हल्दी की खेती से सम्बंधित जानकारी Publish Date : 08/05/2023
हल्दी की खेती से सम्बंधित जानकारी
डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा
हल्दी की खेती मसाला फसल के लिए की जाती है। इसके अलावा हल्दी का उपयोग कई तरह की औषधियों को तैयार करने के लिए भी किया जाता है। हल्दी का उत्पादन कंद के रूप में प्राप्त होता ह,ै भारतीय हिन्दू समाज के लोग हल्दी का उपयोग विभिन्न धार्मिक रीति रिवाज़ो में भी करते है। शादी विवाह के अवसर पर भी हल्दी की रस्मों को विशेष रूप से निभाया जाता है। हल्दी में बहुत से विशेष गुण पाए जाते है, जिससे यह बहुत ही काम की चीज बन जाती है, इसके कंद में कुर्कमिन होता है, तथा एलियोरोजिन को भी इससे ही निकाला जाता है जबकि हल्दी में स्टार्च अधिक मात्रा में उपलब्ध होता है।
भारत में हल्दी की खेती
हल्दी उत्पादन के मामले में भारत को विश्व में पहला स्थान प्राप्त होने के साथ-साथ यह हल्दी का सबसे बड़ा निर्यातक भी कहा जाता है। दुनिया के नीदरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, जापान, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, सउदी अरब, जर्मनी और अमेरिका आदि देशो को भारत से हल्दी का निर्यात किया जाता है।
भारत में हल्दी की खेती पश्चिम बंगाल, केरल, मेघालय, तमिलनाडु, ओडिशा, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य में मुख्य तौर पर की जाती है, और अकेले आंध्र प्रदेश में 40 प्रतिशत हल्दी का उत्पादन किया जाता है। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश राज्य के बाराबंकी और बहराइच जिले में भी इसकी खेती की जाने लगी है।
हल्दी की खेती में मिट्टी, जलवायु एवं तापमान
हल्दी की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है, उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी में हल्दी का उत्पादन अधिक मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है। इसकी खेती के लिए भूमि का चभ्. मान 5.5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए। हल्दी के पौधों को गर्म और आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है, किन्तु अधिक गर्म और ठंड जलवायु इसकी फसल के लिए हानिकारक होती है। इसके बीजो को आरम्भ में अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री का तापमान उपयुक्त रहता है, तथा पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है।
हल्दी की प्रजातियाँ
राजेन्द्र सोनिया
हल्दी की इस क़िस्म को तैयार होने में 7 से 8 महीने का समय लग जाता है। जिसमे निकलने वाला पौधा तीन फ़ीट तक लम्बा होता है, तथा कंदो का रंग 8 से 8.5 प्रतिशत तक पीला होता है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 400 से 450 क्विंटल का उत्पादन दे देती है।
सोरमा
इस क़िस्म के पौधे बीज रोपाई के 7 माह पश्चात् पैदावार देना आरम्भ कर देते है। जिसमे निकलने वाले कंदो में 9 प्रतिशत तक पीलापन पाया जाता है। सौरमा क़िस्म के पौधे प्रति हेक्टेयर में 350 से 400 क्विंटल का उत्पादन दे देते है।
आर. एच. 5
हल्दी की इस क़िस्म में निकलने वाले पौधों का आकार तीन फ़ीट तक लम्बा होता है, जिन्हे तैयार होने में 7 महीन तक का समय लग जाता है। इसके कंदो का रंग 7 प्रतिशत तक पीला होता है, तथा एक हेक्टेयर के खेत से 500 क्विंटल तक का उत्पादन प्राप्त हो जाता है।
सगुना
इस किस्म के कन्द मोटे एवं गूदेयुक्त होते हैं, इस किस्म की अधिकतम उत्पादन क्षमता 240 से 250 क्विंटल प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती हैं, लेकिन सामान्य परिस्थितियों में ताजे कन्दों की औसत उपज 110 से 120 क्विंटल प्रति एकड़ है। जिसमें से 25 से 30 क्विंटल प्रति एकड़ सूखे कन्द प्राप्त होते हैं, इसमें 6 प्रतिशत सुगन्ध तेल प्राप्त होता है।
सुगंधमः
210 दिनों में तैयार होने वाली इस किस्म की हल्दी के कंद आकर में लंबे और हल्की लाली लिए हुए पीले रंग के होते हैं। आमतौर पर प्रति एकड़ जमीन से करीब 80 से 90 क्विंटल हल्दी प्राप्त होती है।
पालम पिताम्बरः
यह अधिक पैदावार देने वाली फसलों में से एक है। इसके कंद गहरे पीले रंग के होते हैं। प्रति एकड़ जमीन से लगभग 132 क्विंटल हल्दी की उपज होती है।
सुदर्शनः
