पोषणिक सुरक्षा हेतु जैव-प्रबलित मक्का की उपयोगिता Publish Date : 06/05/2024
पोषणिक सुरक्षा हेतु जैव-प्रबलित मक्का की उपयोगिता
डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं हिबिस्का दत्त
कुपोषण, विशेषरूप से कम विकसित एवं विकासशील देशों की एक गंभीर समस्या के रूप में उभरकर सामने आया है। यह आवश्यक तत्वों की कमी वाले भोजन के उपयोग के चलते उत्पन्न होता है। सम्पूर्ण विश्व में इस समय लगभग दो बिलियन व्यक्ति कुपोषण से प्रभावित हैं। पांच वर्ष से कम कायु के 151 मिलियन बच्चों में बौनापन (उनकी वृद्वि का अवरूद्व हो जाना) है जबकि 51 मिलियन र्बच्चों का भार उनकी लम्बाई की तुलना में असामान्य है।
दक्षिण एशिया एवं भारत में अत्याधिक गरीबी के कारण विभिन्न स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के लिए वयक्ति अधिक सुभेद्य (संवेदनशील) है। भारत में 15.2 प्रतिशत व्यक्ति कुपोषित हैं और विश्व में एक तिहाई से अधिक कम वजन वाले कुपोषित बच्चे भारत में निवास करते हैं, जिससे देश को गंभरी समाजिक-आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है। प्रतिवर्ष भारत को कुपोषण के कारण जी0डी0पी0 में 12 बिलियन डॉलर से अधिक की हानि होती है। वर्ष 2015 में, वैश्विक समुदाय ने, भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यताओं में कोई समझौता किए बगैर, वर्तमान मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए ‘‘टिकाऊ विकास लक्ष्य‘‘ (एसडीपी) नामक लक्ष्य निर्धारित किए हैं।
संस्था द्वारा तय किए गए इन 17 लक्ष्यों में से, 12 में संसूचक हैं जो स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार एवं महिला सशक्तिकरण तथा गरीबी से सम्बन्धित प्रगति के लिए प्लेटफार्म उपलब्ध होने के कारण टिकाऊ विकास एवं पोषण के सुधार में पोषण की केन्दीय भूमिका को प्रदर्शित करते हैं, साथ ही पोषण हेतु बहुत अधिक सुसंगत हैं। कुपोषण में कमी करना मूल्य-प्रभावी है और सिक्ष् पोषण-कार्यक्रम में प्रत्येक $1 के निवेश से $16 के समकक्ष लाभ प्राप्त होते हैं। इस प्रकार से, संतुलित एवं पोषक आहार उपलब्ध कराने की दिशा में किए जाने वाले प्रयासों का भी अत्याधिक महत्व है।
कुपोष्ण के अपशमन हेतु कार्य-नीतियां
कुपोषण के अपशमन हेतु विभिन्न कार्य-नीतियां जैसे कि, आहार प्रबलीकरण, चिकित्सीय-अनुपूरण एवं खुराक विविधीकरण आदि उपलब्ध हैं। आहार प्रबलीकरण में, भोजन के साथ सूक्ष्मपोषक तत्वों का कृत्रिम रूप से समावेश करना है। आयोडीन-युक्त नमक, इसी का एक उदाहरण है, जहां नमक के साथ आयोडीन की आवश्यक मात्रा का उपभोग किया जाता है। अनेक देशों में, आयरन एवं फोलेटयुक्त प्रबलीकृत गेहँू का आटा भी उपयोग में लाया जाता है। चिकित्सीय-अनुपूरण युक्ति में, गोलियों के रूप में पोषक तत्व उपलब्ध कराए जाते हैं।
विटामिन-ए, कैल्शियम की गोलियां एवं प्रोटीन युक्त पाउडर इसके अन्य उदाहरण हैं। आहार सम्बन्धी विविधीकरण में, संतुलित पोषण उपलब्ध कराने के लिए विविध प्रकार के भोजन का उपभोग किया जाता है, जिनमें दालें, सब्जियां एवं फल सम्मिलत किए जाते हैं। तथापि इन नीतियों की सफलता, विभिन्न कारकों पर निर्भर करती हैं। गरीबी के चलते निर्धन व्यक्ति की क्रय-शक्ति कम होने के कारण उनकी प्रचलित आहारों तक पहुंच भी सीमित ही होती है और इस प्रकार उनकी क्षमता एवं अनुप्रयोग में कमी होती है।
