धान की खुशबु वाली प्रमुख प्रजातियाँ

                          धान की खुशबु वाली प्रमुख प्रजातियाँ

                                                                                                                                                             डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी

जो भी किसान धान की खेती करना चाहते हैं तो इसकी कुछ ऐसी किस्में जो कि उनके लिए बेहतर साबित हो सकती हैं। इन किस्मों की खेती कम खर्च में हो जाएगी और इसके साथ ही उत्पादन भी अच्छा ही मिलता है। इसके अतिरिक्त यह किस्में अपनी खुशबू के लिए भी अच्छी तरह से जानी जाती हैं।

धान खरीफ सीजन की एक मुख्य फसल है। धान की खेती करने वाले ज्यादातर किसान इस उम्मीद में खेती करते हैं कि उन्हें अन्य फसलों के मुकाबले इससे बेहतर उत्पादन और अधिक मुनाफा प्राप्त होगा। वहीं मई का अंतिम सप्ताह आते-आते कई राज्यों के किसान धान की बीजाई यानी नर्सरी लगना भी शुरू कर देते हैं। किसान यह भी चाहते हैं कि वे ऐसी किस्मों की खेती करें जिससे उनकी फसल जल्दी तैयार हो जाए और बढ़िया उत्पादन भी मिले।

ऐसे में अगर आप भी धान की खेती करना चाहते हैं तो हम आज की अपनी इस पोस्ट में धान की कुछ खास किस्मों के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं जो वर्तमान में किसानों के लिए बेहतर साबित हो सकती हैं। इन दी गर्इ्र किस्मों की खेती करने से खेती में लागत भी कम ही आती है। इसके साथ ही इन किस्मों से अच्छा उत्पादन भी मिलता है। इसके साथ ही यह किस्में अपनी खुशबू के लिए काफी विख्यात हैं। तो आइए आपको बताते हैं इन खास किस्मों की विशेषताएं-

किसान करें इन खास किस्मों की खेती

                                                                     

कस्तूरी किस्म-

कस्तूरी धान की एक छोटे दाने वाली किस्म है, जो कि आमतौर पर अपने मीठे स्वाद और सुगंध के लिए जानी जाती है। पारंपरिक बासमती के रूप में जाना जाने वाला एक लंबे दाने वाला चावल अपने नाजुक मिजाज, पौष्टिक स्वाद और सुगंध के लिए बेशकीमती माना जाता है। इस धान को लगभग पूरे देश में ही उगाया जाता है। यह किस्म 115 से 125 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इस किस्म की प्रमुख विशेषता यह है कि यह ब्लाइट रोग के प्रति प्रतिरोधी होती है। इसके साथ ही इस किस्म की उपज क्षमता भी 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की होती है।

सुगंधा किस्म-

                                                                         

इस किस्म का चावल अपनी उत्तम सुगंध के लिए जाना जाता है। यह चावल प्रमुख रूप से तीखे खाने में उपयोग किया जाता है। इस चावल का सबसे अधिक उपयोग मसाला खिचड़ी के रूप में किया जाता है। वैसे इस किस्म की खेती सबसे अधिक बिहार राज्य में की जाती है। यह किस्म 140 से 150 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इस किस्म की प्रमुख विशेषता यह है कि यह कि यह किस्म ब्लाइट रोग के लिए प्रतिरोधी होती है। इसके अतिरिक्त इस किस्म की उपज क्षमता भी अच्छी 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तब होती है।

तरोरी बासमती किस्म-

यह किस्म अपने मीठे स्वाद और सुगंध के लिए जानी जाती है। इस किस्म के दाने लंबे और पतले होते है।. वहीं इस किस्म की खेती सबसे अधिक हरियाणा राज्य में की जाती है। धान की यह किस्म 135 से 140 दिनों में पक कर तैयार हो जाती हैए और साथ ही इस किस्म की उपज क्षमता 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

बासमती 385 किस्म-

इस किस्म का चावल अपने लंबे दाने और सुगंध के लिए जाना जाता है। इस किस्म की खेती सबसे अधिक पंजाब राज्य में की जाती है। यह किस्म 130 से 140 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है, और इसके साथ ही इस किस्म की उपज क्षमता 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

बासमती 370 किस्म-

                                                                   

बासमती चावल की 370 किस्म की बदौलत आज भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है, कहने का मतलब यह है कि धान की इस किस्म का सबसे अधिक निर्यात कर विदेशी मुद्रा कमाई जाती है। इस किस्म की खेती सबसे अधिक उत्तर प्रदेश राज्य में की जाती है। यह किस्म 130 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। साथ ही इस किस्म की उपज क्षमता 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।