने के पौधों को समूल निकालकर उन्हें नष्ट कर दें और गड्ढ़ों में 10 से 20 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर डाल कर उसे ढक दें अथवा 0.2 प्रतिशत थियोफनेट मिथाइल के घोल की ड्रेचिंग करें।

इस रोग के लक्षण दिखाईं देने पर उपरोक्त प्रक्रिया जुलाईं-अगस्त के महीनों में भी निरंतर करते रहें।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।