मशरूम की किस्में एवं उत्पादन तकनीक      Publish Date : 09/05/2024

                        मशरूम की किस्में एवं उत्पादन तकनीक

                                                                                                                     प्रोफेसर गोपाल सिंह जॉइंट डायरेक्टर रिसर्च  एवं डॉ0 आर. एस. सेंगर, 

                                                                    

विश्व में मशरूम की खेती हजारों वर्षों से की जा रही है, जबकि भारत में मशरूम के उत्पादन का इतिहास लगभग तीन दशक पुराना है। भारत में 10-12 वर्षों से मशरूम के उत्पादन में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। इस समय हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना व्यापारिक स्तर पर मशरूम की खेती करने वाले प्रमुख उत्पादक राज्य है। मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए मशरूम की खेती करने की विधि, मशरूम बीज उत्पादन तकनीक, मास्टर ट्रेनर प्रशिक्षण, मशरूम उत्पादन और प्रसंस्करण इत्यादि विषयों पर किसानों को कृषि विश्वविद्यालयों और अन्य प्रशिक्षण संस्थाओं द्वारा पूरे वर्ष प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। मशरूम की खेती के लिए महिलाओं को अधिक प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके अंतर्गत राज्य सरकार प्रदेश के किसानों को मशरूम की खेती के लिए लागत का 50 प्रतिशत अनुदान भी दे रही है।

मशरूम के प्रकार

                                                                          

खाने योग्य मशरूम : ऑयस्टर मशरूम, धान पुआल मशरूम, सफेद बटन

अखाद्य खाद्य (टॉडस्टूल) – जहरीले मशरूम को टॉडस्टूल के नाम से जाना जाता है।

अम्निता फ़ैलोराइड्स,अम्निता मुस्कारिया,

अम्निता पैंथरिना,

अम्निता सिट्रीना

खेती की प्रक्रिया

मशरूम की खेती में 6 मुख्य चरण शामिल हैं

चरण 1- खाद – खाद दो प्रकार की होती है –

सिंथेटिक खाद – यह भूसी, भूसा, यूरिया, कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट या अमोनियम सल्फेट और जिप्सम आदि कच्चे माल से बनी होती है।

चरण 1 कंपोस्टिंग में हमने कच्चे माल को मिलाकर और गीला करके खाद बनाई। एक बार जब सामग्री गीली हो जाती है और सूक्ष्मजीवों की वृद्धि और प्रजनन के परिणामस्वरूप एरोबिक किण्वन शुरू हो जाता है। चरण 1 खाद इस खाद को तैयार होने में कम से कम 5-18 दिन लगते हैं और यह कितने दिनों में पूरी तरह से तैयार हो जाएगी यह कच्चे माल पर निर्भर करता है।

चरण 2 कंपोस्टिंग – चरण 2 कंपोस्टिंग का मुख्य फोकस चरण 1 के दौरान बने अमोनिया को पास्चुरीकरण और हटाना है। 0.7 से अधिक सांद्रता माइसेलियम स्पॉन वृद्धि के लिए खतरनाक है, इसलिए अमोनिया को हटाना महत्वपूर्ण है।125 से 130 सबसे उत्तम तापमान है क्योंकि इस सीमा में डी-अमोनिफाइंग जीव अच्छी तरह से विकसित होते हैं। चरण 2 के अंत में तापमान लगभग 75 से 80 हो। नाइट्रोजन की मात्रा 2.0 से 2.4Ru तथा नमी की मात्रा 68 से 72Ru हो।

स्पॉनिंग- मशरूम माइसेलियम को तैयार क्यारियों में बोने की प्रक्रिया को आमतौर पर स्पॉनिंग के रूप में जाना जाता है। हम स्पॉनिंग दो तरह से कर सकते हैं, ट्रे पर खाद फैलाकर या ट्रे भरने से पहले अनाज के स्पॉन को खाद में मिलाकर। एक बार स्पॉनिंग हो जाने के बाद हम ट्रे को अखबार से ढंक देते हैं और फिर नमी की मात्रा बनाए रखने के लिए थोड़ा पानी छिड़कते हैं।

केसिंग- जब हम बगीचे की मिट्टी में बारीक कुचला हुआ सड़ा हुआ गोबर मिलाते हैं तो उसे केसिंग मिट्टी कहते हैं। इसमें पीएच क्षारीय पक्ष पर हो। आवरण वाली मिट्टी को अच्छी तरह से कीटाणुरहित हो और हानिकारक कीट, नेमाटोड, कीट आदि को मारने में सक्षम हो। फॉर्मेलिन समाधान के साथ मिट्टी का उपचार करके या भाप से हम इसे कीटाणुरहित कर सकते हैं। आवरण वाली मिट्टी को बहुत अधिक हवा की आवश्यकता होती है। फैलने के बाद तापमान 72 घंटों तक 25 डिग्री सेल्सियस पर बनाए रखा जाना चाहिए।