विकासशील देशों की कमजोर अवसंरचना होने के कारण, चिकित्सीय अनुपूरण का व्यापक रूप से उपयोग नही हो पाता है। आहार विविधीकरण, प्रायः ऋत्विक फसल, अधिक खर्च तथा निर्धन व्यक्ति की क्रय-शक्ति न होना, आहार के विविधीकरण को सीमित करते हैं। जैव-प्रबलीकरण, जहां प्रजनन विधियों के माध्यम से पौधों के खाने योग्य भागों को जैव-उपलब्ध पोषक तत्वों के साथ सवंर्धित किया जाता है, सर्वाधिक टिकाऊ एवं मूल्य-प्रभावी एप्रोच (युक्ति) मानी जाती है। सूक्ष्म तत्वों से भरपूर किस्में, पर्याप्त कैलोरी ही उपलबर््ध नही कराती अपितु अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को भी उपलब्ध कराती हैं।
आवश्यक पोषक तत्व और उनकी कमी के लक्षण
पोषक तत्व जैसे कि, लायसीन, ट्रिप्टोफेन एवं विटामिन-ए आदि मानव-पोषण का एक अति आवश्यक अंग हैं और इनकी कमी के फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य संबन्धी विकार एवं उनके लक्षण प्रकट होते हैं। लायसीन एवं ट्रिप्टोफेन, आवश्यक अमीनो अम्ल हैं और वे प्रोटीन संश्लेषण के लिए महत्वपूण होते हैं। समुचित वृद्वि एवं विकास के लिए मानव शरीर की आवश्यकताओं की आपूर्ति हेतु, 0.66 ग्राम प्रोटीन/कि0ग्रा0, शरीर भार/दिन की आवश्यकता होती है।
चूँकि अमीनों अम्ल शरीर के अंदर संश्लेषित नही होते हैं, इसलिए आहार के माध्यम से ही उनकी पूर्ति करना आवश्यक होता है। इसलिए यदि आहार, पर्याप्त मात्रा में लायसीन एवं ट्रिप्टोफेन उपलब्ध नही कराता तो शरीर में लायसीन एवं ट्रिप्टोफेन की कमी होने लगती है। शरीर में प्रोटीन की कमी के परिणामस्वरूप बौद्विक विकास कम होता है, भौतिक कार्य प्रणाली में भी विकार उत्पन्न हो जाते हैं और यहां तक कि मर्त्यता भी हो जाती है। प्रोटीन की कमी वाले आहार ग्रहण करने के परिणामस्वरूप, प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण (पी0ई0एम0) या प्रोटीन-ऊर्जा पोषण-कमी (पी0ई0यू0) उत्पन्न हो सकते हैं।
मानव में, इससे क्वाशिओरकर एवं मरामस नामक विकार उत्पन्न होते हैं। क्वाशिओरकर में अच्छे सामान्य कैलोरी अन्तर्ग्रहण के साथ प्रोटीन का अपर्याप्त उपभोग सम्मिलत होता है जबकि मरामस में प्रोटीन एवं कैलोरी, दोनों ही अपर्याप्त उपभोग के कारण उत्पन्न होता है।
लायसीन एवं ट्रिप्टोफेन, कई प्रकार के न्यूरो-ट्रासमीटर्स एवं उपपचयी नियामकों के लिए पूर्ववर्ती के रूप में भी कार्य करते हैं। व्यस्कों के लिए 30 मि.ग्रा./कि.ग्रा. शरीर-भार/दिन की आवश्यकता होती है जबकि 03-10 वर्ष के आयुवर्ग के बच्चों के लिए 35 मि.ग्रा./कि.ग्रा. शरीर-भार/दिन की आवश्यकता होती है। लायसीन की कमी के परिणामस्वरूप् होने वाले प्रमुख लक्षण थकान, सुस्ती, जी-मिचलाना, रक्त की कमी, वृद्वि में विलम्ब, भूख का न लगना तथा प्रजनन संबंधी ऊतकों का समुचित विकास न होना आदि होते हैं।
व्यस्कों व्यक्तियों को 04 मि.ग्रा./कि.ग्रा. शरीर-भार/दिन तथा 03-10 वर्ष के बच्चों को 4.8 मि.ग्रा./कि.ग्रा. शरीर-भार/दिन की दर से ट्रिप्टोफेन की आवश्यकता होती है। इसकी कमी के परिणामस्वरूप, मानसिक तनाव, आकुलता एवं अशान्ति के लक्षण उत्पन्न होते हैं। बच्चों में भार की कमी, वृद्वि की मन्द गति ट्रिप्टोफेन कमी के प्रमुख लक्षण हैं।
इसी प्रकार से, मानव की दृश्य प्रणाली, वृद्वि एवं विकास, एपीथिलियल कोशिकाओं के अक्षुण्ण रख-रखाव, इम्यून प्रणाली एवं प्रजनन से संबंधित सामान्य क्रिया-कलापों के लिए विटामिन-ए आवश्यक होता है। महिलाएं, जो गर्भवती नही हैं और बच्चे को अपना दूध नही पिलाती हैं, के लिए विटामिन-ए की दैनिक आवश्यकता 500 माइक्रोग्राम/ग्राम है जबकि 4-6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए इसकी आवश्यकता 275 माइक्रोग्राम/ग्राम/दिन है।
