गन्ने की फसल में चोटी बधेक कीट (Top Borrer of Sugarcane)

       गन्ने की फसल में चोटी बधेक कीट (Top Borrer of Sugarcane)

                                                                                                                                                                               डॉ0 आर. एस. सेंगर

                                                                 

   यह कीट अपनी सुंडी अवस्था ही हानि पहुंचाती है। इस कीट की पूरे वर्ष में 4 से 5 पीढ़ियां पाई जाती हैं। इसे किसान कंसुवा, कन्फ्ररहा, गोफ का सूखना, सुंडी का लगना आदि नामों से जानते हैं।

कीट की पहचान - इसका प्रौढ़ कीट चांदी जैसे सफेद रंग का होता है तथा मादा कीट के उदर भाग के अंतिम खंड पर हल्के गुलाबी रंग के बालों का गुच्छा पाया जाता है। इस कीट की सुंडी हल्के पीले रंग की होती है, जिस पर कोई धारी नहीं होती है।

हानियां - इस कीट की मादा सुंडी पौधों की दूसरी या तीसरी पत्ती की निचली सतह पर मध्य शिरा के पास समूह में अंडे देती है। इसकी सुंडी पत्ती की मध्य शिरा से प्रवेश कर गोंफ़ तक पहुंच जाती है तथा पौधे के वृद्धि वाले स्थान को खाकर नष्ट कर देती है, जिससे कि गन्ने की बढ़वार रुक जाती है। प्रभावित पौधे की गॉफ छोटी तथा कत्थई रंग की हो जाती है, जो कि खींचने पर आसानी से नहीं निकलती है।

गन्ने की पत्ती की मध्य शिरा पर लालधारी का निशान तथा गॉफ़ के किनारे की पत्तियों पर गोल छर्रे जैसा छेद पाया जाता है। इस कीट की प्रथम एवं द्वितीय पीढ़ी के आपतन से गन्ने के पौधे पूर्ण रूप से सूख जाते हैं तथा तृतीय पीढ़ी से पौधों की बढ़वार रुक जाने के कारण उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है व पौधों की लंबाई कम हो जाती है। इस कीट के आपतन से 20 से 35 प्रतिशत तक फ़सल में हानि होती है। इस कीट की तीसरी एवं चौथी पीढ़ी के आपतन से गन्ने में बंची टॉप का निर्माण हो जाता है।

जीवन चक्र- मादा अपने जीवन काल में 250 से 300 अंडे कई अंड समूह में देती है। जिनकी संख्या 6 से 70 तक रहती है। इस कीट का अंड काल 6 से 8 दिन, सुंडी काल 36 से 40 दिन, एवं प्यूपा काल 8 से 10 दिन तक रहती है तथा जीवन काल 53 से 65 दिन तक रहता है।

पीढ़ियां-

                                                       

प्रथम पीढ़ी - मार्च से अप्रैल तक।

द्वितीय पीढ़ी - मई के द्वितीय सप्ताह से जून के द्वितीय सप्ताह तक।

तृतीय पीढ़ी - जून के तृतीय सप्ताह से अगस्त के प्रथम सप्ताह तक।

चतुर्थ पीढ़ी - अगस्त के प्रथम सप्ताह से मध्य सितंबर तक।

पंचम पीढ़ी - मध्य सितंबर से फरवरी के अंतिम सप्ताह तक।

नियंत्रण -

1- कीट की प्रथम एवं द्वितीय पीढ़ी से प्रभावित पौधों को सुंडी सहित पतली खुर्पी की सहायता से जमीन की गहराई से काट कर खेत से निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।

2- प्रथम एवं द्वितीय पीढ़ी को नियंत्रण के लिए फरवरी - मार्च में गन्ना बुवाई के समय कीट नाशक वर्टाेको 5 से 7 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से कुड़ों में प्रयोग करना चाहिए।

3- कीटनाशक वार्टको 5 से 7 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक तृतीय पीढ़ी के लिए पर्याप्त नमी की दशा में पौधों की जड़ों के पास प्रयोग करना चाहिए।

4 - 150 एमएल कोराजन 400 लीटर पानी में घोल बनाकर दूसरी एवं तीसरी पीढ़ी के लिए मई के अंतिम सप्ताह से जून के प्रथम सप्ताह में जड़ों के पास डेनचिंग करें तथा 24 घंटे के अंदर खेत की सिंचाई अवश्य कर दें।

5- 250 एमएल वॉल्यूम फैलेक्सी 400 लीटर पानी में घोल बनाकर दूसरी एवं तीसरी पीढ़ी के लिए मई के अंतिम सप्ताह से जून के प्रथम सप्ताह में जड़ों के पास डेनचिंग करें व 24 घंटे के अंदर खेत की सिंचाई अवश्य रूप से कर दें।

कैसे फैलती हैं कीट की पीढ़ियां

शरदकालीन गन्नें के जमाव के घनत्व, पेड़ी और नई फसल के अंकुरों पर मादा कीट अंड़े देती है। कीट की एक मादाद एक पत्ती पर, एक ही स्थान पर 250 से 300 अंड़े तक देमी है। निषेचन के 6 बाद बाद अंड़ों से सुडिंयां बन जाती है, जो गन्ने के पौधों के अंदर प्रवेश कर जाती हैं, जो गन्ने की पत्तियों की मध्ष्नाड़ी में सुरंग बनाकर उसके अंदर चली जाती हैं। सबसे अहम बात तो यह है कि जब तक एक सूंड़ी गन्ने के अंदर प्रवेश करती है तग तक कोई दूसरी सूंड़ी गन्ने के अंदर नही जाती है। इसलिए जितनी सूंड़ी उतनी ही संख्या में गन्ने के पौधे प्रभावित होते हैं।

गत वर्ष इस चोटी बेधक कीट ने गन्ने की फसल को भारी नुकसान पहुँचाया था। इसके बाद क्षेत्रीय गन्ना अनुसंधान परिषद केन्द्र के वैज्ञानिकों ने उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों जाकर किसानों, वैज्ञानिकों और चीनी मिलों में जाकर प्रशिक्षण प्रदान किया था। वर्तमान समय में चोटी बेधक की समस्त पीढ़ियां गन्ने के लिए घातक सिद्व हो रही हैं, अतः किसानों को अब जून-जुलाई के स्थान पर गन्ने की बुआई के बाद गन्ने में पत्तियां आने, पेढ़ी की शुरूआत से ही सावधान रहना होगा।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।