हल्दी : कम लागत अधिक मुनाफा Publish Date : 23/03/2024
हल्दी : कम लागत अधिक मुनाफा
डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं डॉ0 कृषाणु सिंह
हल्दी का मसाले की फसलों में मुख्य स्थान है और व्यावसायिक खेती के तौर पर किसानों का इस तरफ रुझान भी बढ़ रहा है। इसे मसाले के रंग, औषधि एवं सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। हल्दी के साथ दूसरी फसलें बोकर दोगुना फायदा भी किया जा सकता है। इसकी वैज्ञानिक खेती करके किसान अधिक उपज कर सकते हैं और इस तरह ज्यादा फायदा उठा साकते हैं।
हल्दी की बुआई से पहले खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से अच्छी तरह गहराई तक करें। उसके बाद की जुताई कल्टीवेटर से चार-पांच बार करें। यह जुताई उस समय तक करनी चाहिए, जब तक खेत से खरपतवार पूरी तरह नष्ट न हो जाए। पाटा चलाकर खेत को समतल बनाएं, जिससे उसमें क्याली में पानी किसी एक जगह रुके नहीं। हल्दी की बुवाई से पहले खेत में हल्की नमी होना जरूरी है।
उन्नत किस्में - हल्दी की कुछ किस्में ऐसी हैं जो कम समय में पक जाती हैं तो कुछ किस्में ऐसी हैं, जो पकने में अधिक समय लेती हैं। इस कारण हल्दी को तीन भागों में बांटा गया है। अल्पकालीन किस्म की हल्दी सात माह में तैयार हो जाती है, जिसमें अमलापुर, कस्तूरी, पास्पु व सीए, एस1 आती है। मध्यकालीन किस्म की हल्दी आठ माह में तैयार हो जाती है, जिसमें केसरी व कोठा-पेटा आती है। दीर्घकालीन किस्म को तैयार होने में नौ माह का समय लगता है, जिसमें अम्पल्स, मधुकर, अरमीर है। समय के साथ इनकी उपज भी बढ़ती जाती है। इनके अलावा हल्दी की कृष्णा, सुगना व राजेन्द्र सोनिया भी उन्नत किस्में हैं।
बुवाई व समय - हल्दी बोने का समय अप्रैल के दूसरे पखवारे से लेकर जुलाई के बाद तक मानसून को देखते हुए करनी चाहिए। हल्दी बोने के लिये 5.5’8 मीटर लंबी एवं 2.5-4 मीटर चौड़ी क्यारियां उपयुक्त होती हैं। इनमें लाइनों के बीच की दूरी 30-40 सेमी. रखकर 25-30 सेमी. गाँठ से गांठ की दूरी बनाकर 4-5 सेमी गहराई में लगाई जाएं। इसके साथ कोई दूसरी फसल बतौर मिश्रित फसल भी बोई जा सकती है।
खाद व सिंचाई- हल्दी की फसल जमीन से भारी मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त करती है, इसलिए बुवाई सेपहले 20-25 टन गोबर की खाद जमीन में मिला देनी चाहिए। इसके अलावा 50 किग्रा फास्फोरस व आधा पोटास-बुआई के समय भूमि में मिलाना चाहिए। 60 किग्रा नत्रजन बुवाई के 40 दिन बाद डालना चाहिए व बाकी 30 किग्रा नत्रजन के साथ 30 किग्रा पोटाश बुआई के तीन माह बाद डाला जाए। भूमि में उर्वरक मिलाने के बाद हर बार क्यारियों में चढ़ाएं। सिंचाई 10-12 दिनों में करते रहें। दो-तीन बार निराई-गुडाई भी होनी चाहिए।
कीट व रोग
तना बेधक - यह विकसित प्रकंद को क्षति पहुंचाता है। इसके नियंत्रण के लिए फोरेट 10 जी पाउडर 10 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में बुरकाव किया जाना चाहिए।
माइट्स एवं बीटल्स - यह कीट हल्दी की पत्तियों को खाते हैं। इस पर नियंत्रण पाने को मिथइलओ डेमेटान एक मिली प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।
प्रकन्द विगलन - इस रोग में शुरूआत में पौधे के ऊपरी सतह पर धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में काले या भूरे हो जाते हैं। इससे तना सड़ने लगता है व आसानी से उखड़ जाता है। इससे बचाव के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 0.3 प्रतिशत घोल का छिड़काव करके पौधे को बचाया जा सकता है।
पत्तियों के धब्बे - यह रोग पत्तियों को प्रभावित करता है। इसको रोकने के लिए मैंकोजब 3 ग्राम प्रति लीटर या कारबेन्डाजिम एक ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ 2-3 बार 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करें।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।