विटामिन-ए की कमी होने से प्रारम्भ में रतौंधी के लक्षण प्रकट होते हैं। इसके पश्चात्, कंजक्टाइवा एवं कॉर्निया में संरचनात्मक बदलाव जैसे कि जीरोफ्थैल्मिया एवं कीरेटोमालेसिया हो सकते हैं इसके तत्पश्चात्, सूजन एवं संक्रमण के परिणामस्वरूप अपरिवर्तनीय अंधापन हो सकता है।
आजीविका के स्रोत के रूप में मक्का
मानव-आहर, पशु-आहार एवं औद्योगिक उत्पादों के रूप में मक्का का वैश्विक एवं इसके साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान है। वैश्विक स्तर पर, 170 से भी अधिक देशों में, 1134 मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष मक्का का उत्पादन किया जाता है। मक्का के उत्पापदन का एक बड़ा हिस्सा पशु-आहर के रूप में उपयोग किया जाता है, इसके अतिरिक्त कई विकासशील देशों जैसे, अफ्रीका, मीजो-अमेरिका एवं एशियायी देशों में करोडो व्यक्तियों के लिए यह प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
चावल एव गेहँू सहित मक्का 94 विकासशील देशों के 4.5 बिलियन से अधिक व्यक्तियों को न्यूनतम 30 प्रतिशत आहारजन्य कैलोरी उपलब्ध कराता है। भारत में, मक्का एक महत्वपूर्ण अनाज है और 25.9 मिलियन टन उत्पादन के साथ 9.6 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में मक्का की खेती की जाती है। इसके अतिरिक्त मक्का मानव-शरीर के लिए महत्वपूर्ण विटामिन्स एवं खनिजों का एक उत्तम स्रोत है।
निरंतर बढ़ती आबादी के फलस्वरूप अनाज की मांग में भी बढ़ोत्तरी जारी रहेगी और वर्ष 2020 तक सम्पूर्ण विश्व में लगभग 7.7 बिलियन व्यक्ति होंगे, जो कि वर्ष 2050 तक लगभग 9.3 बिलियन की संख्या तक पहुंच जाएंगे और आज की तुलना में, वर्ष 2050 तक मक्का की विकासशील विश्व में, मांग लगभग दोगुनी हो जाएगी। अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए वर्ष 2050 तक भारत को भी मक्का का उत्पादन दांगुना (50 मिलियन टन) करने की आवश्यकता होगी।
तथापि, सामान्य मक्का में भ्रूणपोष प्रोटीन में लायसीन एवं ट्रिप्टोफेन की मात्रा अल्प होने के कारण उसकी गुणवत्ता यथेष्ठ स्तर की नही होती है। सामान्यतया, सामान्य मक्का की प्रोटीन में 1.5-2.0% लायसीन एवं 0.3-0.4 ट्रिोफेन विद्यमान होता है जो मानव की दैनिक आवश्यकता का आधा ही होता है। इसी प्रकार से 15 पी0पी0एम0 के लक्ष्य स्तर की तुलना में, सामान्य मक्का में प्रोविटामिन-ए का स्तर भी बहुत कम (1-2 पी0पी0एम0) होता है।
जीनों के प्राकृतिक उत्परिवर्ती (म्यूटैंट) जैसे, ओपेक-2 में आवश्यक अमीनो अम्लों (लायसीन एवं ट्रिप्टोफेन) को लगभग दोगुना तक बढ़ानें में सक्षमह ै, जबकि बतजत्ठ-1 के प्राकृतिक परिवर्तन प्रोविटामिन-ए में 10 गुना तक की वृद्वि करते हैं। इन जीनों का उपयोग कर भा0कृ0अ0प0-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के अनुवांशिकी संभाग द्वारा अब उच्च उपज क्षमता के साथ मक्का के अनेक पोषक तत्व-सम द्व संकर विकसित किए गए हैं। इन संकरों का विस्तृत विवरण अग्रलिखित है-
पूसा विवके क्यू0पी0एम09 इम्प्रूव्ड
crtRB-1 युग्मविकल्पी चिह्नक की सहायता से अंतर्वेशन के माध्यम से मक्का का उक्त संकर विकसित किया गया है। मक्का के पारंपरिक संकरों में पाए गए 1-2 पी0पी0एम0 की तुलना में, इस संकर में पोविटामिन-ए (8.15 पी0पी0एम0) अधिक मात्रा में निहीत होता है। यह देश का प्रथम प्रोविटामिन-ए से समृृद्व संकर मक्का है बौर विश्व में क्यू0पी0एम0 एवं प्रोविटामिन-ए का सर्वप्रथम संयोजन भी है।
