औषधीय गुणों से भरपूर पपीता बागवानी अब खेतों में लहलहा रही है      Publish Date : 24/03/2024

      औषधीय गुणों से भरपूर पपीता बागवानी अब खेतों में लहलहा रही है

                                                                                                                                                   डॉ0 आर. एस. सेगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कृषि विविधीकरण को प्राथमिकता प्रदान कर रहे किसानों को अब कई औषधीय गुणों से भरपूर पपीता की बागवानी भी काफी सुहा रही है। पपीते की यह बागवानी किसानों की आर्थिक सेहत संवार रही है। किसानों की आय दोगुना करने की राह पर नौकरशाहों ने किसानों को फल, सब्जी सहित कई अन्य फसलों के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने पर फोकस किया, तभी से ही सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक किसानों को पपीते के उन्नत बीज व इसकी की नवीनतम तकनीकें भी उपलब्ध करा रहे हैं। इस क्षेत्र के विभिन्न जनपदों के किसानों में कुदरत की इस अनमोल देन की बागवानी करने के प्रति रूझान बढ़ा है। ऐसे में अब किसान सहफसली खेती के तौर पर भी सब्जी एवं दलहनी फसलों के साथ ही पपीते की बागवानी भी कर रहे हैं।

                                                                               

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की मुख्य फसल गन्ना और गेंहूँ ही रही है। इस क्षेत्र में किसानों की सबसे अधिक कैश क्रॉप गन्ना मानी जाती है। एक लम्बे समय से पश्चिमी उत्तरद प्रदेश का किसान गन्ने का अपेक्षित मूल्य नही मिलने और चीनी मिलों को गन्ने की आपूर्ति करने के बाद इसके भुगतान को लेकर चीनी मिल के मालिकों की दया पर निर्भर होने के दर्द की हकीकत बता रही है। इस सब के उपरांत भी मेरठ, मुरादाबाद और सहारनपुर आदि मंड़लों के अन्तर्गत आने वाले जनपदों में गन्ने के क्षेत्रफल में कोई कमी नही आई हैं। नौकरशाह भी अब कृषि विविधिकरण के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। किसान भी अब परंपरागत खेती के साथ ही अन्य फसलों में धान, फलों की खेती, सब्जी उत्पादन तथा बागवानी भी करने लगे हैं। विभिन्न कृषि वैज्ञानिकों का भी मानना है कि पपीते के फल में विटामिन्स की प्रचुर मात्रा उपलब्ध होती है जो कि आँखों की रोशनी के लिए उपयुक्त है। इसके साथ ही पपीते में विटामिन भी शामिल होता है, यह विटामिन बच्चों की वृद्वि और विकास के साळा ही साथ स्कर्वी रोग की भी प्रभावी रोकथाम करने में सक्षम है। एक हेक्टेयर भूमि में 30 से 40 मीट्रिक टन पपीते का उत्पादन होता है, पपीता कुदरत की एक अनमोल देन है। पपीते के पौधे की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह बहुत कम समय तक ही फल देता है और इसके उत्पादन के लिए किसानों को कम मेहनत करनी पड़ती है। किसानों के लिए कम लागत में अधिक लाभ प्राप्त करना है तो यह पपीते की बागावनी से सम्भव है। अपने औषधीय गुणों के चलते इसकी मांग वर्ष पर्यन्त बनी रहती है। अतः कहा जा सकता है कि यक कम समय में अधिक लाभ प्रदान करने वाली फसल है।

                                                                       

भारत में सर्वाधिक पपीते का उत्पादन महाराष्ट्र में किया जाता है। अब पिछले कुछ वर्षो पश्चिम उत्तर प्रदेश में भी किसान भाई पपीते की बागवानी कर रहे हैं। सामान्यतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के समस्त जनपदों में पपीते की बागवानी की जाती है, परन्तु फिर भी इस क्षेत्र के मेरठ, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, बिजनौर तथा शामली आदि जनपदों में पपीते की बागवानी को लेकर किसानों में इसके लिए रूझान निरंतर बढ़ रहा है। पपीते के उभयलिंगी (हरमोफ्रोडाइट) पौधों को ही सबसे उत्तम माना जाता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पपीते की खेती उष्ण और उपोष्ण दोनों ही प्रकार की जलवायु में सफलता पूर्वक की जा सकती है, जबकि पपीते को गृह वाटिका में भी अच्छी प्रकार से उगाया जा सकता है। पपीते की खेती इसके फलों के अतिरिक्त पपेन के लिए भी की जाती है। पपेन कच्चे पपीते से प्राप्त होने वाले दूध के रूप में उपलब्ध होता है। पपने का उपयोग औषधीय और व्यवसायिक उद्देश्य से बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ0 राकेश सिंह सेंगर ने बताया कि पपीते की पंत पपीता, पूसा ल्वाइंट, पूसा डेलिसियस, पूसा मजेट्री, रेडलेडी, कोयंबटूर-1, पूसा नन्हा, वाशिंगटन, कोयंबटूर-2, सूर्या और कोयंबटूर अच्छी प्रजातियां हैं।

                                                               

पपीते के औषधीय गुणों के कारण इसी अपनी एक अलग ही पहिचान है, चाहे फिर यह कच्चा हो अथवा पका हुआ इस बात का कोई खास महत्व नही हैं, यह दोनों ही रूपों में पसंद किया जाता है। पपीते की खेती के लिए कम से कम 40 डिग्री फारेनहाइट और अधिक से अधिक 110 डिग्री फारेनहाइट का तापमान आवश्यक होता है। सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रौ0 के के सिंह कहते हैं कि वर्तमान के बदलते परिवेश में भी हमारे किसान भाई अधिकतर परम्परागत खेती पर ही अधिक ध्यान दे रहे हैं, जबकि किसानों को अपनी कृषिगत आय को बढ़ाने के लिए कृषि विविधीकरण को अपनाकर नई तकनीकों को भी अपनाना होगा। इस प्रकार से यदि किसान नया बीज तथा नई तकनीकों का समावेश करेंगे तो उन्हे खेती से अच्छा मुनाफा प्राप्त होगा। बदलते परिवेश में किसान पपीते की खेती सघन बागवानी की विधि से पौधों की प्रति इकाई यंख्या को बढ़कर अपनी जमीन का अधिक उपयोग कर रहे हैं। इसके साथ ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के द्वारा वित्त पोषित परियोजना के माघ्यम से से तकनीकी ज्ञान को किसानों के द्वार तक पहुँचाने का एक अति महत्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।