धान के बजाय किसान करें इन सुनहरे दानों की खेती

धान के बजाय किसान करें इन सुनहरे दानों की खेती

डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं आकांक्षा सिंह

कम बारिश और कम जमीन में भी मिलेगा डबल मुनाफा

                                                                         

जैसा कि हम सब लोग जानते हैं कि कोरोना महामारी के बाद से ही लोग अपनी सेहत के प्रति काफी सजग हो गए हैं और ऐसे में सभी लोग पौष्टिक भोजन की तलाश में रहते हैं। ऐसे में बाजार में गोल्डन बीन नामक सोयाबीन की डिमांड भी काफी तेजी से बढ़ी है। गोल्डन बीन के नाम से मशहूर सोयाबीन की खेती भी काफी लाभदायक सिद्व होती है। यह फसल किसान को अब आर्थिक रूप से मजबूत भी बना रही है। यह खेती पारंपरिक खेती से अलग होती है, और खास बात यह है कि इस फसल को कम जमीन, कम पानी में भी ज्यादा आसानी से उगाया जा सकता हैं और इससे किसान बंपर मुनाफा कमा सकते हैं।

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ0 आर. एस. सेंगर ने बताया कि जलवायु परिवर्तन होने के कारण कई बार समय पर बारिश नहीं होती है। ऐसे में किसानों को मौसमी फसलों में काफी नुकसान उठाना पड़ता है। कई बार समय पर बारिश नहीं होने से धान की फसल को भी भारी नुकसान होता है। डॉ0 सेंगर ंने बताया कि ऐसी स्थिति में किसान सोयाबीन की खेती कर अपने नुकसान को कम और मुनाफे को बढ़ा सकते हैं।

बेहतर उत्पादन के लिए इन बीजों का करें चयन

                                                                                  

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि किसान को कम लागत में अधिक मुनाफे के लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा मध्य प्रदेश के जबलपुर में सोयाबीन की उन्नत किस्में तैयार की गई है। इन किस्मों में जेएस 2036, जेएस 2095 और जेएस 355 आदि वैरायटीज शामिल है। इनका उपयोग कर किसान बेहतर आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

डॉ0 सेंगर ने बताया कि सोयाबीन की खेती हमेशा ऊंची भूमि वाले खेत में ही करनी चाहिए। सोयाबीन का बीज लगाने का सबसे बेहतर समय मई-जून में होने वाली पहली बारिश वाला समय होता है। पहली बारिश में जब खेत में नमी आ जाती है, तब इसकी बुआई करनी चाहिए। सोयाबीन की खेती के समय खेत में पानी का जल भराव नहीं होना चाहिए।

पौधों के बीच दूरी और खाद की मात्रा

                                                                      

डॉ0 सेंगर ने आगे बताया कि सोयाबीन के बीज की बुआई के समय पौधे से पौधे की दूरी 5 से 10 सेंटीमीटर, लाइन से लाइन की दूरी 45 से 50 सेमी रखने से पौधों को भरपूर पोषण मिलता है और किसान को बेहतर उत्पादन प्राप्त होता है। एक हेक्टेयर में किसान को 25 से 30 क्विंटल तक का उत्पादन प्राप्त होता है। इसके लिए किसानों को 1 हेक्टेयर में 40 से 50 किलो डीएपी, 40 से 50 किलो पोटाश और 80 किलो यूरिया की आवश्यकता पड़ती है।

यूरिया का उपयोग थोड़ी-थोड़ी मात्रा में तीन बार करना चाहिए। एक हेक्टेयर में करीब 12 से 15 किलो यूरिया बुआई के समय उसके बाद 25 से 30 किलो यूरिया पौधे के विकास के समय और 40 से 50 किलो यूरिया पौधे में जब फूल लग जाते हैं, के समय देना चाहिए।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।