इसमें विद्यमान प्रोटीन ट्रिप्टोफेन (0.74%) एवं लायसीन (2.67%) की धिक मात्रा होती है और इस प्रकार से यह बहु-पोषकतत्व युक्त संकर मक्का है।
‘‘पूसा विवके क्यू0पी0एम09 इम्प्रूव्ड‘‘ः पूसा विवके क्यू0पी0एम09 इम्प्रूव्ड की उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र (जम्मू ण्वं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड (पहाडिया) एवं उत्तरीपूर्वी राज्यों) तथा प्रायद्वीपीय क्षेत्र (महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं तमिलनाडु) के लिए पहचान की गइ है। 7968 कि0ग्रा0/है0 (एन0एच0जैड0) एवं 9368 कि0ग्रा0/है0 (पी0जेड0) की सक्षम दाना उपज के साथ, इसकी औसत दाना-उपज 5588 कि0गा0/है0 (एन0एच0जेड0) and 5916 कि0ग्रा0/है0 (पी0जेड0) है।
यह एक अगेती परिपक्वता वाला संकर है और बुआई के पश्चात् 93 दिन (एन0एच0जैड0) एवं 83 दिन (पी0जैड0) में 75 प्रतिशत शुष्क हस्क प्राप्त कर लेता है।
पूसा विवके क्यू0पी0एम0 4 इम्प्रूव्ड
टोपेक 2 युग्मविकल्पी के चिह्नक की सहायता से अंतर्वेशन के माध्यम से यह संकर मक्का विकसित किया गया है। यह एक गुणवत्तापूर्ण प्रोटीन वाला मक्का (क्य0पी0एम0) का संकर है और पारम्परिक मक्का-संकरों में पाए गए 0.3-0.4 प्रतिशत ट्रिप्टोफेन एवं 1.5-2.0 प्रतिशत लायसीन की तुलना में इस संकर में पाए जाने वाली प्रोटीन में अधिक ट्रिप्टोफेन (0.91%) एवं लायसीन (3.62%) विद्यमान होता है।
‘‘पूसा एच0एम0 4 इम्प्रूव्ड‘‘ की उत्तर-पश्चिमी, मैदानी क्षेत्र (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखण्ड (मैदानी क्षेत्र) एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश) के लिए पहचान की गई है। 8568 कि0ग्रा0/है0 की दाना उपज क्षमता के साथ, इसकी दाना-उपज क्षमता के साथ, इसकी औसत दाना-उपज 6419 कि0ग्रा0/है0 है। यह एक मध्यम परिपक्वन अवधि वाला संकर है जो बुवाई के 87 दिन पश्चात् 75 प्रतिशत हस्क प्राप्त कर लेता है।
पूसा एच0एम08 इम्प्रूव्ड
यह ओपेक 2 युग्मीविकल्पी के चिह्नक की सहायता से अंतर्वेशन के माध्यम से यह विकसित किया गया है। यह एक गुणवत्तापूर्ण प्रोटीन वला मक्का (क्यू0पी0एम0) का संकर है और पारम्परिक मक्का-संकरों में पाए गए 0.3-0.4 प्रतिशत ट्रिप्टोफेन एवं 1.5-2.0 प्रतिशत लायसीन की तुलना में, इस संकर में पाई जाने वाली प्रोटीन में अधिक ट्रिप्टोफेन (1.06%) एवं लायसीन (4.18%) विद्यमान होता है।
‘‘पूसा एच0एम0 8 इम्प्रुव्ड‘‘ की प्रायद्वीपीय (पेनिनसुलर) क्षेत्र (महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं तमिलनाडु) के लिए पहचान की गई है। 9251 कि0ग्रा0/हे0 की दाना-उपज 6258 कि0ग्रा0/है0 हैं। यह एक मध्यम परिपक्वन अवधि वाला संकर है जो बुवाई के 95 दिन पश्चात् 75 प्रतिशत हस्क प्राप्त कर लेता है।
पूसा एच0एम0 8 इम्प्रूव्डः यह ओपेक 2 युग्मविकल्पी के चिह्नक की सहायता से अंतर्वेशन के माध्यम से यह विकसित किया गया है। ष्ह एक क्यू0पी0एम0 संकर है और पारम्परिक मक्का-संकरों में पाए गए 0.3-0.4 प्रतिशत ट्रिप्टोफेन एवं लायसीन (4.18%) की तुलना में, इस संकर में पाई जाने वाली प्रोटीन में अधिक ट्रिप्टोफेन (0.68%) एवं लायसीन (2.97%) विद्यमान होता है।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।