पिनिंग- पिन तब विकसित होती है जब कमरे में AVg2 की मात्रा 0.08Ru से कम होती है। शुरुआत में होने वाला मशरूम राइजोमोफर बनने के बाद विकसित होता है। नवगठित मशरूम बहुत छोटे होते हैं। कमरे में ताजी हवा आने का समय बहुत महत्वपूर्ण है। कमरे में हवा को तब तक प्रवेश करने से रोकें जब तक कि माइसेलियम आवरण की सतह पर दिखना शुरू न हो जाए। जब पिन इनिशियल बनने लगे तो केसिंग में पानी देना बंद कर दें।

कटाई- हम मशरूम को ‘फ्लश’ में काटते हैं पहली कटाई 3 से 5 दिनों में हो जाती है और 15 से 20 किग्रा/वर्ग मीटर की उपज प्राप्त होती है। दूसरे फ्लश में 5 से 7 दिनों में फसल प्राप्त हो जाती है और पहले फ्लश की तुलना में 9 से 11 किलोग्राम/वर्ग मीटर थोड़ा कम उपज प्राप्त होती है। कुल उपज हमें लगभग 27 से 35 किलोग्राम प्राप्त होती है। हाथ से चुने गए मशरूम को संग्रहित किया जा सकता है और ताजा खाया जा सकता है।

भारत में उगाई जाने वाली मशरूम की किस्में विश्व में खाने योग्य मशरुम की लगभग 10000 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 70 प्रजातियां हीं खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। भारतीय वातावरण में मुख्य रुप से पांच प्रकार के खाद्य मशरुमों की व्यावसायिक स्तर पर खेती की जाती है। जिसका वर्णन निम्नलिखित है।

सफेद बटन मशरूम : सफेद बटन मशरुम की खेती पहले निम्न तापमान वाले स्थानों पर की जाती थी, लेकिन आजकल नई तकनीकियों को अपनाकर इसकी खेती अन्य जगह पर भी की जा रही है। सरकार द्वारा सफेद बटन मशरूम की खेती के प्रचार-प्रसार को भरपूर प्रोत्साहन दिया जा रहा है। भारत में अधिकतर सफेद बटन मशरुम की एस-11, टीएम-79 और होस्र्ट यू-3 उपभेदों की खेती की जाती है। बटन मशरूम के कवक जाल के फैलाव के लिए 22-26 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। इस तापमान पर कवक जाल बहुत तेजी से फैलता है। बाद में इसके लिए 14-18 डिग्री सेल्सियस तापमान ही उपयुक्त रहता है। इसको हवादार कमरे, सेड, हट या झोपड़ी में आसानी से उगाया जा सकता है।

ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम : ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम की खेती वर्ष भर की जा सकती है। इसके लिए अनुकूल तापमान 20-30 डिग्री सेंटीग्रेट और सापेक्षित आद्र्रता 70-90 प्रतिशत चाहिए। ऑयस्टर मशरूम को उगाने में गेहूं व धान के भूसे और दानों का इस्तेमाल किया जाता है। यह मशरूम 2.5 से 3 महीने में तैयार हो जाता है। इसका उत्पादन अब पूरे भारत वर्ष में हो रहा है।

ढींगरी मशरूम की अलग-अलग प्रजाति के लिए अलग-अलग तापमान की आवश्यकता होती है, इसलिए यह मशरुम पूरे वर्ष उगाई जा सकती है। 10 क्विंटल मशरूम उगाने के लिए कुल खर्च 50 हजार रुपये आता है। इसके लिए 100 वर्गफीट के एक कमरे में रैक लगानी होती है। वर्तमान में ऑयस्टर मशरूम 120 रुपए प्रति किलोग्राम से लेकर एक हजार रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बाजार में बिक जाता है। मूल्य उत्पाद की गुणवत्ता पर निर्भर करता है।

दूधिया मशरूम : भारत में दूधिया मशरूम को ग्रीष्मकालीन मशरूम के रूप में जाना जाता है, जिसका आकार बड़ा व आकर्षक होता है। यह पैडीस्ट्रा मशरूम की तरह एक उष्णकटिबंधीय मशरूम है। इसकी कृत्रिम खेती के रुप में शुरुआत 1976 में पश्चिम बंगाल में हुई थी। अब, इस दूधिया मशरूम ने कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में लोकप्रियता हासिल की है। उड़ीसा सहित इन राज्यों की जलवायु स्थिति मार्च से अक्टूबर तक दूधिया मशरूम की खेती के लिए उपयुक्त होती है।