इस किस्म की हल्दी के कंद आकर में छोटे और दिखने में खूबसूरत होते हैं। इसे लगाने के करीब 190 दिनों बाद इसकी खुदाई की जा सकती है।
हल्दी के खेत की तैयारी और उवर्रक
हल्दी की फसल करने से पहले खेत को अच्छी तरह से साफ कर उसे तैयार कर ले। इसके लिए सबसे पहले खेत में पलाउ लगाकर जुताई करवा दे। जुताई के पश्चात खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाता है।
इसके बाद खेत में 25 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में अच्छे से जुताई कर मिला दे। इसके बाद खेत में पानी लगा दे, पानी लगाने के कुछ दिन बाद जब खेत सूख जाए तब खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दे, इससे खेत में मौजूद मिट्टी के ढेले टूट जायेंगे और मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी। भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है, समतल खेत में जलभराव की समस्या नहीं देखने को मिलती है।
हल्दी के खेत में रासायनिक उवर्रक के तौर पर 100 कि.ग्रा., नाइट्रोजन, 80 कि.ग्रा. पोटाश, 40 कि.ग्रा. फास्फोरस और 25 कि.ग्रा. जिंक की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए।
हल्दी के बीजो की रोपाई का समय और तरीका
हल्दी के बीजो की रोपाई के लिए दो तरीको का इस्तेमाल किया जाता है, पहले तरीके में बीजो को खेत में तैयार मेड़ पर लगाना होता है, इन मेड़ो पर बीजो को 20 ब्ड की दूरी पर लगाया जाता है और एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 7 से 8 क्विंटल बीज लग जाता है।
बीज रोपाई के दूसरे तरीके में बीजो को समतल भूमि में 15 से 20 ब्ड की दूरी पर डाल दिया जाता है, और बड़े हल की सहायता से उन्हें मिट्टी से ढक देते है। बीजो की रोपाई से पूर्व उन्हें मैंकोजेब और कार्बेन्डाजिम का घोल बनाकर उसमे 30 मिनट तक रखकर उपचारित कर लेते हैं। इसके बाद इन उपचारित बीजो को छायादार जगह में रखकर सुखा ले, और फिर बीजो की रोपाई कर दें।
हल्दी के बीज की रोपाई के लिए मई का महीना सबसे अच्छा माना जाता है, किन्तु यदि आप चाहे तो बीजो को जून के आरम्भ तक भी इसे लगा सकते हैं। इस दौरान बारिश का मौसम होता है, और बीजो को अंकुरित होने के लिए उपयुक्त तापमान मिल जाता है।
हल्दी के पौधों की सिंचाई
हल्दी के बीजो की रोपाई बारिश के मौसम में की जाती है, इसलिए इन्हे प्रारंभिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। किन्तु समय पर बारिश न होने पर खेत में पानी जरूर लगा देना चाहिए। बारिश के मौसम के पश्चात् हल्दी के पौधों की सिंचाई 25 दिन के अंतराल में की जाती है, इस प्रकार हल्दी की फसल में अधिकतम 4 से 5 सिंचाई ही की जाती है।
हल्दी के फसल की खुदाई, सफाई
हल्दी की फसल 7 महीने पश्चात खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। जब इसके पौधों की पत्तिया सूखी दिखाई देने लगे उस दौरान कंदो की खुदाई कर ली जाती है। कंद निकालने से पहले खेत में पानी लगा देना चाहिए, इससे कंदो को निकालने में आसानी रहती है। हल्दी कंदो को निकालने के पश्चात उन्हें पानी से धोकर अच्छे से साफ कर ले, और छाया में ठीक तरह से सूखा लेना चाहिए और सूखने के बाद उन्हें बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है।
प्रति लीटर के हिसाब से सोडियम बाइकार्बानेट की 10 ग्राम की मात्रा को उबलते हुए पानी में डालकर मिला ले, उसके बाद इन कंदो को भी उसी में डाल दे, फिर उन्हें पानी से निकालकर ठीक से छायादार जगह पर सुखा ले, इससे हल्दी का रंग आकर्षक दिखाई देने लगता है।
हल्दी की खेती से पैदावार और कमाई
हल्दी के एक हेक्टेयर के खेत से किस्मों के आधार पर 250 से 600 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है, जिन्हे सुखाने के बाद उत्पादन लगभग 20 से 25 प्रतिशत तक ही रह जाता है। हल्दी का बाज़ारी भाव 6 से 10 हजार रूपए प्रति क्विंटल होता है, जिससे किसान भाई एक हेक्टेयर के खेत में हल्दी की एक बार की फसल से 5 लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृशि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ में जैव पा्रैद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष एवं निदेशक प्लेसेमेंट हैं।
डिस्कलेमरः उपरौकत विचार लेखक के मौलिक विचार हैं।