भारत में बासमती की दो नई किस्म से हुआ बंपर उत्पादन Publish Date : 23/05/2024
भारत में बासमती की दो नई किस्म से हुआ बंपर उत्पादन
डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं गरिमा शर्मा
चावल उत्पादन के लिए चिन्हित सात राज्यों के लिए की गई अनुशंसा
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने कम लागत में धान की अच्छी पैदावार के लिए दो नई किस्में जारी की है। पूसा बासमती 1985 एवं पूसा बासमती 1979 नामक इन दोनों किस्मों को खरपतवार के अत्यधिक खतरे वाले खेतों के लिए बेहद अनुकूल बताया गया है और सामान्य बासमती धान की तुलना में अधिक उन्नत है। इन दोनों किस्म के बीजों की सीधी बुवाई होने के कारण खेती में लगभग 30 से 35 प्रतिशत लागत काम आएगी और प्रति एकड़ उत्पादन भी अच्छा होगा। कृषि अनुसंधान संस्थान ने बासमती धान की खेती के लिए चिन्हित सात राज्यों के लिए दोनों किस्म की अनुशंसा की है।
इन राज्यों में जम्मू कश्मीर, हिमाचल, हरियाणा, पंजाब उत्तराखंड, दिल्ली एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 30 जिले शामिल है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक अशोक कुमार सिंह ने दोनों नई किस्म की जानकारी देते हुए बीजों के पैकेट भी किसानों को वितरित किए।
इस मौके पर उन्होंने बताया कि पूसा बासमती 1985 को पूसा बासमती 1509 में सुधार कर विकसित किया गया है और इसकी फसल 115 से 120 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 22 से 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। इसी प्रकार उषा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1121 को उन्नत कर तैयार किया गया है और इसकी फसल 130 दिनों में तैयार हो जाती है। इन किस्मों की अच्छी पैदावार के लिए प्रति एकड़ 8 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है।
कीटनाशकों का साइड इफेक्ट नहीं होता
धान की खेती में खरपतवार भी काफी बड़ी संख्या में उगते हैं। इससे फसल में कई तरह के रोग हो सकते हैं और उन पर कीट पनप सकते हैं। इससे 25 से 30 प्रतिशत उत्पादन कम हो सकता है। ऐसे में बचाव के लिए किसान खरपतवार नाशक दवा छिड़कते हैं जो फसल को भी प्रभावित करते है। बासमती धान की दोनों नई किस्म को इस तरह विकसित किया गया है कि कीटनाशक का असर सिर्फ खरपतवार पर होता है और धान की फसल इसके प्रभाव से पूरी तरह से सुरक्षित रहती है। कृषि संस्थान ने बुवाई में इनके इस्तेमाल की भी अनुशंसा की है और बताया है कि पौधे से पौधे की दूरी भी उचित फासला रखने पर अत्यधिक उपज हो सकती है।
बासमती धान की खेती के लिए जी टैग की आवश्यकता होती है, जिससे अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्र स्तर पर इसकी ज्यादा से ज्यादा मांग हो और किसानों को उचित कीमत मिले। इस बात को ध्यान में रखते हुए खेती के लिए की चिन्हित राज्यों के लिए अनुशंसा की गई है, जिससे इन प्रजातियों को और आगे बढ़ाया जा सके।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।