चोटी बेधक कीट का नियंत्रण और कोराजन का प्रयोग एवं उसकी विधि Publish Date : 24/04/2024
चोटी बेधक कीट का नियंत्रण और कोराजन का प्रयोग एवं उसकी विधि
डॉ0 आर. एस. सेंगर
किसान भाइयों,
आपकी पेड़ी एवं पौधे गन्ने की फसल में यदि कंसुआ एवं चोटी बेधक कीटों का प्रकोप दिखाई देने पर कोराजन की ड्रेचिंग अवश्य करें। कोराजन के बेहतर परिणाम के लिए कृषक भाइयों को क्या करना चाहिए इसके सम्बन्ध में जानकारी दे रहें हैं हमारे विशेषज्ञ डॉ0 आर. एस. सेंगर-
क्या करना चाहिए-
- कोराजन का प्रयोग आगे की नोज़ल को खोलकर लाइनों ड्रेचिंग करें।
- 150 मि.ली. कोराजन की मात्रा को प्रति एकड़ का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
- 400 लीटर पानी प्रति एकड़ का ही ड्रेंचिंग के बाद 24 घंटे के अन्दर सिंचाई करना अनिवार्य होता है।
- इसका प्रयोग सिर्फ कंसुआ एवं चोटी बेधक कीट को नियंत्रित करने के लिए ही किया जाता है।
- कोराजन सिर्फ मिल से ही करना चाहिए।
क्या ना करें
- कोराजन का छिड़काव/रेत या खाद में मिलाकर कदापि ना करें।
- इसकी मात्रा घटाये या बढ़ाना नही चाहिए।
- पानी की मात्रा कदापि कम ना करें।
- खेत को सिंचाई किये बिना न छोडना चाहिए।
- इसका प्रयोग अन्य कीटों पर न करें।
- सस्ते व नकली उत्पाद ख़रीदने से बचें।
कोराजन के उपयोग का सही समय एवं विधि-
कोराजन का छिड़काव सूखे खेत में ही ड्रेचिंग विधि से करना चाहिए, क्योकि मृदा में नमी कम होने के कारण पौधों की जल माँग बढ़ जाती है और एक अवस्था ऐसी आती है कि नमी की कमी के चलते पौधे मुरझाने लगते हैं और पौधे की यह जल माँग अवस्था मलानि बिन्दु अर्थात Wilting Point कहलाती है। इस अवस्था में कोराजन घोल की ड्रेचिंग जड़ों के समीप करने से सिंचाई करने के बाद पौधों की जड़ों द्वारा कोराजन का शीघ्र अवशोषण करके पौधे के सिस्टम में भेज दिया जाता है।
- पेड़ी गन्ने में कटाई के 70 दिन बाद अथवा मई माह में कोराजन का प्रयोग करना चाहिए।
- पौधा फ़सल में बुवाई के 60 से 70 दिन बाद अथवा 15 मई से 30 जून के मध्य कोराजन का प्रयोग करें।
- किसी बर्तन में 27 गिलास पानी लेकर उसमें 150 मि.ली. कोराजन दवा डाल कर इसका अच्छी तरह मिलाकर दवा का घोल तैयार कर लेते हैं। तैयार दवा के घोल से एक गिलास दवा आधी टंकी पानी से भरी स्प्रेयर टैंक में डाल दें और उसके बाद टंकी को पानी से पूरी तरह भर दें।
- नैपसैक स्प्रेयर में नोज़ल खोलकर जमीन की सतह के उपर से तने के सहारे इस प्रकार ड्रेचिंग करें कि घोल पौधे के तने से बहकर उनकी जड़ों तक पहुँच जाये ।
नोट- अन्य किसी जानकारी के लिए आप डॉ0 आर. एस. सेंगर से सम्पर्क कर सकते हैं अथवा अपनी जिज्ञासाओं को आप हमारी वेबसाइट पर भी अपलोड कर सकते हैं आपकी प्रत्येक जिज्ञासा / समस्या का उचित उत्तर दिया जाएगा।
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लेखक: प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।