पूसा संस्थान ने दी धान की सीधी बुवाई की सलाह Publish Date : 18/05/2024
पूसा संस्थान ने दी धान की सीधी बुवाई की सलाह
डॉ0 शालिनी गुप्ता, डॉ0 वर्षाा रानी एवं डॉ0 आर. एस. सेंगर
पैदावार में बढ़ोतरी का दिया आश्वासन
पूसा संस्थान (आईएआरआई) की ओर से समय-समय पर खेती किसानी सम्बंधी जानकारी साझा की जाती रही है। अब धान की बुआई का समय आ रहा है और पूसा संस्थान की ओर से धान की सीधी बिजाई की विस्तृत जानकारी जारी की गई है। पूसा संस्थान के निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह ने धान की सीधी बिजाई के लाभ बताते हुए कहा कि ‘धान की सीधी बिजाई के तीन प्रमुख फायदे हैं - पहला पानी की बचत, दूसरा श्रम की बचत और तीसरा ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कमी। किसानों को अपने खेत में पानी की व्यवस्था, निवेश की क्षमता के हिसाब से धान की प्रजातियों का चुनाव करना चाहिए।’
कम समय अवधि में अधिक पैदावार देने वाली बासमती प्रजातियाँ
बासमती धान की प्रमुख किस्में, जो कम अवधि यानि 120 से 125 दिन के अंदर पक कर तैयार हो जाती है वे प्रजाति है पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1692 और पूसा बासमती 1847। 140 दिन के अंदर पक कर तैयार होने वाली किस्मों में पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 1718 और पूसा बासमती 1885 शामिल है।
इसके अलावा लंबी अवधि की किस्में हैं जो कि 155 से 160 दिन के अंदर पक कर तैयार होती हैं उनमें पूसा बासमती 1401, पूसा बासमती 1728, पूसा बासमती 1886 आदि शामिल है। पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1885 और पूसा बासमती 1886 पत्ती का झुलसा और झोंका रोग के लिए प्रतिरोधी किस्में हैं। यह सभी किस्में धान की सीधी बिजाई के लिए उपयुक्त पाई गई हैं।
बुआई के लिए कैसे तैयार करें बीज अर्थात बीज का उपचार
जीरो बिजाई ड्रिल या लकी सीड ड्रिल के अनुसार 8 किलोग्राम धान का बीज प्रति 1 एकड़ खेत में लगता है। बुआई के लिए बीज तैयार करने के लिए 1 किलोग्राम नमक 10 लीटर पानी में घोल लीजिए और इसमें 8 किलोग्राम बीज डाल कर उसे थोड़ी देर एक डंडे से हिलाते जाईये। इससे हल्के बीज ऊपर तैरने लग जाएँगे। हल्के बीजों को निकाल कर बाहर फेंक दीजिए। डूबे हुए बीज को निकालकर पानी से तीन चार बार अच्छी तरह से धो लीजिए ताकि नमक का प्रभाव समाप्त हो जाए।
इसके बाद बीज उपचार के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 2 ग्राम मात्रा और बाविस्टीन की 20 ग्राम मात्रा 10 लीटर पानी में घोल कर 8 किलो छठे हुए बीज को इस घोल में डुबो कर 24 घंटे रखिए। 24 घंटे के बाद बीज को बाहर निकालिए और उसको छाया में अच्छी तरह से सुखा लीजिए। अब यह बीज बुआई के लिए तैयार है।
धान की बुआई
धान की सीधी बिजाई के दो प्रमुख तरीके प्रचलन में हैं। पहला तरबतर विधि जिसमें कि गेहूं की कटाई के बाद खेत की जुताई कर देते हैं। जुताई करने के बाद उसको लेजर लेवलर से लेवलिंग करते हैं। फिर खेत में पानी लगाए। पानी लगाने के बाद जब खेत में बत्तर आ जाता है तो उसकी फिर से जुताई करें। 2-3 बार जुताई करने के बाद लेज़र से फिर लेवलिंग करें ताकि मिट्टी अच्छी तरह से दब जाए और सॉलिड हो जाए। ऐसा करने से नमी लंबे समय तक बनी रहती है।
लकी ड्रिल से धान की बुआई करें
