सूखा प्रभावित क्षेत्रों में बाजरा की सफल खेती

                      सूखा प्रभावित क्षेत्रों में बाजरा की सफल खेती

                                                                                                                                                                  डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृषाणु

सूखा प्रभावित क्षेत्रों में करें बाजरा मोटे अनाज की खेती, कम खर्च में होगा बेहतर मुनाफा, इसके साथ ही चारे की समस्या का भी होगा समाधान-

                                                                              

गेहूं की कटाई के बाद ज्यादातर किसान धान की रोपाई करते हैं। धान की खेती के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। ऐसे में अगर आपके पास सिंचाई के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं है तो आप बाजरे की खेती करके भी अच्छी कमाई कर सकते हैं। बाजरे की फसल 60 से 70 दिन में पककर तैयार हो जाती है। बाजरे की फसल को कम पानी की आवश्यकता होती है और खास बात तो यह है कि बाजरे की खेती में लागत भी बेहद कम आती है।

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के प्रोफसर और वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ0 आर. एस. सेंगर ने बताया कि बाजरा को मोटे अनाज के तौर पर जाना जाता है। सरकार लगातार मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। बाजरे की रोटी और चूरमा सर्दियों के दिनों में बहुत अधिक पसंद किया जाता है और भारत में इसकी खेती प्राचीन समय से होती आ रही है।

भारत अब तक बाजरे का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। बाजरे की खेती से एक और यहां अनाज मिलता है तो वहीं दूसरी ओर पशुओं के सूखा चारा भी पयाप्त मात्रा में मिल जाता है इसी के चलते यह किसानों के लिए एक फायदे की फसल है।

भूमि एवं प्रजाति का चयन:

                                                                 

किसानों को अपने क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु के आधार पर ही बाजरे की प्रजाति का चयन करना चाहिए। डॉ0 आर. एस. सेंगर ने बताया कि बाजरे की फसल लेने के लिए उत्तम जल निकास वाली भूमिका चयन करना चाहिए। बाजरे की खेती हल्की बलुई दोमट और दोमट मिट्टी में की जाए तो इसका अच्छा उत्पादन मिलता है। भारत में बाजरे की कई किस्में उगाई जाती है। जिनमें फॉक्सटेल बाजरा, छोटा बाजरा, फिंगर बाजराऔर मोती बाजरा आदि शामिल है। जरूरी है कि किसान अपने क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु को ध्यान रखते हुए ही उपयुक्त किस्मों का चयन करना चाहिए।

बाजरे की रोगरोधी है किस्म

कृषि वैज्ञानिक डॉ0 सेंगर ने बताया कि बाजरे की नई किस्म एचएचबी- 311 जोगिया रोग रोधी है। इस प्रजाति में दूसरी किस्मों की तुलना में सूखा चारा और उपज भी अधिक मिलती है। यह 70 से 80 दिन में पककर तैयार हो जाती है। अगर किसान बाजरे की फसल की अच्छे से देखभाल करें. तो यह फसल 18 से 19 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से उत्पादन दे देती है।

बाजरे की खेती के लिए खेत तैयारी

                                                          

डॉ0 सेंगर ने बताया कि बाजरे की बुवाई करने से पहले मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई कर देना उचित है। इसके बाद दो से तीन बार डिस्क हैरो या फिर कल्टीवेटर से जमीन को जोत कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए तथा इसके बाद पाटा चला कर खेत को समतल कर लेना चाहिए।

बाजरे की एक हेक्टेयर बुवाई के लिए 4 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। किसानों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमेशा प्रमाणित बीज का ही उपयोग करें। बाजरे की बुआई 15 जुलाई से 15 अगस्त तक करना उचित रहता है।

बुवाई से पहले करने वाले मुख्य काम

                                                                        

डॉ0 आर. सेंगर ने बताया कि बाजरे की बुवाई से पहले बीज शोधन अवश्य कर लेना चाहिए। बीज शोधन के लिए 1 किग्रा नमक 5 लीटर पानी में घोलकर बीज को इस घोल में लगभग 5 मिनट तक डुबोकर रखें और इसे चलाते रहें। इसके बाद पानी के ऊपर तैरते हुए हल्के बीज को अलग कर लेना चाहिए। पानी में नीचे के बचे हुए बीज को साफ पानी से धोकर छाया में सूखने के लिए छोड़ दें।

बुवाई से पहले एक ग्राम थायोयूरिया प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 5 घंटे तक बीज को भिगोकर 2 से 3 घंटे छाया में सुखा लेना चाहिए। इसके बाद प्रति किलो बीज के हिसाब से 3 ग्राम थीरम से उपचारित कर लें और उसके बाद अगर बीज को एजोटोबेक्टर और पीएसबी कल्चर से उपचारित कर लिया जाए तो और भी अधिक लाभदायक रहेगा।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।