हालांकि, कुछ राज्यों में किसानों द्वारा पैडीस्ट्रा मशरूम को वरीयता देने के कारण अभी तक इसका व्यवसायीकरण नहीं किया जा सका। वर्तमान में पैडीस्ट्रा मशरूम और शिटाके मशरूम की तरह भारत में दूधिया मशरूम को लोकप्रिय बनाने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।

पैडीस्ट्रा मशरूम : पैडीस्ट्रा मशरूम को ‘गर्म मशरूम’ के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह अपेक्षाकृत उच्च तापमान पर तेजी से बढऩे वाला मशरूम है। अनुकूल परिस्थितियों में इसका फसल चक्र 3-4 सप्ताह में पूरा हो जाता है। पैडीस्ट्रा मशरूम में स्वाद, सुगंध, नाजुकता, प्रोटीन और विटामिन और खनिज लवणों की उच्च मात्रा जैसे सभी गुणों का अच्छा संयोजन है, इस कारण इस मशरूम की स्वीकार्यता बहुत अधिक है, और इसकी लोकप्रियता सफेद बटन मशरूम से कहीं भी कम नहीं है।

यह भारत के उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, झारखंड, छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशों में उगाया जाता है। इसकी वृद्धि के लिए अनुकूल तापमान 28-35 डिग्री सेल्सियस तथा सापेक्षित आर्द्रता 60-70 प्रतिशत की आवश्यकता होती है।

शिटाके मशरूम : शिटाके मशरूम एक शानदार खाद्य एवं महत्वपूर्ण औषधीय मशरूम है। इसे व्यावसायिक और घरेलू उपयोग के लिए आसानी से उगाया जा सकता है। यह दुनिया में कुल मशरूम उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर आता है। सफेद बटन मशरूम की तुलना में शिटाके मशरूम एक अति स्वादिष्ट और बनावट के अनुसार एक बेशकीमती मशरूम है।

इसमें उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन और विटामिन (विशेष रूप से विटामिन बी) भरपूर मात्रा में होते हैं। इसमें वसा और शर्करा नहीं होती है इसलिए यह मधुमेह और हृदय रोगियों के उपभोग के लिए बेहतरीन समझा जाता है। इसे सागवान, साल और भारतीय किन्नु वृक्ष की ठोस भूसी पर आसानी से उगा सकते है।

सफेद बटन मशरूम: उत्तरी भारत में सफेद बटन मशरुम की मौसमी खेती करने के लिए अक्टूबर से मार्च तक का समय उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान मशरूम की दो फसलें ली जा सकती हैं। बटन मशरूम की खेती के लिए अनुकूल तापमान 15-22 डिग्री सेंटीग्रेट एवं सापेक्षित आद्रता 80-90 प्रतिशत हो।

मशरूम कितने प्रकार की होती है

                                                                   

खाने योग्य मशरूम : मशरूम की हजारों प्रजातिओं में से कुछ प्रजातियाँ ऐसी हैं जिन्हें खाने में प्रयोग किया जाता है। भारत में सबसे ज्यादा खाई जाने वाली मशरूम का नाम है सफेद बटन मशरूम। मशरूम की इस प्रजाति को भारत के कुछ राज्यों में खुवी या खुंवी भी कहा जाता है। इसके बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय है सफेद मिल्की मशरूम, ये बटन मशरूम से ज्यादा स्वादिष्ट होने के साथ ही वजन में भी ज्यादा होती है। इसके बाद भारत में सबसे अधिक लोकप्रिय है सफेद ऑयस्टर मशरूम, ये एक ऐसी मशरूम है जिसे आप सुखा कर भी बेच सकते है |

मेडिसनल मशरूम : मशरूम की हजारों प्रजातियों में से कुछ प्रजातियां ऐसी हैं जिन्हें दवाओं में प्रयोग किया जाता है। यदि आप मेडिसनल मशरूम की खेती करना चाहते हैं तो आपको बता दें कि इनकी खेती के लिए एक अच्छी ट्रेनिंग के साथ ही खर्चा भी अधिक करना पड़ता है। जबकि इनके मुकाबले खाने वाली मशरूम की खेती में खर्चा कम आता है और इसे हर कोई कर सकता है।

जंगली मशरूम: हजारों में से मशरूम की कुछ प्रजातियां ऐसी हैं जिन्हें खाने से इंसान बीमार भी हो सकता है और मर भी सकता है, मशरूम की ऐसी प्रजातियों को अंग्रेजी में (Wild Mushrooms) कहा जाता है। पुराने समय में लोग जंगली मशरूम का प्रयोग जहर के तौर पर भी करते थे |

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।