जीरी ड्रिल और लकी ड्रिल के वक्त कतार से कतार की दूरी करीब 8 से 9 इंच के आसपास होनी चाहिए और इस विधि में बीज की गहराई हम तकरीबन डेढ़ इंच के आसपास रखते हैं। बिजाई करने के बाद फिर हल्का पाटा चलाते हैं। इस विधि से सात से आठ दिन के अंदर अंकुरण हो जाता है। अजर लकी ड्रिल से बुआई कर रहे हैं तो उसमे व्यवस्था होती है कि साथ में शाकनाशी पेंडीमिथालिन दवा आप डाल सकते हैं।
यदि आप दूसरा तरीका बुवाई के लिए प्रयोग करते हैं तो उसमें गेहूं की कटाई के बाद खेत की जुताई करके लेजर लेवलर चलाते हैं। लेजर लेवलर चलाने के बाद ड्रिल से धान की बिजाई कर देते हैं और फिर पानी लगा देते हैं। पानी लगाने के 4 से 5 दिन के अंदर अंकुरण हो जाता है। इस विधि में ध्यान रखना चाहिए कि बीज की गहराई थोड़ी कम ही रखें मतलब करीब आधा पौन इंच के आसपास ही रखें। कम गहराई रखना जरूरी है क्योंकि जब पानी लगेगा तो ज्यादा गहराई वाले बीज को अंकुरण में दिक्कत होगी और बीज नीचे दब कर सड़ भी सकता है ।
तरबतर विधि से बुआई के तुरंत बाद जब खेत चलने लायक हो जाए तो खरपतवारनाशी पेंडीमिथालिन दवा का उपयोग करें। इसके लिए 1200 से लेकर के 1500 मिलीलीटर दवा आप 200 से 250 लीटर पानी में घोल कर बुआई के तुरंत बाद ही इसका छिड़काव करें।
इन दोनों विधियों में अंतर
दोनों विधियों में अंतर है। अगर तरबतर विधि से धान की सीधी बिजाई करते हैं तो इसमें खरपतवार का नियंत्रण बहुत अच्छी तरह से हो जाता है, क्योंकि पहली बार पानी लगाते ही उसके तुरंत बाद चार से पांच दिन में अंकुरण हो जाता है। जुताई करने के साथ-साथ खरपतवार भी समाप्त हो जाते हैं। अगर धान की पिछले साल की फसल के बीज खेत में अंदर रह जाते हैं तो वह भी पहली बार पानी का छिड़काव के साथ ही बीज जम जाते हैं और जब जुताई करते हैं तो वो सब पौधे मर जाते हैं।
अगर आप इस बात का ध्यान रखें कि पहले जिस किस्म का प्रयोग किया गया था उसी किस्म का प्रयोग करें तो फिर कोई चिंता की बात नहीं है। लेकिन अगर किस्म आप बदल रहे हैं तो इस बात का जरूर ध्यान रखें पेंडीमिथालिन दवा का छिड़काव करें इससे खरपतवार का शुरू की अवस्था में ही नियंत्रण हो जाता है।
कैसे करें खरपतवार नियंत्रण
दोनों ही तरीकों में धान की बिजाई तरबतर विधि से हो या जीरी ड्रिल और लकी ड्रिल उसमें बुवाई के तुरंत बाद पेंडीमिथालिन नामक दवा प्रयोग करते हैं। अगर लकी ड्रिल प्रयोग कर रहे हैं तो उसमें व्यवस्था होती है कि तुरंत छिड़काव कर सकते है। इसके लिए 1200 से लेकर के 1500 मिलीलीटर दवा आप 200 से 250 लीटर पानी में घोल कर बुआई के तुरंत बाद छिड़काव करते हैं।
यह प्री इमरजेंस हर्बीसाइड का काम करता है और खरपतवार मर जाते हैं। इसी तरह से हम अगर पानी का छिड़काव बुवाई के बाद करते हैं तो एक दो दिन बाद खेत में चलने लायक हो जाये तो उस समय खरपतवार नाशक दवा का छिड़काव कर लेना चाहिए।
करीब 20 से 22 दिन बाद पहली बार खेत में पानी छिड़काव करते हैं। जब खेत चलने लायक हो जाता है तो उसमें नॉमिनी गोल्ड दवा का छिड़काव करते हैं। जिसमें करीब 80-100 मिली लीटर मात्रा को 200 से 250 लीटर पानी में घोल करके उसका छिड़काव करते हैं। तो इससे जो खरपतवार उगे होते हैं वो नष्ट हो जाते हैं। अगर आप इन बातों का ध्यान रखें तो हम धान की सीधी बिजाई से अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।