ग्रीष्मकालीन गन्ने की बुआई का तरीका

                      ग्रीष्मकालीन गन्ने की बुआई का तरीका

                                                                                                                                                  डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

                                                              

मई माह में ग्रीष्मकालीन गन्ने की बुआई की जाती है। इस प्रजाति के गन्ने की पैदावार शरद और बसंतकालीन गन्ने से कम होती है। यदि ग्रीष्मकालीन गन्ने की पैदावार को बढ़ाना है तो उपयुक्त किस्म तथा संतुलित पोषण अनिवार्य घटक है। बुवाई से पूर्व गन्ने के टुकड़ों को 24 घंटे पानी में भिगोकर रखने पर उनका अंकुरण अच्छा होता है। गन्ने की फसल को रोग से बचाने के लिए रोगरोधी प्रजातियों की बुवाई करनी चाहिए। गन्ने की फसल को अंकुर बेधक व दीमक आदि कीटों से बचाने के लिए कूंड़ को ढकने से पहले बीएचसी 20 ई.सी. दवा की 6 मिली. मात्रा को 1 लीटर पानी में घोलकर बोए गए टुकड़ों के ऊपर छिड़काव करना उचित रहता है। स्वस्थ बीज एवं समन्वित रोग प्रबंधन के द्वारा गन्ने में लगने वाले रोगों से बचाव करना संभव है तथा अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। रोगग्रस्त गन्ने की पेड़ी को खेत से निकालकर 0.1 प्रतिशत कार्बण्डाजिम का छिड़काव करना चाहिए।

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गन्ने की सीओएच-37 प्रजाति मई के पहले सप्ताह तक लगा सकते हैं। यह किस्म तेजी से बढ़ने वाली किस्म है तथा इसका गन्ना मोटा, नरम व रसीला होता है। यह कमजोर मिट्टी तथा सिफारिश की गई नाइट्रोजन की आधी मात्रा से 320 क्विंटल पैदावार तथा 18-20 प्रतिशत खांड देता है। यह अधिक बढ़ने पर इस किस्म का गन्ना गिर जाता है इसलिए इसे द्वि-पक्ति विधि से बोना, मिट्टी चढ़ाना व बांधना बहुत जरूरी होता है। बुवाई के 6 सप्ताह बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए तथा शरदकालीन, बसंतकालीन फसल में मई के महीने में 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए. गन्ने में बुवाई के लगभग 3 माह बाद 60-75 किलोग्राम नाइट्रोजन (130-163 किलोग्राम यूरिया) प्रति हेक्टेयर की टॉप ड्रेसिंग करनी चाहिए। यदि गन्ना काटने के बाद गन्ने की बुवाई करनी हो, तो पलेवा करके ही गन्ने की बुवाई करें।

किस प्रजाति में लगती है अधिक सिंचाई

गन्ने की सीओजे-64 प्रजाति को अधिक सिंचाई की जरूरत होती है। सीओ-1148 व सीओएस-767 प्रजातियां सूखे को काफी सहन करने में सक्षम होती हैं। मई में गन्ने पर हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। ऐसा करने से फसल में खरपतवार का नियंत्रण तो होता ही है, इसके साथ ही फसल भी गिरने से बच जाती है। पानी की कमी होने पर पंक्तियों के बीच में 7-8 सेंटीमीटर मोटी परत गन्ने की पत्तियों की बिछा देनी चाहिए। ऐसा करने से पेड़ी के खेत में सिंचाई के बाद नमी बनी रहती है और खरपतवार भी कम उगते हैं, गन्ने की पताई धीरे-धीरे सड़ती रहती है जो कि बाद में एक कम्पोस्ट खाद का काम करती है।

कैसे मिलेगी अच्छी पैदावार

फसल की कटाई के बाद सभी मुंड से पेड़ी का फुटाव नहीं होता है। इसके कारण खेत में जगह-जगह रिक्त स्थान बन जाते हैं। इन रिक्त स्थानों को भरने के लिए पहले से तैयार नर्सरी से पौधे उखाड़कर लगा देना चाहिए या फिर दो-आंखों वाले टुकड़ों से रिक्त स्थानों की पूर्ति कर देनी चाहिए। इससे खेत में पौधों की संख्या अधिक रहेगी और अच्छी पैदावार मिलेगी।

उर्वरक की कितनी जरूरत

                                                                       

मई के महीने में गन्ने की फसल पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। खासतौर पर सिंचाई प्रबंधन। इस महीने में बहुत अधिक गर्मी पड़ने के साथ तेज हवाएं भी चलती हैं जिसके कारण मृदा में पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिये प्रत्येक 15-20 दिनों के अंतराल पर पानी आवश्यक रूप से देना चाहिए। गन्ने की पेड़ी से अच्छी उपज लेने के लिए 75 किलोग्राम नाइट्रोजन (163 कि.ग्रा. यूरिया) प्रति हेक्टेयर पहली फसल काटने के बाद एवं इतनी ही यूरिया की मात्रा दूसरी व तीसरी सिंचाई के समय या फसल काटने के 60 दिनों बाद एवं साथ ही 75 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करना भी जरूरी होता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।